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मगेन्द्र आगम-मेना (मेनका)
मगेन्द्र आगम-एक महत्त्वपूर्ण आगम । यह कामिकागम शत्रुओं का दमन करने वाली है । वह मुझ धारण करने (प्रथम आगम) का प्रथम भाग, अथवा ज्ञान भाग है। वाले की सम्यक् रक्षा करे और कभी अप्रसन्न न हो । ] मृगेन्द्र संहिता-श्रीकाण्ठाचार्य ने मृगेन्द्र संहिता की वृत्ति प्राकृतिक वातावरण में रहने वाले बटुक और तपएवं अघोर शिवाचार्य ने इसकी व्याख्या लिखी है। स्वियों को स्फूर्ति देने और रोगों से बचाने में मेखला मृत्यु-ऋग्वेद (७.७९,१२) तथा परवर्ती साहित्य में मृत्यु अद्भुत समर्थ होती है। इसीलिए इसे मन्त्र में ऋषियों को भयसूचक कहा गया है । एक सौ एक प्रकार की मृत्यु की बहिन ( स्वसा देवी सुभगा मेखलेयम् ) कहा गया है। कही गयी है, जिनमें वृद्धावस्था की स्वाभाविक के सिवा दे० 'मुञ्ज' । मृत्यु के एक सौ प्रकार हैं । पूरे वैदिक साहित्य में जोवन- मेघपाली तृतीया-आश्विन शुक्ल तृतीया को स्त्री तथा काल एक सौ वर्षों का वर्णित है। वृद्धावस्था के पहले पुरुष दोनों के लिए मेघपाली नामक लता के पूजन का मरण (पुरा जरसः) निश्चित जीवनकाल के पहले मरने विधान है । इस लता के पत्ते पान के पत्तों के समान (सुरा आयुषः) के समान था। दूसरी तरफ बृद्धावस्था में होते हैं तथा यह प्रायः उद्यानों, पहाड़ियों एवं ग्रामीण शक्ति क्षीण हो जाने की बुराई का भी अनुभव किया मार्गों में पायी जाती है । इसका पूजन भिन्न-भिन्न प्रकार गया है (ऋग्वेद १.७१,१०,१७९,१)। अश्विनों के चम- के फलों तथा अंकुर निकले हुए सप्त धान्यों से करना त्कारों में से एक वृद्ध च्यवन को पुनः नवयुवक तथा चाहिए । इस आचरण से समस्त पापों का नाश हो जाता शक्तिशाली बनाना था । अथर्ववेद में आयुष्य-प्राप्ति तथा है, विशेष रूप से व्यापारियों के उन पापों का जो कम मृत्यु से मुक्ति के अनेक मन्त्र है। शव को गाड़ने तथा तौलने या नापने से होते रहते हैं । जलाने दोनों प्रकार की प्रथा थी। किन्तु गाड़ना कम मेधाजनन-एक वैदिक संस्कार । इसका अर्थ है मेधा पसन्द किया जाता था। प्रायः शव की दाहक्रिया होती (= प्रज्ञा ) उत्पन्न करना। यह जातकर्म ( जन्म के थी। मृत्यु के बाद पुनः इस जगत में आकर जीवनचक्र समय किये गये धार्मिक कृत्य ) और उपनयन के अवसर को दुहराना आर्यों को मान्य था । ऋग्वेद का कथन है पर किया जाता था । सावित्री ( गायत्री मन्त्र) के साथ कि बुरे कार्य करने वालों के लिए बुराइयाँ प्रतीक्षा करती मेधाजनन संस्कार होता था। हैं, किन्तु अथर्ववेद तथा ब्राह्मणों के समय से नरक के मेधातिथि-(१) ऋग्वेदीय वाष्कल उपनिषद् में एक दण्ड की कल्पना चल पड़ी। ब्राह्मण ग्रन्थ ही (शत० ब्रा०
उपाख्यान है कि इन्द्र मेष का रूप धरकर कण्व के पुत्र ११.६,१; जै० ब्रा० १.४२-४४) सबसे पहले अच्छे या मेघातिथि को स्वर्ग ले गये। मेधातिथि ने मेषरूपी इन्द्र बुरे कार्यों का परिणाम स्वर्ग या नरक के रूप में
से पूछा "तुम कौन हो" ? उन्होंने उत्तर दिया "मैं विश्वेबताते हैं।
श्वर हूँ; तुमको सत्य के समुज्ज्वल मार्ग पर ले जाने के मेखला-(१)मूंज की बनी करधनी को मेखला कहते
लिए मैंने यह काम किया है; तुम कोई आशंका मत है। इसको ब्रह्मचारी उपनयन के समय और तपस्वी सदा
___ करो।" यह सुनकर मेघातिथि निश्चिन्त हो गये। साधारण करते हैं । यह ऋत अथवा नैतिकता की रक्षिका
(२) मनुस्मृति के प्रसिद्ध भाष्यकार का नाम है। मानी गयी है।
मेध्य-मेधा (स्मृति शक्ति) के लिए हितकारी; पवित्र; श्रद्धायाः दुहिता तपसोऽधिजाता स्वसा ऋषीणां भूत- शुद्ध करके ग्राह्य अर्थात् 'यज्ञ में आहुति करने योग्य' । कृता बभूव । अथर्व ६.१३३.४
शुद्ध अथवा पवित्र पदार्थ मेध्य समझा जाता है। ऋस्य गोप्ती तपश्चरित्री ध्नतीरक्षः सहमाताः अरातीः ।। (१) ऋग्वेद (८.५२,२ ) में एक यज्ञकर्ता का सा मा समन्तमभिपर्येहि भद्रे धस्तेि सुभगे मा ऋषाम । नाम मध्य है। शाङ्खायन श्रौतसूत्र में भूल से इसको
[ मेखला श्रद्धा की कन्या, तप से उत्पन्न, ऋषियों प्रस्कण्व काण्व का संरक्षक पृषध्रमेध्य मातरिश्वा समझा की बहिन तथा भूतों ( जीवधारियों) की उत्पादिका है। गया है। वह ऋत ( सुव्यवस्था) की रक्षा करने वाली, तप का मेना ( मेनका )-(१) मेना या मेनका का उल्लेख आचरण करने वाली, राक्षसों का हनन करने वाली, ऋग्वेद ( १.५१,१३ ) तथा ब्राह्मणों में वृषणस्व की पुत्री
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