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का आचरण करता है तो सुख-समृद्धि, पुत्र-पौत्रादि प्राप्त करके ग्रहों के दिव्य लोक को प्राप्त होता है ।. वर्ष कृत्यदीपिका, ४४३-४५१ में भौमवार व्रत का विशद विवेचन मिलता है। दे० 'भौमवारव्रत' ।
भौमितैत्तिरीय संहिता (५.५,१८,१) में उद्धृत अश्व मेधयज्ञ की बलिपशुतालिका का एक पशु भौमि है। इसकी पहचान अब कठिन है।
भ्रातृद्वितीया - ( १ ) कार्तिक शुक्ल द्वितीया को इस व्रत का अनुष्ठान होता है । इसका नाम यमद्वितीया भी है, क्योंकि प्राचीन काल में यमुना ने अपने भाई यम को इसी दिन भोजन कराया था। कुछ अधिकारी ग्रन्थों, जैसे कृत्यतत्त्व, ४५३; व्रतार्क, व्रतराज, ९८ १०१ में दो कृत्यों का सम्मिलित विधान ही वर्णित है यम का पूजन तथा किसी भी व्यक्ति का अपनी बहिन के यहां भोजन । (२) यम से सम्बद्ध होने के कारण यह दिन भाई के लिए अनिष्टकारी भी समझा जाता है। अतः विशेष कर उत्तर भारत में बहिनें इस तिथि को अपने भाई को यम की दृष्टि से बचाने के लिए झूठा शाप देकर उसको मृत घोषित कर देती हैं । यह यम को धोखा देने वाला एक अभिचार कृत्य है। कंटक और कुश तोड़कर प्रत्येक शाप के साथ फेंका जाता है ।
भ्रूणहत्या --- (१) भ्रूणहत्या ( गर्भ की हत्या) एक प्रकार का पातक कहा गया है। इसका उल्लेख परवर्ती संहिताओं (मंत्रा० [सं० ४.१ ९ का० सं० ३१.७ कपिष्ठल संहिता) में सबसे बड़े अपराध के रूप में हुआ है। इसका कोई प्रायश्चित नहीं है। इससे प्रमाणित होता है कि आलोचक विद्वानों का पुत्रीवध सम्बन्धी मत कितना भ्रमपूर्ण है।
(२) वेदपाठी ब्रह्मचारी भी भ्रूण कहा गया है ।
म
म—व्यञ्जन वर्णों के पञ्चम वर्ग का पाँचवाँ अक्षर । कामधेनुतन्त्र में इसका स्वरूप इस प्रकार बतलाया गया है :
मकारं शृणु चाङ्गि स्वयं परमकुण्डली । तरुणादित्यसंकाशं चतुर्वर्गप्रदायकम् || पञ्चदेवमयं वर्णं पञ्चप्राणमयं सदा ॥ तन्त्रशास्त्र में इसके निम्नांकित नाम है :
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भौमि मकरसंकान्ति
मकर
म काली क्लेशितः कालो महाकालो महान्तकः । वैकुण्ठो वसुधा चन्द्री रविः पुरुषः ॥ कालभद्रो जया मेधा विश्वदा दोप्तसंज्ञकः । जठरश्च भ्रमा मानं लक्ष्मीर्मातोप्रबन्धनी ॥ विषं शिवो महावीरः शशिप्रभा जनेश्वरः । प्रमत्तः प्रिय रुद्रः सर्वाङ्ग वह्निमण्डलम् | मातङ्गमालिनी बिन्दुः श्रवणा भरथो वियत् ।। - एक जलचर प्राणी, जो स्थापत्य एवं मूर्तिकला में श्रृंगारोपादान माना गया है। यजुर्वेद संहिता (१० ५.५,१३,१ मंत्रा०३. १४, १६ वाज० २४.३६) में उद्धृत अश्वमेघ यज्ञ के पशुओं की सूची में मकर भी उल्लि खित है। मकर गङ्गा का वाहन है यह अत्यन्त कामुक प्राणी है, इसलिए कामदेव की ध्वजा पर काम के प्रतीक रूप में इसका अडून होता है और कामदेव का विरुद 'मकरध्वज' है । मकरसंक्रान्ति धार्मिक अनुष्ठानों एवं स्पोहारों में मकरसंक्रान्ति बहुत ही महत्वपूर्ण पर्व है। ७० वर्ष पहले यह १२ मा १३ जनवरी को होती थी किन्तु अब कुछ वर्षो से १३ या १४ जनवरी को होने लगी है । संक्रान्तिका अर्थ है एक राशि से उसकी अग्रिम राशि में सूर्य का प्रवेश। इस प्रकार जब धनु राशि से सूर्य मकर में प्रवेश करता है तो मकरसक्रान्ति होती है। इस प्रकार १२ राशियों की १२ संक्रान्तियाँ हैं । ये सभी पवित्र मानी गयी हैं । मकरसंक्रान्ति से उत्तरायण आरम्भ होने के कारण इस संक्रान्ति का पुण्यफल विशेष माना गया है ।
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मत्स्यपुराण के अनुसार संक्रान्ति के पहले दिन दोपहर को केवल एक बार भोजन करना चाहिए । संक्रान्ति के दिन दाँतों को शुद्धकर तिलमिश्रित जल में स्नान करना चाहिए। फिर पवित्र एवं संयमी ब्राह्मण को तीन पात्र (भोजनीय पदार्थों से भरकर ) तथा एक गौ यम, रुद्र एवं धर्म के निमित्त दान करना चाहिए। धनवान् व्यक्ति को वस्त्र, आभूषण, स्वर्णघट आदि भी देना चाहिए । निर्धन को केवल फल-दान करना चाहिए । तदनन्तर औरों को भोजन कराने के बाद स्वयं भोजन करना चाहिए।
इस पर्व पर गङ्गा स्नान का बड़ा माहात्म्य है। संक्रान्ति पर देवों तथा पितरों को दिये हुए वान को भगवान् सूर्य दाता को अनेक भावी जन्मों में लौटाते रहते हैं ।
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