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रामेश्वरम् रुक्मिणी
चली आ रही अव्यवस्था को व्यवस्था में परिणत करने के रामोपासक सम्प्रदाय-श्रीसम्प्रदाय के आचार्य रामानन्द लिए हुआ था। परशुरामावतार के समय क्षात्र और स्वामी ने वैष्णव धर्म के संरक्षण के लिए अपूर्व प्रयत्न ब्राह्म शक्तियों का सामञ्जस्य समाप्त हो गया था। अतः किया। इन्होंने रामोपासक सम्प्रदाय की स्थापना की धार्मिक व्यवस्था सुदृढ नहीं रह गयी थी। ब्राह्मण वंश में जिसके सबसे बड़े प्रचारक तुलसीदास हए। भी रावण जैसे अत्याचारी निशाचरों का जन्म होने लगा राम्य जामाता मुनि-राम्य जामाता मुनि (१३७०-१४४३) था । अतएव त्रेता युग के समय भगवत्शक्ति के अवतार को मतवाल मुनि भी कहते हैं। श्रीरङ्गम की (श्रीवैष्णव) की आवश्यकता प्रतीत हुई। यह अवतार क्षत्रिय वर्ण में शाखा के अध्यक्ष वेदान्तदेशिक के विरोध में इस सम्प्रदाय इसलिए हुआ कि उस समय क्षत्रिय कुल के लिए परम के अन्तर्गत दो और शाखाएँ आरम्भ हुई जो क्रमशः आदर्श मानवचरित्र निर्माण की आवश्यकता थी, जिससे उत्तरी तथा दक्षिणी शाखाएँ कहलाती है । इनमें से दक्षिणी कि चरित्र निर्माण के साथ ही राक्षसावस्था को सम्प्राप्त शाखा या 'तेलङ्गइ' के नेता थे राम्य जामाता मुनि । ये ब्राह्मणशक्ति को नष्ट कर, क्षात्रशक्ति के साथ ब्रह्मशक्ति वेदान्तदेशिक के पश्चात श्रीरङ्गम में शिक्षक थे। इनके का धर्मानुकूल सामञ्जस्य किया जा सके । इसीलिए भगवान् भाष्य तथा विद्वत्तापूर्ण ग्रन्थ पर्याप्त प्रयोग में आते हैं। रामरूप में क्षत्रियवंश में अवतरित हुए । इसी प्रकार भगवान् इन उत्तरी तथा दक्षिणी शाखाओं के नेताओं के समय से की शक्ति महामाया ने भी आदर्श पातिव्रत की रक्षा के श्रीवैष्णव सम्प्रदाय की शाखाओं का अन्तर बढ़ता गया। लिए एवं सतीत्वधर्म संरक्षणार्थ सीता के रूप में अवतार इनके ग्रन्थ हैं 'तत्त्वनिरूपण' तथा 'उपदेशरत्नमाला' । ग्रहण क्यिा था । विस्तृत चरित्र के लिए दे० 'रामायण' । रासलीला-कृष्णभक्ति में आनन्द की उत्कट अभिव्यक्ति के रामेश्वर-(१) एक शवाचार्य ( १७५० ई०)। इन्होंने लिए कृष्ण के बालचरितों का अनुकरण करना रासलीला 'शिवायन' नामक ग्रन्थ रचा है।
है। इसमें मण्डलनृत्य किया जाता है । महाप्रभु चैतन्य के (२) रामेश्वर (म् ) प्रसिद्ध शैव तीर्थस्थान. जो दक्षिण रूप तथा सनातन आदि छः अनुयायी वृन्दावन में निवास समुद्र के सेतुबन्ध पर स्थित है । कहते हैं, इनकी स्थापना करते थे । अनेक ग्रन्थों की रचना के साथ ही साथ इन भक्तों भगवान् राम ने की।
ने रासलीला का वार्षिक उत्सव भी प्रारम्भ किया। इसमें रामेश्वरम्-रामसेतु नामक रेतीले टीले का सिलसिला कृष्ण के साथ गोपियों के नृत्य का प्रदर्शन ही मुख्य होता रामेश्वरम् द्वीप से लेकर मन्नार की खाड़ी से होता हुआ है। बीच में कृष्ण तथा उनके चारों ओर मण्डलाकार श्रीलङ्का के तट तक चला गया है। इसकी लम्बाई ३० गोपियों का समूह मिलकर एक मण्डल का निर्माण करता मील है । कहा जाता है कि रामायण के नायक श्री राम है । भगवान् के सायुज्य में नृत्य द्वारा रस ( प्रेम ) का ने जब बन्दर तथा भालुओं की सेना के साथ लङ्का के
परिपाक करना इसका मुख्य उद्देश्य है । भागवतपुराण राजा रावण पर आक्रमण करना चाहा तो समुद्र पार
(रासपञ्चाध्यायी ) में भगवान कृष्ण के रास का रहस्यमय करना सेना के लिए कठिन जान पड़ा। राम ने यहाँ पर वर्णन है। एक पुल बनवाया जो आज भी भग्नावस्था में पड़ा है। राहु-राहु का ( जो सूर्य को ढक लेता है ) प्रसंग अथर्वभारतीय तट से लेकर श्रीलङ्का के तट तक समुद्र का वेद के एक सूक्त (१९.९.१० ) में आता है। पाठ अनिउथला होना और वह भी एक सीध में, इस विश्वास को श्चित है, किन्तु अर्थ राहु (अन्धकार) ही है। परवर्ती पुष्ट करता है। यह भारतवर्ष का अन्तिम दक्षिणी छोर ज्योतिष में राहु सौरमण्डल के नवग्रहों में से एक है। यह है जो समुद्र को स्पर्श करता है । इसी परम्परा के अनुसार दुष्ट ग्रह माना जाता है। रामचन्द्रजी ने इस स्थान पर शंकरजी की मूर्ति स्थापना की रुक्मिणी-विदर्भ देश के राजा भीष्मक की पुत्री, जिसने थी। रामकथा से सम्बन्धित होने से रामेश्वरम् हिन्दुओं का शिशुपाल के बदले द्वारकानाथ कृष्ण का स्वयंवरण किया प्रमुख तीर्थ स्थान हो गया है तथा देश के कोने-कोने से ____ और उनकी पटरानी हुई। पण्ढरपुर ( महाराष्ट्र ) के तीर्थयात्री यहाँ आते हैं। यहाँ का विशाल रामेश्वरम् विलमन्दिर में विट्ठल (विष्णु ) की रानियों अथवा मन्दिर द्राविड़ शैली के मन्दिरों में अग्रगण्य है।
पत्नियों की मूर्तियाँ उनके पास ही स्थापित हुई है। इनमें
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