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पथिकृत्-पद्मनाभतीर्थ (शोभन)
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पथिकृत्-मार्ग बनाने वाला, नियम निर्धारित करने वाला। पदार्थमाला-सत्रहवीं शताब्दी के प्रारम्भिक काल में यह शब्द ऋग्वेद तथा अन्य संहिताओं में अनेक बार लौगाक्षिभास्कर ने न्याय (पूर्वमीमांसा) विषयक इस ग्रन्थ व्यवहत है । इसकी महत्ता आदि काल से ही पथ खोजने को लिखा। के कार्य से सम्बन्धित है। यह विशेषण अग्निदेव (तैत्ति० पदार्थवत--मार्गशीर्ष शुक्ल दशमी को यह व्रत प्रारम्भ सं०, शत० ब्रा०, कौषी० ब्रा०) के लिए बार-बार इसलिए किया जाता है । इस दिन उपवास रखते हुए दिक्पालों प्रयक्त हआ है कि प्रारम्भिक काल में आगे बढ़ने के लिए के साथ दसों दिशाओं का पूजन करना चाहिए । एक वर्ष आर्य अग्नि जलाते थे और उसके प्रकाश में बढ़ते थे । पूषा तक इसका अनुष्ठान होता है। वर्ष के अन्त में गोदान को भी पथिकृत् कहा गया है, क्योंकि वह पशुझुण्डों की करने का विधान है । इससे संकल्प की सिद्धि होती है । रक्षा करता था। ऋषियों को भी पथिकृत कहा गया है, पदार्थसंग्रह-आचार्य मध्व के शिष्य पद्मनाभाचार्य ने पदार्थजिन्होंने समाज को प्रथम ज्ञान का मार्ग दिखलाया। संग्रह नामक प्रकरण ग्रन्थ लिखा था, जिसमें मध्वाचार्य पद-(१) छन्द या श्लोक का चतुर्थांश । यह अर्थ इसके के मत का वर्णन किया गया है। पदार्थसंग्रह के ऊपर प्रारम्भिक अर्थ 'चरण' (पाद) से निकाला गया है, जो उन्होंने मध्वसिद्धान्तसार नामक व्याख्या भी लिखी थी। चौपायों के लिए व्यवहृत होता है और जिसके नाते एक इसका रचनाकाल १३वीं शताब्दी है। चरण चतुर्थांश हुआ।
पद्मकयोग-(१) रविवार को यदि सप्तमीविद्धा षष्ठी पड़े तो (२) छन्द के चतुर्थांश के अर्थ में इसका प्रयोग ऋग्वेद पद्मकयोग होता है, जो सहस्र सूर्यग्रहणों के समान पुण्यसे ही होने लगा। पीछे भी इस अर्थ में इसका प्रयोग हआ शाली है । दे० व्रतराज, २४९ । है, किन्तु ब्राह्मणों में इससे 'शब्द' का भी बोध होता है। (२) सूर्य विशाखा नक्षत्र पर हो तथा चन्द्र कृत्तिका
(३) सन्त कवियों के पूरे गीत अथवा भजन को भी नक्षत्र पर, तब पद्मक योग होता है । दे० हेमाद्रि का चतुलोकभाषा में पद कहा जाता है। धार्मिक क्षेत्र में ऐसे वर्गचिन्तामणि । पदों का महत्त्वपूर्ण स्थान है।
(३) जीमूतबाहन के 'कालविवेक' के अनुसार जब सूर्य पदकल्पतरु-वैष्णव गीतों का एक संग्रह । चैतन्य साहित्या- विशाखा नक्षत्र के तृतीय पाद में तथा चन्द्रमा कृत्तिका के न्तर्गत १८वीं शताब्दी के प्रारम्भ में वैष्णवदास ने इस प्रथम पाद में हो तब पद्मक योग बनता है । ग्रन्थ की रचना की । यह छोटे-छोटे पदों (छन्दों) का पद्मनाभ-(१) विष्णु का एक पर्याय । इसका अर्थ है संग्रह है।
'जिसकी नाभि में कमल है।' कमल विश्व को सृष्टि और पदयोजनिका-शङ्कराचार्य कृत उपदेशसाहस्री पर स्वामी
प्रज्ञा के विकास का प्रतीक है। पुराणों के अनुसार इसी रामतीर्थ ने पदयोजनिका नाम को टीका लिखी है । इसका
कमल से ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई है इसलिए ब्रह्मा को 'कमलरचनाकाल सत्रहवीं शताब्दी है ।
योनि' अथवा 'पद्ययोनि' भी क ते हैं। पदार्थ-पद (शब्द) का वाच्य या कथनीय आशय; वस्तुतत्त्व । (२) कात्यायनसूत्र के अनेक भाष्यकारों में पद्मनाभ वैशेषिक दर्शन के अनुसार पदार्थ छः हैं-(१) द्रव्य (२) भी एक है। गुण (३) कर्म (४) सामान्य (५) विशेष (६) समवाय ।
पद्मनाभ तीर्थ-आचार्य मध्व के शिष्य । इन्होंने मध्वरचित इन पदार्थों के सम्यक् ज्ञान से ही मोक्ष प्राप्त होता है । दे०
अनुव्याख्यान की, जो वेदान्तसूत्र का पद्यमय विवरण है, 'वैशेषिक दर्शन' ।
टोका लिखी। यह 'संन्यास रत्नावली' नाम से प्रसिद्ध है। पदार्थकौमुदो-माध्व मतावलम्बी आचार्य वेदेश तीर्थ (१८ पद्मनाभ तीर्थ (शोभन)-आचार्य मध्व देहत्याग करते वीं शताब्दी) ने इस ग्रन्थ की रचना की।
समय अपने शिष्य पद्मनाभ तीर्थ को रामचन्द्रजी की मूर्ति पदार्थधर्मसंग्रह-प्रशस्तपाद का पदार्थधर्मसंग्रह नामक ग्रन्थ और शालग्राम शिला देकर कह गये थे कि तुम मेरे मत वैशेषिक दर्शन का भाष्य कहलाता है। परन्तु यह भाग्य का प्रचार करते रहना । गुरु के उपदेशानुसार पद्मनाभ ने नहीं, सूत्रों के आधार पर बना हुआ स्वतन्त्र ग्रन्थ है। चार मठ स्थापित किये । इनका पहला नाम शोभन भट्ट था।
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