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फल्गुतीर्थ (सोमतीर्थ)-बकसर
पूजा प्रतिदिन चलती है। तदनन्तर तीन मास तक केवल यह वररुचि की रचना है। इसके शेषांश में श्लोक दिये फलाहार करना चाहिए । इसके पश्चात् शरद् में विषुव के हुए है. दामोदर के पुत्र रामकृष्ण की लिखी इस पर एक तीन मास तक उपवास करना चाहिए। इसमें प्रद्युम्न के वत्ति भी है। पूजन का विधान है। इस समय यावक का आहार करना
फेत्कारीतन्त्र-'आगमतत्त्वविलास' के चौसठ तन्त्रों की
। चाहिए। वर्ष के अन्त में ब्राह्मणों को दान देना चाहिए। तालिका में द्वितीय क्रम पर 'फेत्कारीतन्त्र' है। इससे मनुष्य विष्णुलोक प्राप्त करता है । फल्गुतीर्थ ( सोमतीर्थ)-कुरुक्षेत्रमण्डल का पवित्र तीर्थ । यहाँ फलों का प्राचीन वन था, जो कुरुक्षेत्र के सात
ब-व्यञ्जन वर्गों के पंचम वर्ग का तीसरा अक्षर । पवित्र वनों में गिना जाता था । यहाँ पर पितृपक्ष में
कामधेनुतन्त्र में इसका माहात्म्य इस प्रकार है : तथा सोमवती अमावस्या के दिन बहुत बड़ा मेला लगता
बकारं शृणु चावङ्गि चतुर्वर्गप्रदायकम् । है। कहा जाता है कि यहाँ श्राद्ध, तर्पण तथा पिण्डदान
शरच्चन्द्रप्रतीकाशं पञ्चदेवमयं सदा ॥ करने से गया के समान ही फल होता है।
पञ्चप्राणात्मकं वर्ण त्रिबिन्दुसहितं सदा ॥ फाल्गुनमासकृत्य-यह स्मरण रखना चाहिए कि समस्त वार्षिक महोत्सव दक्षिण भारत के विशाल तथा छोटे-छोटे
तन्त्रशास्त्र में इसके बहुत से नाम दिये हुए हैं : मन्दिरों में प्रायः फाल्गुन मास में ही आयोजित होते हैं ।
बो वनी भूधरो मार्गी चर्चरी लोचनप्रियः ।
प्रचेताः कलसः पक्षी स्थलगण्डः कपदिनी ॥ कुछ छोटी-छोटी बातों का यहाँ और उल्लेख किया जाता है । फाल्गुन शुक्ल अष्टमी को लक्ष्मीजी तथा सीताजी
पृष्ठवंशो भयामातुः शिखिवाहो युगन्धरः ।
सुखबिन्दुर्बलो चण्डा योद्धा त्रिलोचनप्रियः ॥ की पूजा होती है। यदि फाल्गुनी पूर्णिमा को फाल्गुनी
सुरभिर्मुखविष्णुश्च संहारो वसुधाधिपः । नक्षत्र हो तो व्रती को पलंग तथा बिछाने योग्य सुन्दर
षष्ठापुरं चपेटा च मोदको गगनं प्रति ।। वस्त्र दान में देने चाहिए। इससे सुभार्या की प्राप्ति होती है जो अपने साथ सौभाग्य लिये चली आती है। कश्यप
पूर्वाषाढामध्यलिङ्गी शनिः कुम्भतृतीयको । तथा अदिति से अर्यमा की तथा अत्रि और अनसूया से
बक दाल्भ्य-दल्भ का वंशज । छान्दोग्य उपनिषद में चन्द्रमा की उत्पत्ति फाल्गुनी पूर्णिमा को हुई थी। अतएव
यह एक आचार्य का नाम है (१. २, १३, १२,१) । इन देवों की चन्द्रोदय के समय पूजा करनी चाहिए।
अ० सं० के अनुसार (३०.२) वह धृतराष्ट्र के साथ यज्ञ पूजन में गीत, वाद्य, नृत्यादि का समावेश होना चाहिए।
___ सम्बन्धी विवाद करते हुए वणित है। फाल्गनी पूर्णिमा को ही दक्षिण भारत में 'उत्तिर' नामक बकपञ्चक-कार्तिक शुक्ल एकादशी ( विष्णप्रबोधिनी ) मन्दिरोत्सव का भी आयोजन किया जाता है ।
से पूर्णिमा तक के पाँच दिन 'बकपञ्चक' नाम से कहे फाल्गुनश्रवणद्वादशी-फाल्गुन में यदि द्वादशी को श्रवण ___जाते है। ऐसा माना जाता है कि इन दिनों बगुले भी मत्स्य नक्षत्र हो तो उस दिन उपवास करके भगवान हरि का का आहार नहीं करते। अतएव मनुष्य को कम-से-कम पूजन करना चाहिए । दे० नीलमत पुराण, पृ० ५२।
इन दिनों मांस भक्षण कदापि नहीं करना चाहिए। फुल्लसूत्र-सामवेद का एक श्रौतसूत्र । यह गोभिल की बकसर-(१) बिहार प्रदेश के शाहाबाद जिले में स्थित प्रसिद्ध रचना कहा जाता है। इस ग्रन्थ के पहले चार प्रपाठकों तीर्थस्थल । प्राचीन काल में यह स्थान सिद्धाश्रम कहा में नाना प्रकार के पारिभाषिक और व्याकरण द्वारा गठित जाता था। महर्षि विश्वामित्र का आश्रम यहीं था, जहाँ ऐसे शब्द आये हैं जिनका मर्म समझना कठिन है । इनकी राम-लक्ष्मण ने मारीच, सुबाह आदि को मारकर ऋषि टीका भी नहीं मिलती। किन्तु शेष अंश पर एक विशद के यज्ञ की रक्षा की थी। आज भी गङ्गा के तट पर भाष्य अजातशत्रु का लिखा हुआ है। ऋक् मन्त्ररूपी पुराने चरित्रवन का कुछ थोड़ा अवशेष बचा हुआ है, जो कलिका किस प्रकार सामरूप पुष्प में परिणत हुई, इस महर्षि विश्वामित्र का यज्ञस्थल है । बकसर में सङ्गमेश्वर, ग्रन्थ में यह बताया गया है । दाक्षिणात्यों में प्रसिद्धि है कि सोमेश्वर, चित्ररथेश्वर, रामेश्वर, सिद्धनाथ और गौरी
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