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महाफल सप्तमी-महाभारत
दुग्ध, पुष्प, वनस्पति, बेल का फल, आटा, बिना पकाया इसे उत्पन्न किया तथा बहुत दिनों तक इसे अपने कण्ठ में हुआ खाद्य पदार्थ, उपवास, दूध में उबाले हुए शर्करा पहने रखा । यहाँ कृष्णा नदी का उद्गम होने से यह रममिश्रित चावल, जौ, गोमूत्र तथा जल जिसमें कुश डुबाये णीकस्थल हो गया है। पहले यहाँ बम्बई प्रदेश को ग्रीष्महुए हों। इन समस्त दिनों में निश्चित विधि-विधान का कालीन राजधानी थी। यहाँ महाबलेश्वर रूप से भगवान् ही आचरण करना चाहिए। व्रत से एक दिन पूर्व तीन शङ्कर, अतिबलेश्वर रूप से भगवान् विष्णु और कोटीसमय स्नान, उपवास, वैदिक मन्त्रों तथा गायत्री मन्त्र का श्वर रूप से भगवान् ब्रह्मा निवास करते हैं। यहाँ पाँच जप करना चाहिए। इस आचरण से विभिन्न प्रकार के नदियों का उद्गम है : सावित्री, कृष्णा, वेण्या, ककुद्मती पुण्य-फल प्राप्त होते हैं और व्रती सीधा सूर्यलोक (कोयना) और गायत्री । पास ही महारानी अहल्याबाई जाता है।
का बनवाया रुद्रेश्वरमन्दिर है। मुद्रतीर्थ, चक्रतीर्थ, हंसमहाफल सप्तमी-रविवार को सप्तमी तिथि तथा रेवती
तीर्थ, पितृमुक्ति तीर्थ, अरण्यतीर्थ, मलापकर्षतीर्थ आदि नक्षत्र होने पर अशोक वृक्ष की कलियों से दुर्गा जी की
अनेक तीर्थ स्थल है। प्रति वर्ष बहत बड़ी संख्या में यहाँ पूजाकर कलियों को प्रसाद रूप में खा लेना चाहिए।
यात्री एकत्र होते हैं। महाफाल्गुनी-फाल्गुन मास की पूर्णिमा को चन्द्रमा और महावसवपुराण-वीर शैव आचार्यों ने जो ग्रन्थ कन्नड में बहस्पति दोनों यदि पूर्वा या उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में
लिखे अथवा अनूदित किये, उनमें अधिकतर पुराण ही हों तब यह तिथि महाफाल्गुनी कही जाती है। इसमें
हैं। महावसव पुराण अथवा महवसवचरित्र की रचना भगवान् विष्णु की पूजा का विधान है।
१४५० वि० के लगभग सिगिराज ने की थी। इसके महाफेत्कारी तन्त्र-'आगमतत्त्व विलास' में उद्धृत तन्त्रों
तेलुगु तथा तमिल अनुवाद भी प्राप्त होते हैं । की सूची में 'महाफेकारी' भी एक तन्त्र है।
महाब्राह्मण-(१) बृहदारण्यक उपनिषद् ( २.१,१९,२२)
में इसका उल्लेख हुआ है। यह एक महत्त्वपूर्ण ब्राह्मण महाबलीपुरम्--सुदूर दक्षिण भारत का एक तीर्थ । समुद्र के
ग्रन्थ है। किनारे यह प्रसिद्ध स्थान है । ७ वीं शती में इसे सर्वप्रथम
(२) महाब्राह्मण 'महापात्र' ब्राह्मणों को भी कहते हैं पल्लवराज नरसिंहवर्मा ने बसाया था । यहाँ पत्थर काट
जो मृतक की शय्या, वस्त्राभूषण तथा एकादशाह का कर लंगूर के समान बन्दरों का एक समूह बनाया गया है,
भोजन ग्रहण करते हैं। इसी के मध्य शिव मन्दिर है । गणेश, विष्णु, वामन, वराह आदि अन्यान्य देवताओं के भी मन्दिर और मूत्तियाँ
महाभद्राष्टमी-पौष शुक्ल पक्ष की अष्टमी यदि बुधवार हैं । ये मन्दिर पल्लव वंश के नरेशों द्वारा बनवाये गये
को पड़े तो वह महाभद्राष्टमी कहलाती है तथा अत्यन्त थे, जो स्थापत्य की कला में अपनी विशेषता के लिए
पुनीत मानी जाती है। शिव इसके देवता हैं । जगत्प्रसिद्ध हैं। इन मदिरों को रथ कहते हैं। सप्तरथ महाभागवत उपपुराण-कुछ विद्वानों द्वारा प्रसिद्ध उपनामक युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव, गणेश तथा पुराणों में से एक महाभागवत भी माना जाता है। वैष्णव द्रौपदी के मंदिर बड़े प्रसिद्ध हैं। समुद्र के जल से । इसको उपपुराण मानने के लिए तैयार नहीं होते । वे प्रच्छालित पर्वत बाहुओं को काटकर बनाये गये ये मंदिर लोग श्रीमद्भागवत को महापुराण मानते हैं । दे० अपनी सुन्दरता और मनमोहकता के लिए विश्व 'श्रीमद्भागवत'। प्रसिद्ध हैं।
महाभाद्री-भाद्रपद मास की पूर्णिमासी को चन्द्रमा और महाबलेश्वर-कोंकण देशस्थ पश्चिमी घाट के गोकर्ण नामक बृहस्पति दोनों भाद्रपदा नक्षत्र में यदि स्थित हों तब यह तीर्थस्थान में महाबलेश्वर का प्रसिद्ध मन्दिर है, जो तिथि महाभाद्री कही जाती है । इस दिन धर्मकृत्य महान द्राविड शैली में काले आग्नय पत्थरों से निर्मित है। इसमें पुण्य प्रदान करते हैं। 'आत्मा' नामक प्रसिद्ध लिङ्ग स्थापित है। इसके बारे में महाभारत-पुराणों की शैली पर निर्मित सांस्कृतिक और कहा जाता है कि ब्रह्मा की सृष्टि से क्रोधित हो शिव ने धार्मिक इतिहास ग्रन्थ, जिसमें भरतवंशज कौरव और
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