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बुद्धि-बुबु
से तात्कालिक धर्मरक्षा हई एवं ज्ञानमूलक बौद्धधर्मोप- मौलिक गुण हैं-धर्म, ज्ञान, वैराग्य और ऐश्वर्य । जब देश द्वारा जीवों की हिंसा से निवृत्ति अवश्य हो गयी। इसमें विकृति उत्पन्न होती है तो इसके गुण उलट कर
भगवान बुद्ध के सम्बन्ध में अनेक ग्रन्थ प्राप्त होते हैं, अधर्म, अज्ञान, आसक्ति और दैन्य हो जाते हैं। स्मृति जिनमें विस्तार से इनका जीवन चरित्र वणित है । इन और संस्कार बुद्धि में स्थित होते हैं। अतः धार्मिक साधग्रन्थों का संस्कृत में निर्माण अधिकांश भारत में हुआ, नाओं में बुद्धि की पवित्रता पर बहुत बल दिया गया है। किन्तु विदेशों में अनेक भाषाओं में इनकी जीवनी लिखी
बुद्धिवाद-विचार की एक दार्शनिक पद्धति, जो जगत की गयी, जैसे चीनी, तिब्बती, जापानी आदि में। इसके
वास्तविकता को समझने में बुद्धि को सबसे अधिक महत्त्व साथ ही भगवान् बुद्ध के अनेक जन्मों की कथा भी
देती है। यह प्रत्यक्ष को तो मानती ही है, अनुमान और कल्प-कल्पान्तरों के नामपूर्वक उपलब्ध होती है। इस
उपमान का स्पष्ट विरोध नहीं करती, परन्तु शब्द और प्रकार अनेक कल्पों में कई योनियों में भ्रमण करने के
ऐतिह्य का प्रत्याख्यान करती है। साथ ही यह कोई पश्चात् भगवान् बुद्ध माया देवी के गर्भ से (वर्तमान
अलौकिक अथवा पारमार्थिक सत्ता अथवा मूल्य नहीं गोरखपुर के पास ) नेपाल की तराई के कपिलवस्तु
मानती । भारत में इसके मूल प्रवर्तक चार्वाक, बौद्ध और नामक नगर में उत्पन्न हुए थे। भगवान् बुद्ध जीवन भर
जैन न्यूनाधिक मात्रा में थे । वास्तव में, भारत में वस्तु भ्रमण करते हुए अपने परम पावन उपदेशपीयूष द्वारा
अन्वेषण की दो परम्पराएँ थीं : (१) निगम ( अनुभूतिराजा से रंक तक सभी प्रकार के मनुष्यों का उपकार
वादी) और (२) आगम (तर्क, युक्ति और बुद्धिवादी)। करते रहे। उनके उपदेश सरल और आचारपरक थे ।
मूलतः दोनों में समन्वय था, किन्तु मतवादियों ने एक उन्होंने संसार के सम्बन्ध में चार आर्य सत्य निर्धारित
स्वतन्त्र 'बुद्धिवाद' खड़ा कर दिया। किये थे। उन्होंने बताया कि संसार में दुःख ही दुःख हैं । सांसारिक दुःखों के कुछ कारण भी है। इन कारणों
बुद्धधवाप्तिवत-चैत्र मास की पूर्णिमा के उपरान्त इस व्रत को दूर किया जा सकता है। दुःख के निरोध का उपाय का आचरण किया जाना चाहिए। एक मास तक यह भी उन्होंने बताया। उनके मत में दुःख निरोध ही निर्वाण चलता है। इसमें नृसिंह भगवान् की पूजा की जाती है । है। अतिवाद दुःख का कारण है, अतएव मध्यम मार्ग हो इसमें सरसों से प्रति दिन हवन होता है। 'त्रिमधर' युक्त सेव्य है । इसके साथ ही उन्होंने अष्टांग मार्ग तथा दस खाद्य पदार्थों से ब्राह्मणभोजन कराया जाता है। वैशाखी शोलों का भी प्रचार किया ।
पूर्णिमा को सुवर्ण का दान विहित है । इससे शुद्ध बुद्धि
प्राप्त होती है । महात्मा बुद्ध ने यद्यपि वर्णाश्रम धर्म की उपेक्षा कर डाली और धार्मिक जटिलता के भय से उन्होंने अधिदेव
बढ़े अमरनाथ-कश्मीर के पूँछ नगर से चौदह मील दूर रहस्यों का निरादर किया, किन्तु उनका उपदेश उस
ऊँची पहाड़ियों से घिरा यह मन्दिर है । पूरा मन्दिर एक समय के लिए जगत्-हितकारी था यह यथार्थ है। इस
ही श्वेत पत्थर का बना हुआ है। जम्मू से पूँछ के लिए समय भी पृथ्वी पर करोड़ों लोग इस धर्म को मानते हैं ।
मोटर बसें चलती हैं। कहा जाता है कि यही प्राचीन बुद्धि-प्रकृति के विकास का प्रथम चरण महत् तत्त्व है ।
अमरनाथ तीर्थस्थान है । पहले लोग यहीं यात्रा करने आते इसमें बुद्धि, अहंकार और मनस् तीनों निहित हैं। महत्
थे । यहीं पुलस्ता नदी है, जिसके तट पर महर्षि पुलस्त्य सार्वभौम है। इसी का मनोविकास रूप बुद्धि है। किन्तु
का आश्रम था। दूसरे अमरनाथ उस समय बरफ के बुद्धि आध्यात्मिक चेतना अथवा ज्ञान नहीं; चैतन्य आत्मा
कारण अगम्य थे । मार्ग का सुधार होने पर इनकी यात्रा का गुण माना गया है । अहंकार, मन और इन्द्रियाँ बुद्धि
बाद में सुलभ हुई है । के लिए कार्य करती हैं; बुद्धि सीधे आत्मा के लिए कार्य बुबु-ऋग्वेद ( ६.४५,३१-३३) में बृबु का उल्लेख सहस्रकरती है । बुद्धि के मुख्य कार्य निश्चय और निर्धारण हैं। दाता, उदार दाता तथा पणियों के सिरमौर के रूप में इसका उदय सत्त्व गुण की प्रधानता से होता है। इसके हुआ है । शाङ्खायन श्रौत सूत्र (१६.११,११) के अनुसार
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