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की सेवा में रहकर साथ-साथ घूमता था और जब वे अपने पदों को गाते थे तब वह सितार बजाता था । मलमासकृत्य मलमास के कृत्य अन्तर्वर्ती मास ( पहले के उत्तरार्ध और दूसरे के पूर्वार्ध) में करने चाहिए । उसके मध्य निषिद्ध कृत्यों के लिए देखिए 'अधिमास । मलूकदास - निर्गुण भक्ति शाखा के एक रामभक्त कवि एवं संत । उनका जीवन-काल सं० १६३१-१७३९ वि० माना जाता है । इन्होंने रामभक्ति विषयक अनेक पद्यों और भजनों की रचना की। मलूकदास ने एक अलग पन्थ भी चलाया । यों कहा जाय कि उनकी शिष्यपरम्परा मलूकदासी कहलायी, तो अधिक युक्तियुक्त होगा । इनका साधनास्थल या गुरुगद्दी प्रयाग के समीप कड़ा मानिकपुर में है।
मलूकदासी— दे० 'मलूकदास' ।
मल्लद्वादशी - मार्गशीर्ष शुक्ल द्वादशी को इस व्रत का अनुष्ठान होता है । यमुना के तट, तट गोवर्द्धन पहाड़ और भाण्डीर वट वृक्ष के नीचे गोपाल कृष्ण ग्वाल बालों, जो सब पहलवान थे, के साथ कुश्ती लड़ते थे। इसी प्रसंग में उक्त तिथि को समस्त मल्लों ने सर्वप्रथम पुष्पों से, दूध से, दही से तथा उत्तमोत्तम खाद्यपदार्थों से भगवान् कृष्ण की पूजा तथा सम्मान किया था। एक वर्ष तक प्रति द्वादशी को इसका अनुष्ठान होना चाहिए। इसे अरण्यदादशी या व्यनद्वादशी भी कहा गया जब कि समस्त स्वाल बालों तथा मल्लों ने एक-दूसरे को अपने विविध खाद्य पदार्थ चखाये थे । इस व्रत के परिणामस्वरूप सुस्वास्थ्य, शक्ति, समृद्धि तथा अन्त में विष्णुलोक की प्राप्ति होती है ।
मल्लनाग - एक प्रसिद्ध प्राचीन नैयायिक । विक्रम की सातवीं शताब्दी में कवि सुबन्धु ने सुप्रसिद्ध श्लेषकाव्य वासवदत्तम् में मल्लनाग, न्यायस्थिति, धर्मकीर्ति और उद्योस्कर इन चार नैयायिकों का उल्लेख किया है। महलनाराध्य - दक्षिण भारत के एक शांकरवेदान्ती आचार्य | इनका जन्म कोटी वंश में हुआ था और इन्होंने अ रत्न अभेदरत्न नामक दो प्रकरण ग्रन्थ लिखे । इनका जन्म सोलहवीं शताब्दी के आरंभ में हुआ था । इन्होंने 'अद्वैतरत्न' के ऊपर 'तत्त्वदीपन' नामक टीका लिखी है । मल्लनाराध्य ने द्वैतवादियों के मत का खण्डन करने के लिए इस ग्रन्थ की रचना की थी ।
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मलमासकृत्य महत् मल्लनायें - वीरशैव सम्प्रदाय के १८वीं शताब्दी के आचार्य । इन्होंने भाषा में 'वीर शैवामृत' नामक ग्रन्थ
रचा ।
मल्लारिमहोत्सव - मार्गशीर्ष शुक्ल षष्ठी को इस व्रत का अनुष्ठान होता है। महलारि की पत्नी म्हाळसा (कदाचित् मदालसा का अपभ्रंश) थी । मल्लारि के पूजन में हल्दी का चूर्ण मुख्य पदार्थ है जो महाराष्ट्र में भण्डारा के नाम से प्रसिद्ध है। महकारि का पूजन या तो प्रति रविवार या शनिवार अथवा पष्ठी को होना चाहिए। पूजनविधि ब्रह्माण्ड पुराण, क्षेत्रखण्ड के मल्लारिमाहात्म्य से गृहीत है। मल्लिकार्जुन - दक्षिण भारत के श्रीशैल पर्वत पर स्थित शंकरजी का प्रसिद्ध मन्दिर द्वादश ज्योतिर्लिंगों में इसकी गणना है । वोरश्वाचार्य श्रीपति पण्डिताराध्य की उत्पत्ति मल्लिकार्जुन लिङ्ग से ही मानी जाती है । इनका माहारम्य शिवपुराण, शतरुद्र [सं० ४१.१२ में वर्णित है। मल्लिकार्जुन जङ्गम-काशी में भगवान् विश्वाराध्य का वीर संस्थान 'जङ्गमबाड़ी लाम के नाम से प्रसिद्ध है। इस मठ के मल्लिकार्जुन अङ्गम नामक शिवयोगो को काशीराज जयनन्ददेव ने विक्रम सं० ६३१ में प्रबोधिनी एकादशी के दिन भूमिदान किया था। इस कृत्य का ताम्रशासन लगभग पौने चौदह सौ वर्षों का पुराना उक्त मठ में सुरक्षित है । दे० 'जङ्गमबाड़ी' । महाकौतसूत्र - सामवेद सम्बन्धी एक श्रौतसूत्र 'मशकश्रोत सूत्र' नाम से विख्यात है ।
मसान - एक प्रकार का श्मशानवासी प्रेत । मसान का अन्य नाम तोला है । यह बालकों तथा अविवाहितों का असन्तुष्ट मृत आत्मा होता है। मसान का साधारण अर्थ श्मशान भूमि में भटकने वाला प्रेत है। ये लोकविश्वासानुसार मनुष्यों को हानि नहीं पहुँचाते तथा इनकी स्थिति अस्थायी होती है। कुछ समय के बाद इनका जन्मान्तर हो जाता है तथा ये नया जन्म ले लेते हैं । कहा जाता है, कभीकभी ये दूसरे भूतों के समाज से निष्कासित हो जङ्गलों व एकान्त प्रदेश में भालू या अन्य वन्य पशु के रूप में भटकते फिरते हैं।
महत् - ( १ ) सांख्य मतानुसार प्रकृति से उसके प्रथम विकार महत् तत्त्व की उत्पत्ति होती है । जगत् रचना का यह वह सूक्ष्म तत्व है जो विचार एवं निर्णय करने वाले तत्व का निर्माण करता है ।
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