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पन्दरम्-परमहंस
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पंथ कहते हैं। यथा कबीरपन्थ, नानकपन्थ, दादूपन्थ है। वर्ष के अन्त में श्राद्ध करना चाहिए, पाँच गायें. आदि ।
वस्त्र तथा जलपूर्ण कलश दान में देना चाहिए। दे० पन्दरम-तमिलनाडु के शैव मन्दिरों में ब्राह्मणेतर पुजारी हेमाद्रि, २.२५४ । को 'पन्दरम्' कहते हैं। इस देश के शैव मन्दिरों में साम्प्र- (३) भगवान् विष्णु को प्रसन्न कर पुत्र प्राप्त करने की दायिक भिन्नता नहीं है । वे सभी हिन्दुओं, स्मार्तों, साधारण कामना से फाल्गुन शुक्ल प्रतिपदा से द्वादशी तक केवल शवों, सिद्धान्तवादियों एवं लिङ्गायतों के लिए खुले रहते दुग्ध की वस्तुओं से पूजन (देवता स्नान, नैवेद्य, होम और है। इनमें पुजारी ब्राह्मण होते हैं, किन्तु कुछ छोटे मन्दिरों प्रसाद ग्रहण) करना चाहिए। दे० स्मृतिकौस्तुभ, ५१३में पन्दरम् ( अब्राह्मण शेव) लोग अचंक का कार्य ५१४; भागवतपुराण, ८.१६,२२-६२ । करते हैं।
पर आगम-रौद्रिक आगमों में एक 'गर (वातुल) आगम',
भी है। पन्ना-मध्य प्रदेश में स्थित एक भूतपूर्व रियासत का प्रसिद्ध
परओति-सत्रहवीं शती में तमिल भाषा के भक्त कवि नगर और तीर्थस्थान । यहाँ भगवान् युगलकिशोर का
परञ्जोति ने 'तिरुविल आडतपाणम' नामक धार्मिक ग्रन्थ एक मन्दिर और जगन्नाथ स्वामी के दो मन्दिर है।
की रचना की। महात्मा प्राणनाथ का प्रसिद्ध मन्दिर भी यहाँ स्थित है।
परपक्षगिरिवत्र-निम्बार्क वैष्णव संप्रदाय का एक तर्कदे० 'कुलज्जम साहब' ।
कर्कश दार्शनिक ग्रन्थ, जिसमें अद्वैत वेदान्त के अध्यास, पम्पासर-इस तीर्थ का वर्णन वाल्मीकि रामायण में पाया
मायावाद, जीवब्रह्मकयवाद आदि का सटीक खण्डन किया जाता है। भगवान् राम वनवास के समय शबरी के परा
गया है। इसकी रचना वंगदेशवासी पं० माधवमुकुन्द मर्श से इस सरोवर के तट पर आये थे। इसके निकट ही
ने माध्ववेदान्त से प्रभावित होकर की । माधवमुकुन्द सुग्रीव का निवास था। दक्षिण भारत की तुङ्गभद्रा नदी स्वभरामी शाखा के वैष्णव थे अतः इनका समय सत्रहवीं पार करके अनागुदी ग्राम जाते समय कुछ दूर पश्चिम शताब्दी संभव है। उक्त ग्रन्थ न्याय-वेदान्त के प्रौढ़ पहाड़ के मध्य भाग में एक गुफा मिलती है । उसके अंदर
ज्ञाताओं के अध्ययन की सामग्री उपस्थित करता है। श्रीरङ्गजी तथा सप्तर्षियों की मूर्तियाँ हैं, आगे पूर्वोत्तर परब्रह्मोपनिषद-एक परवर्ती उपनिषद् । इसमें परब्रह्म पहाड़ के पास हो पम्पासरोवर है। स्नान करने के लिए (निर्गण) का निरूपण किया गया है। यात्री प्रायः यहाँ आते रहते हैं। कुछ विद्वानों का मत है परमशिव-नवीं शताब्दी में उत्पन्न कश्मीर के वसुगुप्त कि पम्पासर वहाँ था, जहाँ अब हासपेट नगर है। नामक शिवभक्त ने एक नया धार्मिक अनुभव प्रचारित पयस्-वैदिक संहिताओं में 'पयस्' शब्द का गोदुग्ध अर्थ किया। उनके शिष्य कल्लट ने 'स्पन्दसूत्र' अथवा 'स्पन्दलिया गया है। कुछ प्रसंगों में इसे पौधों में पाया जाने कारिका' में त्रिक ( पति, पशु, पाश ) प्रणाली के अद्वैत वाला रस समझा गया है, जो उन्हें जीवन तथा बल प्रदान सिद्धान्त का उल्लेख किया है। स्पन्दशाखा में आत्मा करता है । कतिपय स्थलों पर यह स्वर्गीय जल का बोधक कठोर यौगिक साधना से ज्ञान प्राप्त करता है, जिससे परम है (ऋ० ० १.६५,५,१६६; ३.३३,१,४; ४.५७,८ शिव (विश्व के परमअधीश्वर) का अनुभव होता है तथा आदि) । शतपथ ब्राह्मण (९.५,१, ) में 'पयोवत' नाम जीवात्मा शान्ति में विलीन हो जाता है। परम शिव से दुग्ध पर ही जीवन धारण करने वाले व्रत का वास्तव में मूल परम तत्त्व का ही पर्याय है। उल्लेख है।
परमशिवेन्द्र सरस्वती-महात्मा सदाशिवेन्द्र सरस्वती के पयोव्रत-(१) यज्ञानुष्ठान के लिए दीक्षित होने के पश्चात् गुरु का नाम । ये प्रसिद्ध धार्मिक नेता थे। केवल दुग्धाहार करने का विधान है। इसी को पयोव्रत परमसहिता-एक वैष्णव संहिता। इसमें वैष्णव सिद्धान्तों कहते हैं । (शतपथ० ९.५.१.१)
तथा आचार का विशद वर्णन है। (२) प्रत्येक अमावस्या को यह व्रत करना चाहिए। परमहंस-चतुर्थ आश्रमी संन्यासियों की चार श्रेणियाँ इसमें केवल दुग्धाहार विहित है । एक वर्ष तक यह चलता कुटीचक, बहूदक, हंस और परमहंस नामक होती हैं।
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