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बालकृष्ण-बाष्कल उपनिषद्
पद्यों में विशालाक्ष ने किया। इसका भी संक्षिप्त रूप बाहु- समझी जाती है। इस कृति से उनका अद्वैतवादी होना दन्तक रचित है, जो पाँच हजार पद्यों का था। यह ग्रन्थ सिद्ध होता है। पूर्वमीमांसा के प्रौढ विद्वान् होते हुए भी भीष्म पितामह के समय में बार्हस्पत्यशास्त्र के नाम से उनका अन्तरंग भाव अद्वैतवादी रहा है। प्रसिद्ध था। यह इस समय उपलब्ध नहीं है।
बालवत-वह स्त्री या पुरुष, जिसने पूर्व जन्म में किसी बाल कृष्ण-वल्लभ सम्प्रदाय के पुष्टिमार्ग में कृष्ण भग- बालक की हत्या की हो अथवा समर्थ होने पर भी रक्षा वान् की उपासना बाल भाव में की जाती है, जो 'यशोदा- न की हो, वह निःसन्तान रह जाता है। ऐसे निःसन्तति उत्संगलालित' अर्थात् यशोदा मैया की गोद और आँगन व्यक्ति को वस्त्रों सहित कूष्माण्ड, वृषोत्सर्ग तथा सुवर्ण में दुलराये जाने वाले हैं । बाल कृष्ण की अनेकों शिशु- का दान करना चाहिए। इस व्रत के अनुष्ठान से सन्तान लीलाओं को भागवतपुराण के दशम स्कन्ध में प्रस्तुत की प्राप्ति होती है । दे० पद्मपुराण, ३.५-१४ तथा ३१किया गया है । कृष्ण का यह रूप बहुत लोकप्रिय है। ३२। बालकृष्ण दास-ऐतरेय, तैत्तिरीय, श्वेताश्वतर जैसी लघु बालाजी-बाल कृष्ण का लोकप्रिय नाम, जिनकी पूजा धन उपनिषदों के शांकरभाष्य के ऊपर सरल व्याख्या के तथा उन्नति के देवता के रूप में वैष्णवों द्वारा, विशेष लेखक । मैत्रायणी उपनिषद् पर भी इनकी रची हुई कर वणिकों द्वारा की जाती है। बासिम (बरार) नामक वृत्ति है।
स्थान पर इन बालाजी का एक रमणीक मन्दिर है। बालकृष्ण भट्ट-वल्लभ सम्प्रदाय के प्रमुख ग्रन्थकार और उत्तर तथा पश्चिमी भारत के वणिकों में इनकी पूजा उपदेशक । इनका 'प्रमेयरत्नार्णव' नामक दार्शनिक ग्रन्थ अधिक प्रचलित है। बहुत मूल्यवान् है।
आन्ध्र प्रदेश के प्रसिद्ध देवता भगवान वेंकटेश्वर भी बालकृष्ण मिश्र-मानव श्रौतसूत्र के एक भाष्यकार । बालाजी या तिरुपति बालाजी कहे जाते हैं। तिरुपति बालकृष्णानन्द-छान्दोग्य तथा केनोपनिषद् पर शङ्कराचार्य
का अर्थ श्रीपति है। के भाष्य के ऊपर लिखी गयी अनेकों टीकाओं तथा वृत्तियों
___ अञ्जनीकुमार हनुमानजी का एक लोकप्रिय स्थानीय में बालकृष्णानन्द की वृत्ति भी सम्मिलित है।।
नाम बालाजी है, जो राजस्थान के जयपुर जिले में बाँदीबाल गोपाल-गोपाल (कृष्ण) का बालरूप । कृष्ण के कुई से दक्षिण महँदीपुर की पहाड़ी में विराजमान हैं। प्रस्तुत रूप की उपासना में माता के वात्सल्य का एक इन बालाजी का स्थान चमत्कारी सिद्ध क्षेत्र माना प्रकार का दैवीकरण है । विविध प्रकार के कृष्णभक्ति जाता है। सम्प्रदायों के बीच बाल गोपाल के प्रति भक्ति का उदय बालातन्त्र-'आगमतत्त्वविलास' को तन्त्रसूची में उद्धृत विशेष कर स्त्रियों में हुआ । बाल गोपाल की पूजा का एक तन्त्र ग्रन्थ ।। मुख्यतः सारे भारत में प्रसार है । भागवत पुराण में बाल बालेन्दुवत अथवा बालेन्दुद्वितीया व्रत-चैत्र शुक्ल द्वितीया गोपाल का चरित्र विस्तार के साथ वणित है। सम्प्रदाय को इस व्रत का अनुष्ठान होता है। इसके अनुसार किसी के रूप में इसका प्रचार सोलहवीं शताब्दी में वल्लभा
नदी में सायंकाल स्नान करना विहित है। द्वितीया के चार्य और उनके अनुयायी शिष्यों द्वारा हुआ है। दे० चन्द्रमा के प्रतीक रूप एक बाल चन्द्रमा की आकृति बना'बालकृष्ण'।
कर उसकी श्वेत पुष्पों, उत्तम नैवेद्य तथा गन्ने के रस से बालचरित-प्राचीन नाटककार भास ने प्रथम शती वि० बने पदार्थो से पूजा की जानी चाहिए। पूजनोपरान्त पू० में 'बालचरित' नामक नाटक लिखा, जो कृष्ण के व्रती स्वयं भोजन ग्रहण करे किन्तु उसे तेल में बने खाद्य बाल जीवन का चित्रण करता है।
पदार्थों को नहीं खाना चाहिए। एक वर्ष पर्यन्त यह व्रत बालबोधिनी-यद्यपि आपदेव मीमांसक थे किन्तु उन्होंने चलता है। इसके आचरण से मनुष्य वरदान प्राप्त कर सदानन्द कृत 'वेदान्तसार' पर बालबोधिनी नामक टीका स्वर्ग प्राप्त कर लेता है। लिखी है, जो नृसिंह सरस्वती कृत 'सुबोधिनी' और बाष्कल उपनिषद-ऋग्वेद की एक उपनिषद् । बाष्कल रामतीर्थ कृत 'विद्वन्मनोरञ्जिनी' की अपेक्षा अधिक उत्कृष्ट श्रति की कथा का सायणाचार्य ने भी उल्लेख किया है।
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