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नीलकण्ठ-नीलतन्त्र
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करते हैं तो राजा की विजय निश्चित है। यदि वे भोजन नीलकण्ठ भट्ट-शङ्करभट्ट के पुत्र और नारायण भट्ट के पौत्र । अस्वीकार करते हैं तो इसे महान् संकट की सूचना सम- इनका जीवनकाल १६१० और १६५० ई० के बीच रखा झना चाहिए । हाथियों की अन्य क्रियाओं से इसी प्रकार जा सकता है । इनके पिता शङ्करभट्ट प्रसिद्ध मीमांसक थे, के शकुन-अपशकुन समझ लेने चाहिए। तदनन्तर राज- उन्होंने शास्त्रदीपिका' पर भाष्य, 'विधिरसायनदूषण', चिह्नों का, जैसे छत्र तथा ध्वज का, पूजन होना चाहिए। 'मीमांसा बालप्रकाश' आदि ग्रन्थों की रचना की। जब तक सूर्य स्वाती नक्षत्र पर हो हाथियों तथा घोड़ों का द्वैतनिर्णय' और 'धर्मप्रकाश' ग्रन्थ भी इन्हीं द्वारा प्रणीत इसी प्रकार से सम्मान किया जाय । कोई कठोर शब्द थे। इनका धर्मशास्त्र पर प्रसिद्ध ग्रन्थ 'भगवन्तभास्कर' उनके प्रति प्रयुक्त न हो और न उन्हें पीटा जाय । सशस्त्र बारह मयूखों में विभक्त है । ये मयूख है : १. संस्कार रक्षकों से मण्डप की निरन्तर सुरक्षा होती रहनी चाहिए। २. आचार ३. काल ४. श्राद्ध ५. नीति ६. व्यवहार राजज्योतिषी, पुरोहित, मुख्य पशुचिकित्सक तथा गज- ७. दान ८. उत्सर्ग ९. प्रतिष्ठा १०. प्रायश्चित्त ११. चिकित्सक को सर्वदा मण्डप के अन्दर रहना चाहिए। शुद्धि और १२. शान्ति । नीलकण्ठ भट्ट ने 'भगवन्तजिस दिन सूर्य स्वाती नक्षत्र से हटकर विशाखा नक्षत्र का भास्कर' की रचना भगवन्तदेव नामक बुन्देले राजा के स्पर्श करे उस दिन अश्वों तथा गजों को सजाकर उनके
सम्मान में की थी। इस ग्रन्थ के अतिरिक्त इन्होंने 'व्यवऊपर राजछत्र तथा राजखड्ग स्थापित करके मन्त्रोच्चा- हारतत्त्व' और 'दत्तकनिर्णय' का भी प्रणयन किया। रण तथा वाद्ययन्त्र बजाये जाने चाहिए। राजा स्वयं ___अपने पिता के समान ही ये प्रसिद्ध मीमांसक थे। धर्मअश्व पर सवार हो तथा कुछ देर बाद गज पर सवार शास्त्र में इनका अगाध प्रवेश था । इनका ग्रन्थ व्यवहारहोकर तोरणों में प्रविष्ट हो । उस समय राजा की सेना । मयूख हिन्दू विधि पर उच्च न्यायालयों द्वारा प्रामाणिक तथा नागरिक उसका अनुसरण करें । बाद में जुलूस राज
माना जाता है। भवन तक जाय । नागरिकों का सम्मान कर उन्हें विस- नीलकण्ठ सूरि-महाभारत के टीकाकार । इनका जन्म जित किया जाय । यह धार्मिक कृत्य शान्तिपरक है । सूख- महाराष्ट्र देश में हुआ था । ये गोदावरी के पश्चिमी तट सौभाग्य की अभिवृद्धि तथा अश्वों तथा गजों की सुरक्षा पर कूर्पर नामक स्थान में रहते थे। इनका स्थितिकाल के लिए राजागण इस व्रत का आचरण करें। विशेष जान
सोलहवीं शताब्दी है । ये चतुर्धर वंश में उत्पन्न हुए और कारी के लिए देखिए, कौटिल्य अर्थशास्त्र तथा बृहस्पति
इनके पिता का नाम गोविन्द सूरि था । इनकी महाभारतसंहिता, अध्याय ४४, अग्निपुराण, २६८,१६-३१ ।
टीका 'भारतभावदीप' नाम से विख्यात है। गीता की
व्याख्या के आरम्भ में अपनी व्याख्या को सम्प्रदायानुसारी नीलकण्ठ-(१) आगमिक शवों के एक आचार्य, जिन्होंने
बतलाते हुए इन्होंने शङ्कराचार्य एवं श्रीधर स्वामी की क्रियासार नामक संस्कृत ग्रन्थ रचा । यह ग्रन्थ 'शैवभाष्य'
वन्दना की है । यद्यपि गीता की व्याख्या में इन्होंने कहींका संक्षिप्तीकरण है । इस ग्रन्थ का उपयोग लिङ्गायतों
कहीं शाङ्करभाष्य का अतिक्रमण भी किया है तथापि में होता है। नीलकण्ठ १७वी शताब्दी के मध्यकाल में
इनका मुख्य अभिप्राय अद्वैत सम्प्रदाय के अनुकूल ही है। हुए थे।
'भारतभावदीप' के अतिरिक्त इनकी और कोई कृति नहीं (२) एक नीलकण्ठ धर्मशास्त्र के निबन्धकार भी हैं,
मिलती । परन्तु महाभारत को इस 'नीलकण्ठी' टीका ने जिन्होंने काशी में नीलकण्ठमयूख नामक बृहत् निबन्ध ही इनको अत्यन्त प्रसिद्ध बना दिया है। ग्रन्थ की रचना की। इसके 'संस्कारमयूख' और 'व्यव
नोलज्येष्ठ-श्रावण मास की अष्टमी के दिन जब रविवार हारमयूख' बहुत प्रसिद्ध हैं।
तथा ज्येष्ठा नक्षत्र हो उस समय इस व्रत का अनुष्ठान नीलकण्ठ दीक्षित-अप्यय दीक्षित के छोटे भाई के पौत्र । किया जाता है । इसके देवता मूर्य हैं। इसमें रविवार का
अप्पय दीक्षित की मृत्यु के समय उनके ग्यारह पुत्र तथा दिन विशेष महत्त्वपूर्ण है, नक्षत्र की गणना तो बाद में है। नीलकण्ठ सम्मुख ही थे। उस समय उन्होंने सबसे अधिक नीलतन्त्र-'आगमतत्त्वविलास' में जिन तन्त्रों का उल्लेख प्रेम नीलकण्ठ पर ही प्रकट किया ।
है उनमें नीलतन्त्र भी प्रमुख है।
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