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विष्णु के अनेक नाम है विष्णुसहस्रनाम में उनके एक सहस्र नामों की सूची प्रस्तुत की गयी है । इ ऊपर शङ्कराचार्य का भाष्य है, जिसमें नामों का अर्थ और रहस्य बतलाया गया है । विष्णु का प्रसिद्ध नाम 'हरि' है इसका अर्थ है (पाप और दुःख दूर करने वाला। ब्रह्मयोगी ने कलिसन्तरण उपनिषद् (२.१.२१५ ) के अपने भाष्य में इसकी व्याख्या इस प्रकार की है : 'जो अज्ञान (अविया) और इसके दुष्परिणाम का अपहरण करता है वह हरि है ।' विष्णु का दूसरा नाम शेषशायी अथवा अनन्तशायी है । जब विष्णु शयन करते हैं तो सम्पूर्ण विश्व अपनी अव्यक्त अवस्था में पहुँच जाता है। व्यक्त सृष्टि के अवशेष का ही प्रतीक 'शेष' है जो कुण्डली मारकर अनन्त जलराशि पर तैरता रहता है । शेषशायी विष्णु नारायण कहलाते हैं, जिसका अर्थ है 'नार (जल) में आवास करने वाला' । नारायण का दूसरा अर्थ भी हो सकता है; जिसमें समस्त नरों (मनुष्यों) का अयन (आवास) है ।'
विष्णु की मूर्तियों में विष्णुसम्बन्धी सिद्धान्तों और कल्पनाओं का ही प्रतीक पाया जाता है । विष्णुमूर्तियाँ प्रतीकों के समूह हैं और साधक उनके किसी भी रूप का ध्यान कर सकता है । गोपाल उत्तरतापनीय उपनिषद् ( ४६. ४८, २१६ ) में विष्णुमूर्ति के मुख्य अङ्गों का वर्णन रहस्यमय रूप में विस्तार से प्राप्त होता है ।
विष्णु की चौबीस प्रकार की मूर्तियां पायी जाती हैं । इनका वर्णन पद्मपुराण के पातालखण्ड में पाया जाता है । इन मूर्तियों में विष्णु के विविध गुणों का प्रतीकत्व है । रूपमण्डन नामक ग्रन्थ में भी विष्णु की चौवीस मूर्तियों का वर्णन है, किन्तु पद्मपुराण से कुछ भिन्न विभिन्न । युगों में इन्हीं मूर्तियों (रूपों) में विष्णु का युगानुसारी अवतार होता है। पद्मपुराण और रूपमण्डन के अनुसार इन मूर्तियों की व्याख्या इस प्रकार है :
१. केशव ( लम्बे केश वाले)
२. नारायण ( शेषशायी, सार्वभौम निवास )
३ माघव ( मायापति, ज्ञानपति)
४. गोविन्द (पृथ्वी के रक्षक )
५. विष्णु ( सर्वव्यापक)
६. जनार्दन (भक्त पुरस्कर्ता)
७. उपेन्द्र (इन्द्र के भ्राता)
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विष्णुकाञ्ची- विष्णुत्रिमूर्तिव्रत
८. हरि (दुःख, दारिद्र्य, पाप आदि का हरण करने वाले) ९. वासुदेव ( विश्वान्तर्यामी )
१०. कृष्ण ( आकृष्ट करने वाले, श्याम ) इत्यादि ।
इन मूर्तियों के अतिरिक्त राम, परशुराम आदि की मूर्तियाँ भी प्रचलित हैं, जिनका उब्लेख उपर्युक्त उल्लेखों में नहीं है ।
उनके चार आयुओं और प्रमुख आभूषणों के अतिरिक्त पीताम्बर और यज्ञोपवीत भी प्रमुख उपकरण हैं। साथ ही चामर, ध्वज और छत्र का भी अङ्कन प्रतिमाओं में होता है। विष्णु के रथ और वाहन दोनों का उल्लेख मिलता है । उनका वाहन गरुड है जो वैदिक मन्त्रों की शक्ति, गति और प्रकाश का प्रतीक है, वह अपने पक्षों पर विष्णु को बहन करता है। विष्णु के पार्षदों में मुख्य विष्वक्सेन ( विश्वविजेता ) तथा अष्ट विभूतियाँ (योग से उपलब्ध होने वाली सिद्धियाँ) हैं ।
विष्णुकाची - तमिल प्रदेश का यह प्रसिद्ध वैष्णव तीर्थ है । शिवकाशी से अलग करने के लिए इसे विष्णुकाची कहा जाता है । कावेरी नदी दोनों को बीच से विभाजित करती है। शिवकाञ्ची से दो मील दूर विष्णुकाञ्ची है। यहाँ १८ विष्णुमन्दिर है। मुख्य मन्दिर देवराज स्वामी का हैं जिनको प्रायः वरदराज कहा जाता है। वैशाख पूर्णिमा को इस मन्दिर का ब्रह्मोत्सव होता है । यह दक्षिण भारत का सबसे बड़ा उत्सव है। एक मन्दिर में रामानुजाचार्य की प्रतिमा विराजमान है। यहीं महाप्रभु वल्लभाचार्य की बैठक भी । सप्त मोक्षपुरियों में कापी की भी गणना है । विष्णुत्रिमूर्तिवत विष्णु भगवान् के तीन रूप है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि उनका अभिव्यक्तीकरण तीन रूपों में होता है । वे हैं वायु चन्द्र तथा सूर्य । तीनों रूप तीनों लोकों की रक्षा करते हैं। ये ही मनुष्य के शरीर में वात, पित्त तथा कफ के रूप में विद्यमान हैं। इसलिए भगवान् विष्णु के ये ही तीन स्पर्श करने योग्य रूप हैं । ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया को उपवास रखते हुए इनका पूजन करना चाहिए। प्रातःकाल भोर में वायु का पूजन तथा मध्यान्ह काल में यव-तिलों से हवन करना चाहिए। सूर्यास्त के समय चन्द्रमा का जल में पूजन करना चाहिए। एक वर्ष तक इस व्रत का अनुष्ठान होना चाहिए (प्रत्येक शुक्ल पक्ष की तृतीया को इस व्रत
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