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रामजयन्ती-रामनवमी
(६) लंकाकाण्ड (७) उत्तरकाण्ड । रामचरितमानस वेदान्तसार के प्रणेता स्वामी सदानन्द सोलहवीं शताब्दी मूलतः काव्य है किन्तु इसका उद्देश्य है भारतीय धर्म और में वर्तमान थे। नृसिंह सरस्वती ने सं० १५९८ विक्रमी दर्शन का प्रतिपादन करना । इसलिए इसमें उच्च दार्श- में वेदान्तसार की पहली टीका लिखी थी, रामतीर्थ निक विचार, धार्मिक जीवन और सिद्धान्त-वर्णाश्रम, उनके परवर्ती थे। अतः उनका स्थितिकाल सत्रहवीं अवतार, ब्रह्मनिरूपण और ब्रह्मसाधना, सगुण-निर्गुण, शताब्दी होना चाहिए। उनके गुरु स्वामी कृष्णतीर्थ थे । मूर्तिपूजा, देवपूजा, गो-ब्राह्मण रक्षा, वेदमार्ग का मण्डन, स्वामी रामतीर्थ ने 'संक्षेपशारीरक' के ऊपर 'अन्वयार्थ अवैदिक और स्वच्छन्द पन्थों की आलोचना, कुशासन की प्रकाशिका' एवं शङ्कराचार्यकृत 'वेदान्तसार' पर 'विद्वन्मनोनिन्दा, कलियुगनिन्दा, रामराज्य की प्रशंसा आदि विषयों रञ्जिनी' नाम की टीका लिखी है। इसके अतिरिक्त का सुन्दर प्रतिपादन हुआ है। इसी प्रकार पारिवारिक उन्होंने एक टीका मैत्रायणी उपनिषद् पर भी लिखी है । सम्बन्ध और प्रेम, पातिव्रत, पत्नीव्रत, सामाजिक व्यवहार, (२) अध्यात्म ज्ञान और त्याग-वैराग्य के लिए नैतिक आदर्श आदि का विवेचन भी इसमें यत्र-तत्र भरा प्रसिद्ध आधुनिक काल के एक आदर्श संन्यासी । ये पंजाब पड़ा है। मध्ययुग में जब चारों ओर से हिन्दू धर्म के में उत्पन्न और तीर्थराम नाम से प्रसिद्ध गणित के ऊपर विपत्तियों के बादल छाये हुए थे और वेद तथा ____ अध्यापक थे। विरक्त अवस्था में ये रामतीर्थ या 'राम शास्त्रों का अध्ययन शिथिल पड़ गया था, तब इस एक बादशाह' कहलाते थे। देश-विदेश में पर्यटन करते हुए ग्रन्थ ने उत्तर भारत में हिन्दू धर्म को सजीव और अन्त में ये उत्तराखण्ड में तपस्या करने लगे और इसी क्रम अनुप्राणित रखा । लोकभाषा में होने से सर्वसाधारण पर में गंगाप्रवाह में ब्रह्मलीन हो गये। इसका प्रभाव व्यापक रूप से पड़ा। महाभारत की तरह रामदास-(१) महाराष्ट्र के भक्तों में प्रसिद्ध संत, रामाइस ग्रन्थ ने भी एक प्रकार से संहिता का रूप धारण नन्दी मत से प्रभावित और कवि महात्मा नारायण हुए। किया। धार्मिक और सामाजिक विषयों पर यह उदाहरण पीछे इनका नाम समर्थ रामदास पड़ा। स्थितिकाल का काम देने लगा। इसकी लोकप्रियता का रहस्य था १६०८ से १६८१ ई० तक था। इनकी कविता सामान्य इसकी समन्वय की नीति । इसलिए सभी धार्मिक सम्प्रदायों लोगों द्वारा उतनी ग्राह्य नहीं हई, जितनी विचारशील ने इसका आदर किया। इस एक ग्रन्थ ने जितना लोक- ज्ञानियों द्वारा आदत हुई। १६५० ई० के बाद महाराज मङ्गल किया है उतना बहुत से पन्थ और सम्प्रदाय भी। शिवाजी पर इनका बड़ा प्रभाव हो गया था। 'दासबोध' मिलकर नहीं कर पाये।
नामक इनकी पुस्तक धार्मिक से अधिक दार्शनिक है। रामजयन्ती-भगवान् राम का जन्म चैत्र शुक्ल नवमी को रामदासी नामक एक लघु सम्प्रदाय इनके नाम से प्रचलित हुआ था, इसलिए यह जयन्ती चैत्र शुक्ल नवमी को मनायी
है । इसका अपना साम्प्रदायिक चिह्न तथा पवित्र मन्त्र है। जाती है। इस अवसर पर व्रत, पूजा, कीर्तन, मङ्गल- केन्द्र है इसका सतारा के निकट सज्जनगढ़, जहाँ रामदासवाद्य, नाच, गान आदि होता है।
जी की समाधि, रामचन्द्रजी का मन्दिर एवं रामदासी रामटेक-वनवास के समय राम के टिकने का स्थान या मठ है । वहाँ इस सम्प्रदाय के अनेक साधु रहते हैं । पड़ाव । यह एक तीर्थ है। नागपुर से रामटेक स्टेशन (२) सिक्खों के दस गुरुओं में से तीसरे गुरु रामदास २६ मील है। वहाँ से बस्ती एक मील है। पास में राम- थे। ये अमरदास के शिष्य थे। इन्होंने अनेक पद लिखे हैं गिरि नामक पर्वत है। ऊपर श्रीराममन्दिर है। सामने जो 'ग्रन्थ साहब' में संगृहीत है । वराह भगवान् की मूर्ति है। दो मील पर रामसागर रामदासी पंथ-दे० 'रामदास' । तथा अम्बासागर नामक दो पवित्र सरोवर हैं। इनके रामनवमी-चैत्र शुक्ल नवमी को रामनवमी कहते हैं । किनारे कई मन्दिर हैं। रामटेक में एक जैनमन्दिर भी इसी दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। इस दिन है। कुछ विद्वानों का मत है कि कालिदास के मेघदूत का वैष्णव मन्दिरों में राम का जन्मोत्सव मनाया जाता है। रामगिरि यही है । दे० मिराशी : 'कालिदास' ।
बहत से तीर्थों में इस तिथि को मेला भी लगता है, अयोध्या रामतीर्थ स्वामी-(१) वेदान्तसार के टीकाकार। पुरी में विशेष समारोह होता है।
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