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वैतानसूत्र-वैरदेय
यमव्रत में "हुवाइ वाम्' इत्यादि तथा ज्योतिष्टोम में में हुआ तथा इसी की रतह चीन आदि देशों से भारत में "वाग्विसर्जन" स्तोम आता है। अरण्यगान में भी इसके वामाचार का भी आगमन हुआ । गान है। यजुर्वेद के एक स्थल (२.२) में “सरस्वत्यै स्वाहा' वैतानसूत्र-अथर्ववेद के पांच सूत्र ग्रन्थ है-कौशिकसूत्र, मन्त्र से आहुति देने का विधान है, पाँचवें अध्याय के तानसूत्र, नक्षत्रकल्पसूत्र, आङ्गिरसकल्पसूत्र और शान्तिसोलहवें मन्त्र में पृथिवी और अदिति देवियों की चर्चा कल्पसूत्र । 'वैतानसूत्र' में अयनान्त निष्पाद्य, त्रयीविहित है। सत्रहवें अध्याय, मन्त्र ५५ में पाँचों दिशाओं से दर्शपूर्णमासयज्ञादि कर्मों के ब्रह्मा, ब्राह्मणाच्छंसी, आग्नीध्र विघ्न-बाधा निवारण के लिए इन्द्र, वरुण, यम, सोम, और होता इन चार ऋत्विजों के कर्तव्य बताये गये हैं। ब्रह्मा, इन पाँच देवताओं की शक्तियों (देवियों) का आवा- वैदिकसिद्धान्तसंग्रह-अद्वैत मतावलम्बी नृसिंहाश्रम सरहन किया गया है। अथर्ववेद के चौथे काण्ड के तीसवें स्वती के ग्रन्थों में यह रचना बड़ा ही महत्त्वपूर्ण स्थान सूक्त में (अहं रुद्रेभिः वसुभिः चरामि अहम् आदित्यै रुत रखती है। इसमें ब्रह्मा, विष्णु और शिव की एकता सिद्ध विश्वदेवः) महाशक्ति कहती है कि मैं समस्त देवताओं के की गयी है और बतलाया गया है कि ये तीनों एक ही साथ हूँ, सबमें व्याप्त रहती हूँ। केनोपनिषद् में "बहु परब्रह्म की अभिव्यक्ति मात्र हैं ।। शोभमाना उमा हैमवती" ब्रह्मविद्या महाशक्ति द्वारा प्रकट वैद्यनाथधाम-विहार प्रदेशस्थ प्रसिद्ध शैव तीर्थ । वैद्यनाथ होकर ब्रह्म निर्देश करना वर्णित है । अथर्वशीर्ष, देवीसूक्त द्वादश ज्योतिलिङ्गों में हैं। ५१ शक्तिपीठों में यह एक और श्रीसूक्त तो शक्ति के ही स्तवन हैं। वैदिक शाक्त पीठ भी है। कुछ लोग हैदराबाद के समीपस्थ परली घोषित करते हैं कि दशोपनिषदों में दसों महाविद्याओं का वैद्यनाथ को द्वादश ज्योतिलिङ्गों में मानते हैं। किन्तु ब्रह्मरूप में वर्णन है। इस प्रकार शाक्तमत का आधार "वैद्यनाथं चिताभूमौ" के अनुसार यही मुख्य वैद्यनाथ है । श्रुति ही है।
इस स्थान का अन्य नाम देवघर है । अपनी कामनाओं को देवीभागवत, देवीपुराण, कालिकापुराण, मार्कण्डेयपुराण पूर्ण करने के लिए लोग मन्दिर में धरना देकर निर्जल शक्ति के माहात्म्य से ही व्याप्त हैं। महाभारत तथा पड़े रहते हैं। जो बराबर टिके रहते हैं उनकी कामना रामायण में देवी की स्तुतियाँ हैं और अद्भुत रामायण पूर्ण होती है । यहाँ दर्शनीय स्थान गौरीमन्दिर, कार्तिकेयमें तो अखिल विश्व की जननी सीताजी का परात्पर मन्दिर आदि हैं। शक्तिवाला रूप प्रकट करके बहुत सुन्दर स्तुति की गयी वैनायकीचतुर्थी-प्रत्येक चतुर्थी को यह व्रत होता है। इसमें है। प्राचीन पाञ्चरात्र मत का 'नारदपञ्चरात्र' प्रसिद्ध दिन में उपवास तथा रात में चन्द्रोदय के पश्चात् भोजन वैष्णव ग्रन्थ है। उसमें दसों महाविद्याओं की कथा करने की विधि है। विस्तार से कही गयी है । निदान, श्रुति-स्मृति में शक्ति की वैयासिकन्यायमाला-व्यास रचित ब्रह्मसूत्र के विषयों की उपासना जहाँ-तहाँ उसी प्रकार प्रकट है, जिस तरह विष्णु माला । आचार्य भारती तीर्थ शाङ्करमत के अनुयायी थे । और शिव की उपासना देखी जाती है। इससे स्पष्ट है कि उन्होंने इस मत की व्याख्या करने के लिए ही 'वैयासिकशाक्तमत के वर्तमान साम्प्रदायिक रूप का आधार श्रुति- न्यायमाला' की रचना की । शाङ्करमतानुसार ब्रह्मसूत्र का स्मृति हैं और यह मत उतना ही प्राचीन है जितना वैदिक तात्पर्य समझने के लिए यह ग्रन्थ बड़ा उपयोगी माना साहित्य । उसकी व्यापकता तो इतनी है कि जितने सम्प्र- जाता है । यह ग्रन्थ सरल और सुबोध गद्य-पद्यों में लिखा दायों का वर्णन ऊपर किया गया है वे सब बिना अप- गया है। वाद के अपने उपास्य की शक्तियों को परम उपास्य वैरदेय-संहिताओं तथा ब्राह्मणों में इसका अर्थ ऐसा धन मानते हैं और एक न एक रूप में शक्ति की उपासना है, जो किसी मनुष्य का प्राण लेने के बदले में उसके सम्बकरते हैं। जहाँ तक शैवमत वेदबोधित नियमों पर धियों को देना पड़े। यह अर्थ आपस्तम्ब तथा बौधायन आधारित है, वहाँ तक शाक्तमत भी वैसा ही नियमानु
शाक्तमत भा वसा ही नियमानु- सूत्रों में भी प्रयुक्त हआ है। दोनों ने ही क्षत्रिय की हत्या मोदित है।
के लिए १००० गौएँ, वैश्य के लिए १०० गौएँ तथा शूद्र इस वैदिक शाक्तमत का प्रचार यहाँ से पार्श्ववर्ती देशों के लिए १० गौएँ हर्जाना निश्चित किया है तथा प्रत्येक
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