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मीराबाई मुक्तिद्वार-सप्तमी
शब्दात्' इस अन्तिम सूत्र तक बीस अध्यायों का एक ही मकुन्दराज-मराठी भाषा के विवेकसिन्धु नामक ग्रन्थ में वेदार्थ-विचार करने वाला मीमांसा दर्शन मानते हैं और वेदान्त की व्याख्या करने वाले एक विद्वान् सन्त । इनके उसके तीन काण्ड बतलाते हैं। उन काण्डों के नाम हैं : ग्रन्थ का उल्लेख देवगिरि के राजा जैत्रपाल के शासनधर्ममीमांसा, देवमीमांसा, ब्रह्ममीमांसा । धर्ममीमांसा काल में १२वीं शताब्दी के अन्त में हुआ है तथा इसे नामक प्रथम काण्ड आचार्य जैमिनि द्वारा प्रणीत है। मराठी का सबसे प्राचीन ग्रन्थ कहा गया है । इस ग्रन्थ की उसमें बारह अध्याय हैं और उसमें धर्म का सांगोपांग विवेचन किया गया है। देवमीमांसा नामक द्वितीय काण्ड मुकुन्दराम-बँगला भाषा के प्राचीन संमानित कवि । इन्होंने काशकृत्स्नाचार्य ने बनाया था और उसके चार अध्यायों में बंगला में एक कलात्मक महाकाव्य रचा (१६४६ ई०) देवोपासना का रहस्य परिस्फुटित किया गया है। ब्रह्म जिसका नाम 'चण्डी मङ्गल' है । यह शाक्त पंथी ग्रन्थ है। मीमांसा नामक तृतीय काण्ड के रचयिता है बादरायणमुनि। और 'मंगल' काव्यों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इन्होंने चार अध्यायों में ब्रह्म का पूर्ण विमर्श करके अपना मुक्तानन्द-स्वामीनारायण सम्प्रदाय के अनुयायी संत । सिद्धान्त अच्छी तरह स्थापित किया है। कर्म, उपासना मुक्तानन्द जी ने गुजराती भाषा में अनेक भजन व पद और ज्ञान इन तीनों काण्डों से युक्त सम्पूर्ण शास्र का रचे हैं। नाम है मीमांसाशास्र । इस सम्पूर्ण मीमांसा शास्र की मुक्ताफल-वोपदेव पण्डित द्वारा रचित 'मुक्ताफल' भागवत्ति भगवान् बोधायनाचार्य ने बनायी थी।
वतपुराण पर आधारित है। इसमें उक्त पुराण की शिक्षाएँ ___ अन्य आचार्यों के मतानुसार दो स्वतन्त्र मीमांसा- संगृहीत हैं । इसका रचनाकाल चौदहवीं शताब्दी का शास्र हैं: (१) पूर्व मीमांसा, जिसमें वैदिक कर्मकाण्ड का प्रथम चरण है। विवेचन है और (२) उत्तर मीमांसा, जिसमें वेदान्त मुक्ताबाई-पन्द्रहवीं शताब्दी के महाराष्ट्रीय भक्तों में दर्शन या ब्रह्म का निरूपण है । दे० 'पूर्वमीमांसा' । मुक्ताबाई का नाम उल्लेखनीय है । इनके अभङ्ग आदर के मीराबाई-जोधपुर के मेड़ता राजकुल की कृष्णभक्त
साथ पढ़े और गाये जाते हैं।। राजकुमारी । इनका ब्याह मेवाड़ के युवराज के साथ मुक्ताभरण व्रत-भाद्र शुक्ल सप्तमी को इस व्रत का प्रारंभ हआ । इनके ससुर प्रसिद्ध वीर राणा कुम्भा थे । राणा होता है । यह तिथिव्रत है । शिव तथा उमा उसके देवता कुम्भा की मृत्यु के पहले ही उनके पति की मृत्यु हो । हैं। शिवप्रतिमा के सम्मुख एक धागा रखा जाता है । गयी। विधवा मीराबाई के साथ उनके पति के भाई का उसके उपरान्त आवाहन से प्रारम्भ कर शिव जी का व्यवहार निर्दय था। मीरा ने चित्तौड़ त्याग दिया तथा षोडशोपचार पूजन किया जाता है। शिव जी का आसन सन्त रैदास (रामानन्दीय) की शिष्या बन गयीं और आगे मुक्ताओं तथा रत्नों से जटित होना चाहिए। उपचारों के चलकर कृष्ण की उच्च कोटि की उपासिका हुई । इनके बाद उस धागे को कलाई में बाँध लिया जाता है। तदकृष्ण भक्ति सम्बन्धी गीत लोकप्रसिद्ध है। गुजराती में
नन्तर ११०० मण्डल (मराठी में माण्डे, हिन्दी में बाटियाँ) भी इनके बहुत से गीत पाये जाते हैं, जिनमें से कुछ में
तथा वेष्टिकाएं (जलेबियाँ) दान में देनी चाहिए। इससे उत्कट प्रेम के तत्त्व निहित हैं। मीराबाई का स्थिति
पुत्रों की आयु दीर्घ होती है । काल १६वीं शताब्दी का पूर्वार्ध है।।
मुक्ति-संसार के जन्ममरण-बन्धन से छुटकारा । दे० मोक्ष । मुकुन्द-छान्दोग्य तथा केनोपनिषद् के अनेक वत्तिकार मुक्तिकोपनिषद-मक्तिकोपनिषद् में १०८ उपनिषदों की तथा टीकाकारों में से मुकून्द भी एक है।
नामावली दी हुई है जो महत्त्वपूर्ण है। इसमें मोक्ष का मकुन्दमाला-केरल प्रान्त के प्रसिद्ध शासक कूलशेखर विवेचन विशेषरूप से किया गया है । एक प्रधान अलवार (परम वैष्णव) हो गए हैं। उन्होंने मुक्तिद्वार सप्तमी-जब सप्तमी हस्त अथवा पुष्प नक्षत्र 'मुकुन्दमाला' नामक एक अत्यन्त भक्तिरसपूर्ण, साहित्यिक युक्त हो तब इस व्रत का आचरण करना चाहिए। आक स्तोत्र ग्रन्थ की रचना की है। भक्तसमाज में इसका बहुत के वृक्ष को प्रमाण करके उसकी टहनी की दातुन से दाँत आदर है।
साफ करने चाहिए। उस अवसर पर स्नान-पूजन करने के
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