________________
५७८
वल्लभी श्रुति-वसन्तपञ्चमी
सम्बन्ध था। वल्लभ अग्निदेव के अवतार कहे जाते हैं, पुराण की टीका) (३) तत्त्वदीपनिबन्ध ( यह उनके इनका कोई भी मानव गुरु ज्ञात नहीं है । इन्होंने अपने मत सिद्धान्तों पर रचित दार्शनिक ग्रन्थ है )। इसके साथ की शिक्षा सीधे कृष्ण भगवान से प्राप्त की, ऐसा विश्वास 'प्रकाश' नामक पद्यभाग तथा अन्य कुछ लघु ग्रन्थ प्रचलित है । जान पड़ता है कि कृष्ण के परम ब्रह्म होने, हैं जिनमें 'सिद्धान्तरहस्य' प्रसिद्ध है। गिरिधरजी तथा राधा के उनकी सहमिणी होने तथा सर्वोच्च स्वर्ग बालकृष्ण भट्ट ने क्रमशः 'शुद्धाद्वैतमार्तण्ड' तथा 'प्रमेयगोलोक में उनके लीला करने का सिद्धान्त निम्बार्क से
रत्नार्णव' जैसे वेदान्त ग्रन्थ लिखे हैं। ये दोनों सम्प्रदाय उनको मिला होगा।
के उद्भट विद्वान् थे तथा इनके उपर्युक्त संस्कृत ग्रन्थ वे अपने दार्शनिक सम्प्रदाय को शुद्धाद्वैत कहते हैं, बड़े ही तर्कपूर्ण है। बाद के ग्रन्थकारों में गोस्वामी किन्तु इनका अद्वैत शङ्कराचार्य के अद्वैतवाद के सदश पुरुषोत्तमजी सबसे प्रसिद्ध हैं । इस सम्प्रदाय द्वारा वात्सल्य शुष्क नहीं है । यह नाम शाङ्कर अद्वैत के विरोध के कारण एवं मधुर भाव की भक्ति का बहुत प्रचार हुआ। दिया हुआ है। वल्लभ का मार्ग भक्तिमार्ग है। इनके वल्लभी श्रुति-कहते हैं कि वल्लभी और सत्यायनी नामक अनुसार भक्ति साध्य है, साधन नहीं, क्योंकि भक्ति दो वेदशाखा ग्रन्थ (यजुर्वेदीय) और भी हैं। बृहद्देवता ज्ञान से श्रेष्ठ है तथा सच्चा भक्त मुक्ति नहीं चाहता; वह में वल्लभी श्रुति का नाम आया है। सुरेश्वराचार्य एवं कृष्ण का सायुज्य तथा लीला में सम्मिलित होना चाहता सायणाचार्य ने भी इसका उल्लेख किया है। है। वल्लभ के मतानुसार भक्ति ईश्वर की कृपा से वल्लभोत्सव-वैष्णव सम्प्रदाय के प्रसिद्ध आचार्य वल्लभ मिलती है। इस सम्प्रदाय में ईश्वर की कृपा के लिए
के सम्मान में उनके जन्मदिन के उत्सव के आयोजन 'पुष्टि' शब्द का प्रयोग हुआ है। यह शब्द तथा इसका
को वल्लभोत्सव कहते हैं । जनश्रुति के अनुसार इनका प्रयोग भागवत पुराण के एक उल्लेखनुसार हुआ है जन्म १४७९ ई० में हुआ था तथा इन्होंने अनेक ग्रन्थों का (वहाँ २.१०.४ में अनुग्रह को पोषण कहा गया है)। निर्माण कर योग तथा तपस्या से भिन्न भक्तिमार्ग का
इस सम्प्रदाय के सिद्धान्त संक्षिप्त रूप में ये हैं-श्री आन्दोलन चलाया। इनके समस्त सिद्धान्त भागवत पुराण कृष्ण परब्रह्म हैं, वे सत्ता, ज्ञान, आनन्द रूप हैं तथा पर आश्रित हैं। यह जन्मोत्सव वैशाख कृष्ण एकादशी केवल वे ही एक मात्र तत्त्व हैं । उन्हीं से भौतिक जगत्, को होता है। जीवात्मा तथा देवों की उत्पत्ति होती है, यथा अग्नि से वश अश्व्य-अश्विनों का आश्रित एक व्यक्ति, जो ऋग्वेद चिनगारियों की । जीव अणु हैं तथा ब्रह्मानुरूप है । जब तीनों में बह बार वर्णित है। शांखायन श्रौतसूत्र में भी उसे गुणों ( सत्त्व, रजस्, तमस् ) का उलटफेर होता है तो पृथुश्रवा कानीत से दान पाने वाला कहा गया है। वह उनका आनन्द ढक जाता है तथा वे केवल सत्ता तथा वेदकालीन एक राज्य का प्रसिद्ध ऋषि भी है (ऋ० अल्प ज्ञान रखते हुए दिखाई पड़ते हैं।
८.४६) जो अपने वश' नाम से अनेक बार उद्धृत मुक्त आत्मा कृष्णलोक (गोलोक) को जाते हैं जो हुआ है। विष्णु, शिव तथा ब्रह्मा के स्वर्गों से ऊपर है । वे कृष्ण के वसन्तपञ्चमी-(१) माघ शुक्ल पञ्चमी को वसन्तपंचमी विशुद्ध दैवी स्वरूप को प्राप्त करते हैं।
का त्यौहार मनाते हैं। इस दिन सरस्वतीपूजा के अतिरिक्त इनके मन्दिरों में दिन में आठ बार पूजा (सेवा) होती
नवान्न प्राशन, प्रीतिभोज, गाना-बजाना आदि उत्सव होते है । सम्प्रदाय का मन्त्र है 'श्रीकृष्णः शरणं मम' । सम्प्रदाय हैं । वसन्त ऋतु का स्वागत किया जाता है। जान पड़ता की एक परम्परा यह है कि गुरु का पद वल्लभाचार्य के पुत्र
है कि कभी इसी ममय वसन्त ऋतु का आगमन होता था। गोस्वामी विट्ठलनाथ तथा उनके वंशजों को ही प्राप्त है। (२) प्राचीन समय में वैदिक अध्ययन का सत्र श्रावणी
वल्लभाचार्य के ग्रन्थ विद्वत्तापूर्ण हैं । वे ही इस सम्प्रदाय पूर्णिमा (उपाकर्म) से प्रारम्भ होकर इसी तिथि को समाप्त के आधार या प्रमाण माने जाते हैं। उनमें ये मुख्य हैं : (उत्सर्जन) होता था। इस दिन सरस्वती पूजन करना (१) वेदान्तसूत्र का अणुभाष्य (२) 'सुबोधिनी' (भागवत इसी का स्मारक अवशेष है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org