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छेदनकासी के लिए ऐन्द्री महाशान्ति और अद्भुत विकारनिवारण और राज्य कामना के लिए माहेन्द्री महाशान्ति इत्यादि ।
महाशेफनग्न महाभारत में प्रथम बार लिङ्ग-पूजा का वर्णन प्राप्त होता है । अनेकानेक लिङ्गवाचक शब्दों के साथ (१३.१४,१५७) में 'महाशेफनग्न' का उल्लेख हुआ है । इसका अर्थ है 'नग्न लिङ्ग' । महाश्वेताप्रिय विधि रविवार को सूर्य ग्रहण होने पर यह व्रत आचरणीय है । एकभक्त, नक्त अथवा उपवास रखने के बाद महाश्वेता ( तथा सूर्य ) का पूजन करना चाहिए। इससे व्रती अत्युच्च स्थान प्राप्त कर लेता है। महाश्वेता मन्त्र है— ह्रीं ह्रीं सः ( कृत्य कल्पतरु, ९ तथा हेमाद्रि, २.५२१ ) । महाषष्ठी कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सूर्य वृश्चिक राशि पर हो तथा भौमवार का दिन हो तो वह महाषष्ठी कहलाती हैं । व्रतो को पंचमी के दिन उपवास रखना चाहिए और षष्ठी को अग्निपूजन कर अग्निमहोत्सव का आयोजन करना चाहिए। इसके बाद ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए | इससे समस्त दुरितों का क्षय अवश्यम्भावी है । महाष्टमी - आश्विन शुक्ल अष्टमी (नवरात्र) को महाष्टमी कहते हैं । इस दिन दुर्गा का विशेष प्रकार से पूजन होता है ।
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महासप्तमी - इस व्रत के अनुसार माघ शुक्ल पञ्चमी को एकभक्त, षष्ठी को नक्त तथा सप्तमी को उपवास का विधान है । इस अवसर पर करवीर के पुष्पों तथा लाल चन्दन के लेप से सूर्य का पूजन करना चाहिए । वर्ष को माघ मास से चार-चार महीनों के तीन भागों में बांटा जाय तथा प्रत्येक भाग में भिन्न-भिन्न रंग के पुष्प, भिन्नभिन्न प्रकार का नैवेद्य तथा धूप प्रयुक्त किया जाय । व्रत के अन्त में रथ का दान विहित है ।
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महासरस्वती तीन महाशक्तियों में से एक यं ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी हैं । दे० "महालक्ष्मी' | महासंहिता वैष्णव संहिता का नाम, जो एक आगम है। मध्वाचार्य ने अपने ग्रन्थों में महासंहिता से अनेक उद्धरण लिए हैं ।
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महासिद्धसारतन्त्र - यह तन्त्र पर्याप्त पीछे का रचा जान पड़ता है। इसमें १९२ नामों की सूची है जो तीन विभागों में घंटी है। प्रत्येक में ६४ नाम है। विभाजनों के नाम
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महाशेफनग्न-महीवास
है : विष्णुक्रान्त, रथक्रान्त एवं अश्वक्रान्त । सूची पर्याप्त नवीन है क्योंकि इसमें महानिर्वाणतन्त्र भी सम्मिलित है । १९२ नामों की सूची में वामकेश्वर की सूची से मिलते केवल १० नाम हैं ।
महास्वामी - सामसंहिता के एक भाष्यकार का नाम । महिम्नः स्तोत्र - शंकरजी की महिमा का उपस्थापक, उच्च कोटि का स्तोत्रग्रन्थ यह गन्धर्वराज पुष्पदन्त की रचना | कही जाती है। महिम्न स्तोत्र के प्रत्येक श्लोक की शिव विष्णुपरक व्याख्या मधुसूदन सरस्वती ने रची है जो निर्णयसागर प्रेस, बम्बई से प्रकाशित है |
महिष एक असुर का नाम, जो तमोगुण का प्रतीक है | दुर्गा अपनी शक्ति से इसी का छेदन करती हैं । सर्व प्रथम दुर्गा विषयक वर्णन महाभारत में प्राप्त होता है ( ४.६ ) जिसमें दुर्गा को महिषर्मादनी ( महिष को मारने वाली ) कहा गया है ।
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महिषघ्नीपूजा - आश्विन शुक्ल अष्टमी को इसका अनुष्ठान होता है। इसमें दुर्गा देवी की पूजा होती है । महिषासुर का वध करने वाली दुर्गा जी की प्रतिमा को हरिद्रायुक्त जल में स्नान कराकर चन्दन तथा केसर का प्रलेप किया जाता है । कन्याओं तथा ब्राह्मणों को भोजन कराकर उन्हें दक्षिणा प्रदान की जाती है और दीप प्रज्ज्वलित किये जाते हैं। इससे व्रती की समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
महिषी - राजा की पत्नियों में से सर्वप्रथम पटरानी, अभिषिक्त महारानी परवर्ती साहित्य में इसका उल्लेख प्रचुर हुआ है । कदाचित् ऋग्वेद में भी यह शब्द इसी अर्थ के साथ व्यवहुत हुआ है । ५.२,२५.३७, ३) अश्वमेध आदि यज्ञों में राजा के साथ वही प्रमुख भाग लेती थी। महीदास - ब्राह्मण-ग्रन्थों के एक संकलनकर्ता । ऐतरेय आरण्यक के पाँच ग्रन्थ आजकल पाये जाते हैं । इनमें से हर एक का नाम आरण्यक है। दूसरे के उत्तरार्ध के शेष के चार परिच्छेद वेदान्त ग्रन्थों में गिने जाते हैं । इसलिए उनका नाम ऐतरेय उपनिषद् है । दूसरे और तीसरे भाग को महीदास ऐतरेय ने संकलित किया। विशाल के उर ( हृदय ) से और इतरा के गर्भ से महीदास का जन्म हुआ । माता के उपाधि पायी।
नामानुसार उन्होंने नामानुसार उन्होंने ऐतरेय की
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