________________
५५४
प्रकार के दुःख किसी को स्वप्न में भी नहीं हुए । ] पूरे विवरण के लिए दे० रामचरितमानस, उत्तर काण्ड । रामराव शिवखों के गुरु हरराय के पुत्र का नाम रामराय था। इन्होंने रामरंजा पंथ (सहिजचारियों की एक शाखा ) चलाया । देखिए 'रामरंजा ।'
रामलीला रामायणकथा का नाटकीय रूप । उत्तर भारत के प्रमुख गांवों तथा नगरों में शारदीय दुर्गोत्सव के समय रामलीला प्रदर्शित होती है। रामलीला का प्रचलन गोस्वामी तुलसीदासजी ने प्रारम्भ किया था। इसमें रामायण के मुरूप-मुख्य स्थल रामजन्म, यज्ञरक्षा, स्वयंवर, वनगमन, सूर्पणखा नासिका कर्त्तन, सीताहरण, राम सुग्रीव-मैत्री सीता की खोज, राम-रावण युद्ध, भरतमिलाप, रामराजसिंहासनप्राप्ति आदि दृश्य नाट कीय ढंग से दिखाये जाते है। समस्त भारत में काशी एवं रामनगर की रामलीलायें प्रसिद्ध हैं। रामलीला की प्रत्येक घटना के प्रदर्शन के लिए यहाँ अलग-अलग स्थान बने हुए हैं। रामलीला की व्यवस्था भूतपूर्व काशीनरेश की ओर से होती है।
1
रामविजय - महाराष्ट्र भक्तों में सन्त श्रीधर ( १६७९ - १७२८ ) भी प्रसिद्ध हैं । इनकी लोकप्रिय रचना है 'रामविजय' ।
रामसनेही सम्प्रदाय इसके प्रवर्तक महात्मा रामचरन है ।
सम्प्रदाय की स्थापना १६५० ई० के लगभग हुई। रामचरन ने अनेक बानियाँ एवं पद रचे हैं। इस सम्प्रदाय के तीसरे गुरु दूल्हाराम ने १०,००० पद एवं ४,००० दोहे रचे थे। इनके प्रार्थनामन्दिर रामद्वारा कहलाते हैं जो अधिकांश राजस्थान में पाये जाते हैं। पूजा में गान तथा शिक्षा सम्मिलित हैं। इनका मुख्य केन्द्र शाहपुर है, किन्तु ये जयपुर, उदयपुर तथा अन्य स्थानों में भी रहते हैं । इनके अनुयायी गृहस्थों में नहीं है। अतएव यह सम्प्रदाय अवनति पर है और केवल कुछ साधुओं का वर्ग मात्र रह गया है ।
--
रामाई पण्डित - मयूर भट्ट की व्याख्या में 'धर्म' नामक सम्प्रदाय का उल्लेख किया गया है । यह सम्प्रदाय बौद्ध तांत्रिकवाद का अवशेष था । इस सम्प्रदाय का पहली प्राप्त रचना ' शून्य पुराण' है जिसके रचयिता रामाई पण्डित हैं । यह ११वीं शताब्दी की रचना है । रामाई
Jain Education International
रामराय रामानन्द
पण्डित ने इसमें 'धर्म सम्प्रदाय' के धार्मिक दर्शन एवं यज्ञादि का वर्णन किया है। देखिए 'मयूर भट्ट । रामाचार्य - माध्य मतावलम्बी आचार्य व्यासराज इनके गुरु
थे । रामाचार्य ने 'तरङ्गिणी' नामक वेदान्त व्याख्या में अपना कुछ परिचय दिया है। इनके विद्वान् पिता का नाम विश्वनाथ था, जन्म व्यासकुल के उपमन्यु गोत्र में हुआ था । ये गोदावरी के तट पर अंधपुर नामक गाँव में रहते थे । बड़े भाई का नाम नारायणाचार्य था । कहते हैं, अपने गुरु की आज्ञा से इन्होंने मधुसूदन सरस्वती का विद्याशिष्यत्व ग्रहण किया और उनके अद्वैतमत का तात्पर्य जानकर बाद में अद्वैतमत का खण्डन किया । इससे इनका काल सत्रहवीं शताब्दी ज्ञात होता है । इन्होंने न्यायामृत की टीका 'तरङ्गिणी' के नाम से लिखी थी । तरङ्गिणी से इनके अपूर्व पाण्डित्य का पता लगता है। इसमें इन्होंने अद्वैत मत का खण्डन और माध्व मत का प्रतिपादन किया है । ब्रह्मानन्द सरस्वती ने तरङ्गिणीकार रामाचार्य के मत का खण्डन करने के लिए 'अद्वैतसिद्धि' पर 'लघुचन्द्रिका' नामक टीका लिखी है।
रामाज्ञाप्रवन - गोस्वामी तुलसीदास की रचनाओं में एक 'रामाज्ञाप्रश्न' भी है। यह पद्यों का सङ्कलन है, जिसका प्रयोग यात्रारंभ अथवा किसी महत्वपूर्ण कार्य को आरम्भ करते समय शकुन के रूप में करते हैं। इसकी सामग्री रामचन्द्रजी का जीवनचरित है जो सात काण्डों में है । शकुन का विचार एक पथ को चुनकर ( बिना देखे ) करते हैं। गोस्वामीजी के एक मित्र पंडित गंगाराम ज्योतिषी काशी में प्रहलादघाट पर रहा करते थे । रामाज्ञा प्रश्न उन्हीं के अनुरोध से रचित माना जाता है । रामानन्द — उत्तर भारत में रामभक्ति को व्यापक रूप देने वाले वैष्णव महात्मा । इनके पूर्व अनेक वैष्णव भक्त हो चुके हैं, जिनमें नामदेव तथा त्रिलोचन महाराष्ट्र प्रान्त में एवं सदन तथा बेनी आदि उत्तर भारत में प्रसिद्ध रहे हैं। किन्तु वास्तविक रामोपासक सम्प्रदाय स्वामी रामानन्द से प्रचलित माना जाता है। इनका नाम आधुनिक हिन्दू धर्म में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है, किन्तु दुर्भाग्यवश इनके बारे में बहुत कम वृत्तान्त ज्ञात है। इनके जीवनकाल की विभिन्न तिथियाँ प्रस्तावित हैं किन्तु अब इन्हें समय की निश्चित सीमा में बांधना सम्भव हो गया है। इनके एक राजकुलीन शिष्य पीपा १४२५ ई० में पैदा हुए। दूसरे
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org