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आदि को पढ़ाकर नव्य न्याय का दिगन्त में प्रसार किया।
गङ्गोत्तरी - गङ्गाजी का उद्गम तो हिममण्डित गोमुख तीर्थ से हुआ है, किन्तु गंगोत्तरी धाम उससे १८ मील नीचे है । गंगोत्तरी में स्नान के पश्चात् गंगाजी का पूजन करके गंगाजल लेकर यात्री नीचे उतरते हैं। यह स्वान समुद्रस्तर से १०,०२० फुट की ऊंचाई पर गंगा के दक्षिण तट पर है । आस-पास देवदारु तथा चीड़ के वन हैं । यहाँ मुख्य मन्दिर गङ्गाजी का है। शीत काल में यह स्थान हिमाच्छादित हो जाता है। गङ्गोत्तरी से नीचे केदारगंगा का संगम है । वहाँ से एक फर्लांग पर बड़ी ऊँचाई से गंगाजी शिवाकार गोल शिलाखण्ड के ऊपर गिरती हैं । इस स्थान को गौरीकुण्ड कहते हैं । गजच्छाया - ज्योतिष का एक योग । मिताक्षरापरिभाषा में इसका लक्षण दिया हुआ है :
यदेन्दुः पितृदैवत्ये हंसश्चैव करे स्थितः याम्या तिथिर्भवेत् सा हि गजच्छाया प्रकीर्तिता ॥ [ चन्द्र मया में और सूर्य हस्त नक्षत्र (आश्विन कृष्ण १३) में हो तब गजच्छाया योग कहलाता है।] कृत्यचिन्तामणि के अनुसार यह योग श्राद्ध के लिए पुण्यकारक माना जाता है :
कृष्णपक्षे त्रयोदश्यां मघास्विन्दुः करे रविः । यदा तदा गजच्छाया धाद्धे पुण्यैरवाप्यते ।।
वराहपुराण के अनुसार चन्द्र-सूर्यग्रहणकाल को भी गजच्छाया योग कहते हैं :
सैंहिकेयो यदा भानुं ग्रसते पर्वसन्धिषु । गजच्छाया तु सा प्रोक्ता तत्र श्राद्धं प्रकल्पयेत् ॥ गजच्छाया व्रत आश्विन कृष्ण त्रयोदशी को यदि मघा नक्षत्र हो तथा सूर्य हस्त नक्षत्र पर हो तो इस व्रत का अनुष्ठान होता है । यह श्राद्ध का समय है । शातातप (हमाद्रि, काल पर चतुर्वचिन्तामणि) के अनुसार यदि इस अमावस को सूर्यग्रहण हो तो उसको गजच्छाया कहते हैं । इस समय का श्राद्ध अक्षय होता है । गजनीराजनाविधि - आश्विन पूर्णिमा के दिन मध्याह्नोत्तर काल में गजों ( हाथियों) के सामने लहरों में जलते हुए दीपकों को आवर्तित करने को गजनीराजनाविधि कहते
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गङ्गोतरी-गण
हैं । यह राजाओं के लिए मांगलिक कृत्य माना जाता है । गजपूजाविधि - आश्विन पूर्णिमा के दिन सुख-समृद्धि के अभिलाषियों के लिए इस व्रत का विधान है । दे० हेमाद्रि, २.२२२-२५ । इसमें गज की पूजा होती है । गजानन -- गणेश का पर्याय । गणेश गजानन कैसे हुए यह कथा ब्रह्मवैवर्त (गणेशखण्ड, अध्याय ६) तथा स्कन्दपुराण ( गणेशखण्ड, अध्याय ११ ) में विभिन्न रूपों में कही गयी है। ब्रह्मवैवर्त में कहा गया है
शनिदृष्टया शिरश्छेदाद गजवक्त्रेण योजितः । गजाननः शिशुस्तेन नियतिः केन बाध्यते ॥
[ शनिदेव की दृष्टि पड़ने से गणेशजी का मस्तक कट गया, तब हाथी का मस्तक लगा देने पर वे गजानन कहे गये । भाग्य प्रबल है ।] दे० 'गणेश' | गजायुर्वेद - आयुर्वेद का यह एक पशुचिकित्सीय विभाग है । गाय, हाथी, घोड़े आदि पशुओं के सम्बन्ध में आयुर्वेद ग्रन्थ अवश्य रहे होंगे, क्योंकि अग्निपुराण (२८१-२९१ अध्याय तक ) में इन विविध आयुर्वेदों की चर्चा की गयी है। गजायुर्वेद में गज (हाथी) के प्रकार तथा तत्सम्बन्धी चिकित्सा का विस्तृत विधान है। 'शालिहोत्र' भी पशुचिकित्सा का प्रमुख ग्रन्थ है। गढ़मुक्तेश्वर - मेरठ से २६ मील दक्षिण-पूर्व गङ्गा के दाहिने तट पर यह नगर है। यहाँ तक मोटर बसें जाती है। प्राचीन काल में विस्तृत हस्तिनापुर नगर का यह एक खण्ड था । यहाँ मुक्तेश्वर शिव का मन्दिर है । कई अन्य प्राचीन मन्दिर भी हैं। कार्तिक पूर्णिमा को यहां विशाल मेला लगता है ।
गण गण का अर्थ 'समूह' है रुद्र के अनुचरों को भी गण कहा गया है। कुछ देवता गण ( समुदाय) रूप में प्रसिद्ध हैं :
आदित्य- विश्व वसवः, तुषिताभास्वरानिलाः । महाराजिक - साध्याश्च रुद्राश्च गणदेवताः ॥
[ आदित्य (१२) विश्वेदेव (१०) वसु (८), तुषित, आभास्वर, मरुत (४९), महाराजिक, साध्य और रुद्र (११) गणदेवता हैं ।]
मरुतों के गण, इन्द्र और दोनों के सैनिक हैं । ज्योतिषरत्नमाला में अश्विनी आदि जन्मनक्षत्रों के अनुसार देव, मानुष और राक्षस तीन गण माने गये हैं ।
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