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उपनिषद् जो पूर्णतया योगदर्शन पर अवलम्बित है, मैत्रायणी से गहरा सम्बन्ध रखती एवं उसकी समकालीन है। हिन्दू त्रिमूर्ति का सर्वप्रथम उल्लेख मैत्रायणी के दो परिच्छेदों में हुआ है। प्रथम में इन तीनों (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) को निराकार ब्रह्म का रूप माना गया है तथा दूसरे में इन्हें दार्शनिक रूप दिया गया है वे अदृश्य प्रकृति के आधार हैं। इस प्रकार एक महत् तत्त्व तीन रूपों में प्रकट हुआ है--सत्व, रजस् एवं तमस् । विष्णु सत्त्व, ब्रह्मा रजस् एवं शिव तमस् हैं । मंत्रावरुण - श्रीतयज्ञों (सोमसाध्यों) का एक पुरोहित । ब्राह्मण काल में यज्ञों का रूप विस्तृत हो गया तथा तदनुकूल पुरोहितों की संख्या बढ़ गयी। नये नये पद बनाये गये और अलग-अलग यज्ञों के लिये अलग-अलग पुरोहित निश्चित हुए। मैत्रावरुण भी एक पुरोहित का नाम था जो सौमित्रि यज्ञों में सहायता कार्य का करता था। सोमयज्ञों में १६ पुरोहितों की आवश्यकता होती थी। इसमें से मैत्रावरुण भी एक होता था । मंत्रावरुणि ऋषि अगस्त्य का एक नाम जैसा कथित है, मित्र तथा वरुण ने स्वर्गीय अप्सरा उर्वशी को देखकर अपना-अपना तेज एक पानी के घड़े में डाल दिया । इस धड़े से ही अगस्त्य की उत्पत्ति हुई। दो पिता, मित्र एवं वरुण के कारण इनका पितृबोधक नाम मैत्रावरुणि हो गया । मंत्रे - शिव के चार पाशुपत शिष्यों में से एक का नाम मैत्रेय है । उदयपुर से १४ मील दूर एक लिङ्गजी के प्राचीन मन्दिर में एक अभिलेख प्राप्त हुआ है जिसमें यह सन्देश है कि शिव भड़ींच (गुजरात) प्रान्त में अवतरित होकर हाथ में एक लकुल धारण करेंगे । इस स्थान का नाम कायावरोहण है। चित्र प्रशस्ति के अनुसार शिव लाट देश के कारोहण ( कायावरोहण सम्प्रति कर्जण ) नामक स्थान में पाशुपत मत के प्रचारक रूप से अवतरित हुए। वहाँ उनके चार शिष्य भी मनुष्य शरीर में प्रकट हुए थे कुशिक, गार्ग्य, कोरूष्य एवं मैत्रेय भूतपूर्व बड़ौदा राज्य में करवर वह स्थान है जहां आज भी लकुलीश का मन्दिर स्थित है ।
मैत्रेयी - बृहदारण्यक उपनिषद् (२, ४, १४,५, २ के अनुसार याज्ञवल्क्स्य की दो पत्नियों में से एक का नाम मैत्रेयी या संन्यास लेने के समय याज्ञवल्क्य ने अपनी सम्पत्ति को दोनों पत्नियों में बाँटने का आयोजन किया। इस
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मैत्रावरुण मोक्ष
अवसर पर मैत्रेयी ने बड़ा मौलिक प्रश्न पूछा "क्या इस सम्पत्ति को लेने पर मैं संसार के दुःखों से मुक्त होकर अमर पद प्राप्त कर सकूँगी ?" नकारात्मक उत्तर मिलने पर उसने भी सम्पत्ति का त्याग कर निवृत्ति और श्रेय का मार्ग ग्रहण किया।
मंत्र यी उपनिषद्-यह एक परवर्ती उपनिषद् है। मैनाक- मेनका (मेना, पार्वती की माता) का वंशज एक पर्वत, जो हिमालय का पुत्र कहा गया है। यह तैत्तिरीय आरण्यक (१.३२, २) में उद्धृत है। इसे मैनाग भी पढ़ते हैं। पुराणों के अनुसार इन्द्र के वज्र के भय से मैना दक्षिण समुद्र में निमग्न होकर रहने लगा है । मेहर यह विन्ध्य प्रदेश का एक शक्ति पीठस्थान है। मैहर -- ।
का शुद्धरूप 'मातृगृह' (देवी का गृह ) है | सतना स्टेशन से २२ मील दक्षिण मैहर है। यहाँ एक पहाड़ी पर शारदा देवी का मन्दिर है । स्थानीय जनश्रुति है कि ये सुप्रसिद्ध वीर आल्हा की आराध्यदेवी हैं। यह सिद्ध पीठ माना जाता है । पर्वत पर ऊपर तक जाने के लिये ५६० सीढ़ियाँ बनी हैं। प्राचीन विशाल मन्दिर को यवन आक्रमणकारियों ने तोड़ दिया था। उसके स्थान पर एक छोटा आधुनिक मन्दिर है। एक प्रस्तर फलक पर प्राचीन मन्दिर का स्थापना-अभिलेख सुरक्षित है। इसके अनुसार एक विद्वान् पण्डित ने अपने स्वर्गगत पुत्र की स्मृति में शारदा मन्दिर का निर्माण कराया था। मोक्ष - किसी प्रकार के बन्धनों से मुक्ति या छुटकारा। जीवात्मा के लिये संसार बन्धन है यह कर्म के फल स्वरूप अथवा आसक्ति से उत्पन्न होता है। शुभ और अशुभ दोनों प्रकार के कर्म बन्धन उत्पन्न करते हैं । अतः मोक्ष का साधन कर्म नहीं है। इसका उपाय है ज्ञान अथवा विद्या (अध्यात्म विद्या) । साधक को जब सत्य का ज्ञान हो जाता है कि उसके और विश्वात्मा के बीच अभेद है, विश्वात्मा अर्थात् परब्रह्म ही एक मात्र सत्ता है; संसार कल्पित, मायिक और मिथ्या है; संसार में सुखदुःख जन्म-मरण भी कल्पित और मिथ्या है, तब उसके ऊपर कर्म-फल और संसार का प्रभाव नहीं पड़ता और वह इनके बन्धनों से मुक्त हो जाता है । परन्तु यह निषेधात्मक स्थिति न होकर विशुद्ध और पूर्ण आनन्द को स्थिति है। भक्तिमार्गी सम्प्रदायों में भक्ति द्वारा प्रसन्न भगवान् के प्रसाद से मुक्ति अथवा मोक्ष की प्राप्ति
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