________________
५१८
1
अघोरघण्ट की शिष्या सन्यासिनी थी जो देवी को उपासिका थी । दोनों योगाभ्यास करते थे । उनके विश्वास शाक्त विचारों से भरे थे वे नरबलि (देवी के अर्पणा ) के अभ्यासी थे, इत्यादि । इस प्रकार आठवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में महाकवि भवभूति रचित इस नाटक में तत्कालीन शैव विश्वासों तथा अनेकानेक धार्मिक क्रियाओं, शाक्तों की अद्भुत शक्ति आदि का अभिनव वर्णन प्राप्त होता है । देवी को जाग्रत करने के लिए शाक्तयोग का साधन देवी को सबसे ऊंचे चक्र पर चढ़ाने की चेष्टा, चक्र के अन्दर के केन्द्र व रेखाएँ, उनके आश्चर्यपूर्ण फल आदि सभी बातें इस नाटक में प्राप्त होती हैं ।
मालिनीतन्त्र - ' आगम तत्त्वविलास' के ६४ तन्त्रों की सूची में उद्धृत एक तन्त्र ।
मालिनीविजय तन्त्र दस शताब्दी के पूर्व इसकी रचना मानी जानी चाहिए, क्योंकि कश्मीर के शव आचार्य अभिनवगुप्त (१०५७) ने अपने ग्रन्थ में इसका उद्धरण दिया है ।
माशक (मशक) सूत्र ग्रन्थ -- सामवेद के जितने सूत्र ग्रन्थ हैं उतने किसी वेद के देखने में नहीं आते । पञ्चविंश ब्राह्मण का एक श्रौतसूत्र है और एक गृह्यसूत्र । पहले श्रौतसूत्र का नाम 'माशक' है। लाट्यायन ने इसको 'मशकसूत्र' लिखा है। कुछ लोगों की राय में इन ग्रन्थों का नाम कल्पसूत्र है ।
3
मास - चन्द्रमा की एक भूचक्रारिक्रमा के आधार पर 'मास' से महीने का बोध होता है । मास के प्रसिद्ध सीमा - दिन अमावस्या तथा पूर्णमासी हैं।
यह निश्चित नहीं ज्ञात होता कि एक अमावस के अन्त से दूसरी अमावस ( अमान्त मास ) या एक पूर्णिमा के अन्त से दूसरी पूर्णिमान्त तक मास गणना होती थी उत्तर भारत में पूर्णिमान्त प्रथा प्रचलित है और दक्षिण भारत में अमान्त प्रथा जाकोबी फाल्गुन की पूर्णिमा से वर्षारम्भ होना मानते हैं ओल्डेनबर्ग प्रथम चन्द्र को ही वर्ष का आरम्भ बिन्दु समझते हैं । मास के तीस दिन होते थे क्योंकि वर्ष मे १२ मास और ३६० दिन कहे गये है। सूत्रों में मास अलग-अलग संख्यक दिनों के लिये उद्धृत हैं ।
।
मासक्षपोर्ण मासीयत कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा को इस व्रत का प्रारम्भ होता है। इस अवसर पर व्रती को नक्त पद्धति से
Jain Education International
मालिनीतन्त्र-मासोपवासव्रत
आहार करना चाहिए। नमक से एक वृत्त बनाकर तथा उसे चन्दन के लेप से चर्चित करके चन्द्रमा को दस नक्षत्रों सहित पूजना चाहिए - यथा कार्तिक मास में जब चन्द्रमा कृत्तिका तथा रोहिणी से युक्त हो, मार्गशीर्ष मास में जब मृगशिरा तथा आर्द्रा से युक्त हो, और इसी प्रकार से आश्विन मास तक । सधवा महिलाओं को गुड़, सुन्दर खाद्यान्न, घृत दुग्धादि देकर सम्मानित करना चाहिए। तदनन्तर स्वयं हविष्यान्न ग्रहण करना चाहिए। व्रत के अन्त में सोने से रंगे हुए (जरी के काम वाले) वस्त्र दान में देने चाहिए ।
मासव्रत - मार्गशीर्ष मास से कार्तिक मास तक बारहों मास व्रती को निम्न वस्तुएँ दान करनी चाहिए- नमक, घी, तिल, सप्त धान्य, आकर्षक वस्त्र, गेहूं जल पूर्ण कलश, कपूर सहित चन्दन, मक्खन, छाता, शर्करा अथवा गुड़ के लड्डू | वर्ष के अन्त में गौ का दान तथा दुर्गा जी, ब्रह्मा जी सूर्य नारायण अथवा विष्णु भगवान् का पूजन करना चाहिए ।
,
मासोपवास व्रत - समस्त व्रतों में यह महान् और प्राचीन
व्रत है । नानाघाट शिलालेख के अनुसार रानी नायनिका ( नागनिका) ने ईसा पूर्व द्वितीय शताब्दी में इस व्रत का आचरण किया था। दे० ए० एस० डब्ल्यू ० आई० जिल्द ५ ० ६० | इसका वर्णन अग्नि (२०५.१-१८), गरुड (१.१२२.१-७), पद्म० (६.१२१-१५-५४) ने किया है। अग्निपुराण में इसका संक्षिप्त वर्णन मिलता है, अतएव उसी का यहाँ वर्णन किया जा रहा है । व्रती को वैष्णव व्रतों का आचरण करने ( जैसे द्वादशी ) के लिए गुरु की आज्ञा प्राप्त कर लेनी चाहिए। अपनी शक्ति तथा आत्मबल देखकर आश्विन शुक्ल एकादशी को व्रत आरम्भ कर ३० दिनों तक निरन्तर व्रत रखने का संकल्प करना चाहिए | तपस्वी साधु या यति या विधवा ही इस व्रत का आचरण करे, गृहस्थ नहीं । गन्ध पुष्प आदि से दिन में तीन बार विष्णु का पूजन करना चाहिए । विष्णु के स्तोत्रों तथा मंत्रों का पाठ एवं उनका ही मनन- चिन्तन करना चाहिए । व्यर्थ की बकवास, सम्पत्ति का मोह तथा ऐसे व्यक्ति के स्पर्श का भी त्याग करना चाहिए जो नियमों का पालन न कर रहा हो। तीस दिन तक किसी मन्दिर में ही निवास करना चाहिए। तीनों दिन व्रत कर लेने के बाद द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराकर,
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org