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माघ-कृत्य-माण्डूकायनी माघकृत्य-माघ मास में कुछ महत्त्वपूर्ण व्रत होते हैं, यथा महान् पुण्य प्रदाता माघ स्नान गंगा तथा यमुना के संगम तिल चतुर्थी, रथसप्तमी, भीष्माष्टमी, जो इस सूची में स्थल का माना जाता है । विस्तृत जानकारी के लिए दे० पृथक् ही उल्लिखित हैं । कुछ छोटे-छोटे विषय यहाँ प्रकट पद्मपुराण, ५ (जिसमें माघ स्नान के माहात्म्य को ही किए जा रहे हैं । माघ शुक्ल चतुर्थी उमा चतुर्थी कही वर्णन करने वाले २८०० श्लोक, अध्याय २१९ से २५० जाती है, क्योंकि इस दिन पुरुषों और विशेष रूप से तक प्राप्त होते हैं); हेमाद्रि, ५.७८९-७९४ आदि । स्त्रियों द्वारा कुन्द तथा कुछ अन्यान्य पुष्पों से उमा का माणिक्क वाचकर-तमिल शैवों में माणिक्क वाचकर का पूजन होता है । साथ ही उनको गुड़, लवण तथा यावक नाम प्रमुख है। तिरुमूलर के समान इन्होंने भी आगमों भी समर्पित किए जाते हैं। व्रती को सधवा महिलाओं, की शब्दावलियों का व्यवहार किया है। ये ९०० ई० के ब्राह्मणों तथा गौओं का सम्मान करना चाहिए । माघ लगभग हुए थे और असंख्य गेय पदों की रचना कर कृष्ण द्वादशी को यम ने तिलों का निर्माण किया और गये है जो छोटे और बड़े दोनों प्रकार के हैं जिन्हें तिरुदशरथ ने उन्हें पृथ्वी पर लाकर खेतों में बोया, तदनन्तर वाचकम् (श्रीवचन ) कहते हैं । माणिक्क मदुरा के देवगण ने भगवान् विष्णु को तिलों का स्वामी बनाया ।। शिक्षित एवं लब्धप्रतिष्ठ सम्पन्न व्यक्ति थे। बाद में एक अतएव मनुष्य को उस दिन उपवास रखकर तिलों से सन्त के उपदेश से प्रभावित हो गये, उनके शिष्य बन गये भगवान् का पूजन कर तिलों से ही हवन करना चाहिए। तथा संन्यासी जीवन बिताना प्रारम्भ किया। इन्होंने तदुपरान्त तिलों का दान कर तिलों को ही खाना चाहिए। अपनी विद्या व संस्कति के बल से पूर्ववर्ती सभी विद्वानों माघी सप्तमी-माघ शुक्ल सप्तमी को इस व्रत का अनुष्ठान की रचनाओं का लाभ उठाया । कविता के विषय, शैली, होता है। अरुणोदय काल में मनुष्य को अपने सिर पर छन्दों पर इनका अधिकार देखते हए ज्ञात होता है कि सात बदर बृक्ष के और सात अर्क वृक्ष के पत्ते रखकर ये महाकवि थे । इन्होंने रामायण, महाभारत, पुराणों, किसी सरिता अथवा स्रोत में स्नान करना चाहिए। तद- आगमों तथा प्राचीन तमिल साहित्य का प्रयोग अपनी दन्तर जल में सात बदर फल, सात अर्क के पत्ते, अक्षत, कविता के विषय चयन व वर्णन में भरपूर किया है । तिल, दूर्वा, चावल, चन्दन मिलाकर सूर्य को अर्घ्य देना इन्होंने ग्रामीण एवं स्थानीय प्रथाओं तथा घरेलू कहानियों चाहिए तथा उसके बाद सप्तमी को देवी मानते हए नम- को पद्यबद्ध किया, विशेषकर उन कथाओं को जो शिव के स्कारकर सूर्य को प्रणाम करना चाहिए। कुछ आकर पवित्र चरित्र से सम्बन्धित थीं। सबके ऊपर उन्होंने अपनी ग्रन्थों के अनुसार माघ स्नान तथा इस स्नान में कोई प्रतिभा को निखारा । आगमों को ये शिवोक्त कहते अन्तर नहीं है, जब कि अन्य ग्रन्थों के अनुसार ये दोनों हैं । ये अद्वैत वेदान्त और शंकराचार्य के मायावाद को पृथक्-पृथक् कृत्य हैं।
अंगीकार नहीं करते थे। माघस्नान-माघ मास में बड़े तड़के गंगाजी अथवा अन्य __ माण्डवगढ़-दक्षिण मालवा स्थित शैव तीर्थ । परमार किसी पवित्र धारा में स्नान करना परम प्रशंसनीय माना राजाओं के समय में यह समृद्ध नगर था। यहाँ मुञ्ज के गया है। इसके लिए सर्वोत्तम काल ब्राह्म मुहर्त है जब समय के बने भवनों और अनेक धार्मिक स्थलों के अवनक्षत्र दर्शनीय रहते हैं। उससे कुछ कम उत्तम काल वह शेष पाये जाते हैं। यहाँ रेवाकुण्ड है। सोनद्वार की ओर है जब तारागण टिमटिमा रहे हों किन्तु सूर्योदय न हुआ नीलकण्ठेश्वर शिव-मन्दिर है। प्राचीन राम मन्दिर है । हो। अधम काल सूर्योदय के बाद स्नान करने का है। उसके पास ही आल्हा के हाथ की साँग गड़ी हुई है । माघ मास का स्नान पौष शुक्ल एकादशी अथवा पूर्णिमा माण्डार्य मान्य-ऋग्वेद में मान के वंशज एक ऋषि का से आरम्भ कर माघ शुक्ल द्वादशी या पूर्णिमा को समाप्त नाम माण्डार्य मान्य मिलता है। बहुत सम्भव है कि होना चाहिए। कुछ लोग इसे संक्रान्ति से परिगणन अगस्त्य से ही इसका आशय हो । करते हुए स्नान करने का सुझाव उस समय का देते हैं जब माण्डूकायनि-मण्डूक का वंशज । माण्डूकायनि का उल्लेख सूर्य माघ मास में मकर राशि पर स्थित हो । समस्त नर- शतपथब्राह्मण ( २०.६,५,९) बृ. उ. (६.५,४ ) में एक नारियों को इस व्रत के आचरण का अधिकार है। सबसे आचार्य के रूप में हुआ है ।
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