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कुत्स औरव-कुमारिल
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की पत्नी शची पहचान न सकी कि उसका पति इन्द्र महान् आचार्यों का प्रादुर्भाव हुआ, जिनमें पहले हैं प्रभाकर, कौन सा है।
जिन्हे 'गुरु' भी कहते हैं तथा दूसरे हैं कुमारिल, जिन्हें कुत्स औरव-पञ्चविंश ब्राह्मण के अनुसार कुत्स औरव भट्ट भी कहते हैं। दोनों ने शबर के भाष्य की व्याख्या ने अपने पारिवारिक पुरोहित उपगु सौश्रवस का वध इस __ की है किन्तु दोनों की व्याख्या में अन्तर है। दोनों ने लिए कर डाला था कि सौश्रवस के पिता इन्द्र की पूजा दो प्रतिद्वन्द्वी सम्प्रदायों को जन्म दिया। प्रभाकर का के अधिक पक्षपाती थे। इस तथ्य का समर्थन ऋग्वेद के काल अज्ञात है किन्तु यह निश्चित है कि वे कुमारिल के कुछ सूक्तों में कुत्स एवं इन्द्र की प्रतियोगिता के वर्णन से पूर्व हुए। प्रभाकर का ग्रन्थ 'बृहती' शाबरभाष्य का प्राप्त होता है।
स्पष्टीकरण मात्र है; उसमें कुछ आलोचना नहीं है। कुन्दचतुर्थी-माघ शुक्ल चतुर्थी । इस तिथि को देवीपूजा कुमारिल आठवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में हुए, उन्होंने होती है। कुन्दपुष्प, शाक, सब्जी, नमक, शक्कर, जीरा शाबरभाष्य पर एक विस्तृत व्याख्या की रचना की आदि वस्तुएँ कन्याओं को दान में दी जाती हैं। चतुर्थी जिसके तीन भाग है, और उनमें शबर से यथेष्ट अन्तर के दिन उपवास का विधान है। यह गौरीचतुर्थी के परिलक्षित होता है। नाम से भी प्रसिद्ध है। चतुर्थी को उपवास ही इस व्रत कुमारिल की रचना के तीन भाग हैं : (१) श्लोकका मुख्य अङ्ग है। उस दिन उक्त दान देने से सौभाग्य वार्तिक (पद्य), जो प्रथम अध्याय के प्रथम पाद पर की उपलब्धि होती है।
है; (२) तन्त्रवात्तिक (गद्य) जो प्रथम अध्याय के अवकुब्जिकातन्त्र-'आगमतत्त्वविलास' की तन्त्रसूची में ५५वाँ
शेष तथा अध्याय दो और तीन पर है और (३) टुप्टीका स्थान 'कुब्जिकातन्त्र' का है। इसमें निगूढ़ तान्त्रिक
(गद्य) अध्याय ४ से १२ पर संक्षिप्त टिप्पणी है । कुमारिल क्रियाओं का वर्णन है।
की प्रणाली पर मण्डन मिश्र ने, जो बाद में शङ्कर के शिष्य कुग्जिकामततन्त्र-एक प्राचीन तन्त्रग्रन्थ। गुप्तकालीन
(सुरेश्वराचार्य) हो गये थे, अनेकों ग्रन्थों की रचना की। भाषाशैली में लिखित होने के कारण इसका रचनाकाल
प्रभाकर एवं कुमारिल दोनों ने अनीश्वरवाद का लगभग सातवीं शताब्दी प्रतीत होता है।
निर्वाह प्रकृति के सृष्टिक्रम में देवी कार्य की अनावश्यकुबेरतीर्थ-कुरुक्षेत्र के समीप यह स्थान भद्रकाली मन्दिर
कता बताते हुए किया है। दोनों इस विषय पर यथार्थसे थोड़ी दूर सरस्वती नदी के तट पर स्थित है। यहाँ
वादी दृष्टिकोण रखते हैं। किन्तु दोनों का आत्मा की कुबेर ने यज्ञों का अनुष्ठान किया था। इसी प्रकार
विशुद्ध चेतनता, प्रत्यक्ष एवं अनुमान आदि तार्किक तत्त्वों नर्मदातट पर भी एक कुबेरतीर्थ विख्यात है।
में मतान्तर है। कुमारिल ने कर्ममीमांसा एवं उसके कुबेरव्रत-तृतीया तिथि को इस व्रत का अनुष्ठान किया
बाहर के दर्शनों पर भी सक्रिय प्रभाव डाला। वे बौद्ध जाता है । इसमें कुबेर की पूजा होती है ।
मत के कठोर आलोचक थे तथा जब कभी वे विजयकुमार-वाल्मीकि-माध्व मतावलम्बी किसी कुमार-वाल्मीकि
यात्रा में निकले, उन्होंने इस मत के प्रत्याख्यान करने का नामक कवि ने रामायण का कन्नड भाषा में अनुवाद
यत्न किया। किया है । इसी अनुवाद को 'कुमार-वाल्मीकि' कहते हैं ।
___ कुमारिल के अनुसार वेद के शब्द, वाक्य और क्रम धार्मिक होने की अपेक्षा यह अनुवाद विनोदपूर्ण अधिक
नित्य हैं । कुमारिल ने शब्द को द्रव्य माना है। शब्द तो है। मध्वमत के प्रचार में इसने यथेष्ट सहायता पहुँचायी
नित्य है ही, उसका अर्थ भी नित्य है और शब्द तथा है । कर्णाटक में यह बहुत लोकप्रिय है ।
अर्थ का सम्बन्ध भी नित्य है। शब्द की नित्यता पर जो कुमारषष्ठी-चैत्र शुक्ल षष्ठी को इस व्रत का आरम्भ युक्तियाँ उन्होंने प्रस्तुत की हैं, वे बहुत प्रौढ और वैज्ञानिक होता है और यह एक वर्ष पर्यन्त चलता है। मिट्टी की हैं। कुमारिल ने द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य और अभाव द्वादश भुजा वाली स्कन्द की मूर्ति का पूजन इसमें किया ये पाँच पदार्थ माने हैं। पूर्व मीमांसा के अन्य सिद्धान्त जाता है।
उन्हें मान्य है, यद्यपि शबरभाष्य की आलोचना यत्र-तत्र कुमारिल-कर्ममीमांसा शास्त्र के उत्कर्ष काल में इसके दो उनके द्वारा हई है।
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