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रामोत्तरतापनीय उपनिषद् रामचरितमानस
रामपूजा के अनेक पद्धतिग्रन्य है। सात्वत संहिता इनमें से एक है । अध्यात्मरामायण में जीवात्मा एवं राम का तादात्म्य सम्बन्ध दिखाया गया है। इसका १५वाँ प्रकरण 'रामगीता' है। भावार्थ रामायण एकानाथ नामक महाराष्ट्रीय भक्तरचित १६वीं शताब्दी का ग्रन्थ है। मद्रास से एक अन्य रामगीता प्रकाशित हुई है जो बहुत ही आधुनिक है। इसके पात्र राम और हनुमान् हैं तथा इसमें १०८ उपनिषदों की सामग्री का उपयोग हुआ है । राम सम्प्रदाय का महान् उच्च ग्रन्थ है रामचरितमानस जिसे वाल्मीकीय रामायण के हिन्दी प्रतिरूप गोस्वामी तुलसीदास ने प्रस्तुत किया है । भगवद्गीता तथा भागवत पुराण जैसे कृष्णसम्प्रदाय के जैसे लिए हैं, वैसे ही तुलसीदासकृत रामचरितमानस तथा वाल्मीकि रामायण रामसम्प्रदाय के लिए पारायण ग्रन्थ हैं ।
रामानुजाचार्य की परम्परा में स्वामी रामानन्द ने १४वीं शताब्दी में 'रामावत' उपनामक रामसम्प्रदाय की स्थापना की । की हदास नामक एक सन्त ने रामानन्द से अलग होकर 'खाकी' सम्प्रदाय प्रचलित किया। दे० 'श्रीराम' । रामोत्तरतापनीय उपनिषद् - राम सम्प्रदाय की यह उपनिषद् प्राचीन उपनिषदों के परिच्छेदों के गठन से बनी है। और परवर्ती काल की है।
रामकृष्ण - ( १ ) कर्ममीमांसा के एक आचार्य ( १६०० वि०) जिन्होंने पार्थसारथि मिश्र द्वारा रचित 'शास्त्रदीपिका' की 'सिद्धान्तचन्द्रिका' नामक टीका लिखी ।
(२) विद्यारण्य के एक शिष्य का नाम भी रामकृष्ण था, जिन्होंने 'पञ्चदशी' की टीका लिली । रामकृष्ण दीक्षित लाट्यायन श्रौतसूत्र ( सामवेद ) के एक भाष्यकार । साममन्त्रों पर जो सामवेद का व्याकरण ग्रन्थ है और जिसका एक नाम 'सामलक्षणम् प्रातिशाख्य- सूत्रम्' भी है, उस पर रामकृष्ण दीक्षित ने वृत्ति लिखी है। रामकृष्ण परमहंस कलकत्ता के निकटस्थ दक्षिणेश्वर के स्वामी रामकृष्ण परमहंस प्रसिद्ध शाक्त महात्मा थे। इनके एक गुरु तोतापुरी दसनामी संन्यासियों की शाखा के थे । ये उच्च कोटि के साधक संत थे । कहते हैं कि स्वयं भगवती दुर्गा ने दर्शन देकर इनको कृतार्थ किया था। इनके नाम को अमर किया इनके योग्य शिष्य स्वामी विवेकानन्द ने इनके प्रयत्नों के फलस्वरूप रामकृष्ण परमहंस के नाम
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पर न केवल भारतव्यापी वरन् विश्वव्यापी 'मिशन' कार्यरत है जो अनेकानेक क्षेत्रों में, देश व विदेशों में अपनी सेवाएँ वितरित कर रहा है। इस मिशन की देख-रेख में शैक्षणिक संस्थाएँ, औषधालय, पुस्तकालय, अनाथालय एवं साधनाश्रम, मठ आदि चल रहे हैं।
रामकृष्ण - महाराष्ट्र के भागवत लोग आज भी प्राचीन भागवत मन्त्र 'ओम् नमो भगवते वासुदेवाय' का प्रयोग करते हैं, जबकि सार्वजनिक प्रयोग में विष्णुस्वामी मन्त्र 'राम कृष्ण हरि' ही प्रचलित है । रामगीता दे० 'राम' |
रामचन्द्र गृह्यसूत्र पद्धति - रामचन्द्र नामक एक विद्वान् ने नैमिषारण्य में रहकर शांखायनगृह्यसूत्र का एक भाग्य रचा है। इसे रामचन्द्रगृह्यसूत्र पद्धति कहते हैं । रामचन्द्रतीर्थ - आनन्दतीर्थ (वैष्णवाचार्य मध्यमेवेद संहिता के कुछ अंशों का श्लोकबद्ध भाष्य किया था। रामचन्द्रतीर्य ने उस भाष्य की टीका लिखी है । रामचन्द्र दोलोत्सव – चैत्र शुक्ल तृतीया को इस उत्सव का विधान है। रामचन्द्रजी की प्रतिमा झूले में विराजमान कर उसे एक मास तक झुलाना चाहिए। जो लोग राम की प्रतिमा को झूला झूलते हुए देखते हैं उनके सहस्रों जन्म के पाप नष्ट हो जाते हैं । रामचरन - कवीर की शिक्षाओं से प्रभावित होकर अनेक छोटे-मोठे सम्प्रदाय स्थापित हुए। इनमें 'रामसनेही' सम्प्रदाय भी एक है । इसके संस्थापक थे महात्मा रामचरन, जिनका स्थितिकाल १८वीं शताब्दी का उत्तरार्ध कहा जाता है । रामचरन ने अपनी शिक्षाओं और भजनों का संग्रह 'बानी' नाम से लिखा है। रामचरितमानस यह रामसम्प्रदाय का पवित्र पठनीय और प्रामाणिक ग्रन्थ है। इसकी रचना लगभग १५८४ ई० में काशी में गोस्वामी तुलसीदास ने की। इसकी भाषा अवधी है, किन्तु इस पर व्रजभाषा और भोजपुरी का भी प्रभाव है । इसकी अधिकांश सामग्री वाल्मीकीय रामायण से ली गयी है परन्तु इस ग्रन्थ में भारतीय परम्परा का सारांश संगृहोत और प्रतिपादित है ।
रामचरितमानस में निबन्ध रूप से भगवान् राम का चरित्र वर्णित है । इसमें सात सोपान अथवा काण्ड हैं( १ ) बालकाण्ड ( २ ) अयोध्याकाण्ड ( ३ ) अरण्य - काण्ड ( ४ ) किष्किन्धाकाण्ड (५) सुन्दरकाण्ड
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