________________
५३४
प्राप्त होता है । निस्सन्देह दोनों का जन्म दो पौराणिक कचाओं से होता है। वे हमें मनुष्य के जीवन के आदिव भविष्य का परिचय देते हैं।
ऋग्वेदीय धारणानुसार मनुष्यजाति के शीर्षस्थान पर आदि पुरुष मनु । जो प्रथम यज्ञ करने वाले थे (ऋ० १०.६३.७) हैं, या यम हैं जो पृथ्वी से स्वर्ग तक के पथ का अनुसन्धान कर चुके थे (ऋ० १० १४.१ -२) । यम एवं यमी को मानवजाति का माता-पिता मान सकते हैं । भाईबहिन का ॠग्वेदीय कथनोपकथन ( १०.१० ) इस प्रकार के सम्बन्ध की नैतिकता पर प्रकाश डालता है । यमी इस बात पर जोर देती है कि यम ही एक मात्र पुरुष है और विश्व को बसाने के प्रयोजनार्थ मानवसन्तानों की आवश्यकता है। दूसरी ओर यम भाई-बहिन के संयोग पर नैतिक आपत्ति उपस्थित करता है । जान पड़ता है कि यम एवं यमी प्रारम्भिक अवस्था में प्राकृतिक उपादानों के मानवीकरण के रूप थे, यथा चन्द्र तथा उषा एवं आकाश तथा पृथ्वी । यम के दो सन्देशवाहक कुत्ते हैं जो 'सरमा' के पुत्र होने के कारण सारमेय कहलाते हैं। उनका वर्णन (० १०.१४.१०-१२) बार आंखों, चौड़ी नाक, भूरे रंग वाले रूप में किया गया है । ये पृथ्वी से स्वर्ग के पथ की रक्षा करते हैं, मृत्यु के पात्रों को चुनते हैं तथा स्वर्गीय यात्रा में उनकी देख-भाल करते हैं ।
पौराणिक यम मृत्यु के देवता है, जिनका महिष (भैसा) वाहन है । उनके दो रूप हैं: यमराज और धर्मराज । यमराज रूप से वे दुष्ट मनुष्यों को दण्ड देकर नरकादि में भेजते हैं, धर्मराज के रूप में धर्मात्मा मनुष्य को स्वर्गादि में भेजकर पुरस्कृत करते हैं। यमचतुर्थी - शनि के दिन चतुर्थी हो और भरणी नक्षत्र हो तो यम का पूजन होना चाहिए। यम भरणी नक्षत्र का स्वामी है । इस व्रत से सात जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं । यमदीपदान कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को सायंकाल गृह के बाहर दीपों की पंक्ति प्रज्वलित की जानी चाहिए। इससे दुर्घटना जन्य ( अकाल ) मृत्यु रुक जाती है । यमद्वितीया भविष्योत्तर पुराण के अनुसार कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यमराज के प्रीत्पर्य यह व्रत किया जाता है। बहिनें इसको अपने भाइयों की मृत्यु के देवता से रक्षाप्राप्ति के लिए करती हैं । इस त्यौहार दिन बहिनों के
के
--
-----
Jain Education International
यमदीपदान-यमुना
घर जाकर भोजन करने, उनसे टीका लगवाने एवं उन्हें उपहार देने का प्रचार लगभग सम्पूर्ण भारत में है । इसे 'भैयादूज' या 'भ्रातृद्वितीया' भी कहते हैं ।
यमद्वितीया के दिन यम की बहिन और सूर्यपुत्री यमुना में स्नान करने का विधान है। इससे यमराज प्रसन्न होते हैं। इस पर्व पर मथुरा मे यमुनास्नान करने का भारी मेला होता है ।
यमल – यमल का अर्थ है जोड़ा । युग्म देवता तथा उनकी शक्ति की एकता ( यौन संयोग ) इससे सूचित होती है । यमल शब्द से ही 'वामल' बना है, जो शिव-पार्वती जैसे युग्म देवताओं के संवाद रूप में विरचित ग्रन्थ है । यमादर्शनत्रयोदशी मार्गशीर्ष मास की त्रयोदशी को सप्ताह के पुनीत दिनों में ( रविवार और मंगलवार छोड़कर ) मध्याह्न से पूर्व ही तेरह ब्राह्मणों को निमंत्रित करना चाहिए। उन्हें तिल का तेल शरीर मर्दन के लिए तथा गर्म जल स्नान के लिए दिया जाय, तदनन्तर उन्हें अत्यन्त स्वादिष्ठ भोजन कराया जाय और यह कार्य एक वर्ष तक प्रति मास हो तो इस आचरण से व्रती को कभी भी यमराज का मुख नहीं देखना पड़ेगा । यमुना - एक प्रसिद्ध और पवित्र नदी यह यमुना ( युग्म में से एक ) इसलिए कही जाती है कि यह गङ्गा के समानान्तर बहती है । इसका उल्लेख ऋग्वेद में तीन बार हुआ है। ऋग्वेदानुसार (७.१८.१९) त्रित्सु एवं सुदास ने शत्रुओं के ऊपर यमुनातट पर महान् विजय प्राप्त की थी। हॉपकिन्स का यह मत कि यहाँ यमुना परुष्णीका अन्य नाम है, अग्राह्य है, क्योंकि त्रिमुओं का राज्य यमुना व सरस्वती के बीच में स्थित था । अथर्ववेद ( ४.९.१०) में यमुना के अन का उल्लेख त्रिककुद (क कुद ) के साथ हुआ है । ऐतरेय ब्राह्मण तथा शतपथ ब्रा० के अनुसार भरतों की ख्याति यमुना तट की विजय से हुई । अन्य ब्राह्मण भी यमुना को उद्धृत करते हैं । मन्त्रपाठ (२.११.१२) में सात्य लोग इसके तट पर निवास करने वाले कहे गये है।
पुराणों के अनुसार यम (सूर्य) की पुत्री होने के कारण यह नदी यमुना कहलाती है भारत की साठ पवित्र नदियों में इसकी गणना है
---
गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति । कावेरि नर्मदे सिन्धोजलेऽस्मिन्सन्निधि कुरु ॥
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org