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पण्ढरपुर-पत्रव्रत
का आदिवासी व्यवसायी माना है। ये अपने सार्थ अरब, है । ग्रन्थ की शैली भी चुटकूलों जैसी विनोदपूर्ण, प्रश्नोपश्चिमी एशिया तथा उत्तरी अफ्रीका में भेजते थे और तरमयी साथ ही गम्भीर चिन्तनबहल है। इसी लिए अपने धन की रक्षा के लिए बराबर युद्ध करने को यहाँ भाष्य शब्द के साथ 'महा' विशेषण सार्थक होता है। प्रस्तुत रहते थे। दस्यु अथवा दास शब्द के प्रसंगों के
(२) योगदर्शन के निर्माता ऋषि भी पतञ्जलि कहे आधार पर उपर्युक्त मत पुष्ट होता है। किन्तु आवश्यक
जाते है । महाभाष्यकार एवं योगदर्शनकार दोनों पतञ्जलि है, कि आर्यों के देवों की पूजा न करने वाले और पुरोहितों
एक है अथवा नहीं, ठीक-ठीक नहीं कहा जा सकता। को दक्षिणा न देने वाले इन पणियों के बारे में और भी
परन्तु दोनों एक हो सकते हैं । महाभाष्यकार पतञ्जलि कुछ सोचा जाय । इन्हें धर्मनिरपेक्ष, लोभी और हिंसक
दूसरी शती ई० पू० के प्रारम्भ में हुए थे। सूत्रशैली की व्यापारी कहा जा सकता है । ये आर्य और अनार्य दोनों
रचनाएँ प्रायः इस काल तक और इसके आगे भी होती हो सकते हैं । हिलबैण्ट ने इन्हें स्ट्राबो द्वारा उल्लिखित
रही। अतः भाष्यकार योगसूत्रकार भी हो सकते हैं। पनियन जाति के तुल्य माना है, जिसका सम्बन्ध दहा
दे० 'योगदर्शन' । (दास) लोगों से था । फिनिशिया इनका पश्चिमी उपनिवेश था, जहाँ ये भारत से व्यापारिक वस्तुएं, लिपि, पताका-इस शब्द का पुराना प्रयोग अद्भूत ब्राह्मण में कला आदि ले गये।
हुआ है । इसका वैदिक पर्याय 'केतु' है। धार्मिक कृत्यों पण्ढरपुर-महाराष्ट्र प्रदेश का प्रधान तीर्थ। महाराष्ट्र
में देवताओं के रथ के प्रतीक रूप में पताका की स्थापना सन्तों के आराध्य भगवान् विष्णु यहाँ अधिष्ठित हैं जो
होती है। विट्ठल कहे जाते हैं । भक्त पुण्डरीक की भक्ति से रीझकर पति-पाशुपत सम्प्रदाय में तीन तत्त्व प्रधान है-पति, भगवान् जब सामने प्रकट हए तो भक्त ने उनके बैठने के पशु और पाश । शिव ही पति है, मनुष्य उनके पशु है लिए ईंट (विट) धर दी (थल) । इससे भगवान् का नाम जो पाश (सांसारिक माया) से बंधे रहते हैं। 'पति' 'विट्ठल' पड़ गया है । देवशयनी और देवोत्थानी एकादशी अथवा शिव के अनुग्रह से ही पश् ( मनुष्य ) पाश को बारकरी सम्प्रदाय के लोग यहाँ यात्रा करने आते हैं। (सांसारिक बन्धन ) से मुक्त होता है । दे० 'पाशुपतयात्रा को ही वारी देना कहते हैं। भक्त पुण्डरीक इस सम्प्रदाय' । धाम के प्रतिष्ठाता माने जाते हैं । संत तुकाराम, ज्ञानेश्वर, पति-पश-पाशम-पाशपत-सम्प्रदाय की तरह शव सम्प्रदाय में नामदेव, राँका-बांका, नरहरि आदि भक्तों की यह निवास
का-बाका, नरहार आदि भक्ता का यह निवास- भी जीव मात्र पशु कहलाते हैं। उनके पति पशुपति अर्थात् भूमि रही है। पंढरपुर भीमा नदी के तट पर है, जिसे
___ महेश्वर शिव है । मल, कर्म, माया और रोधशक्ति ये यहाँ चन्द्रभागा भी कहते हैं ।
चार पाश हैं । स्वाभाविक अपवित्रता का नाम मल है, पतञ्जल काप्य-एक ऋषि का नाम, जिनका उल्लेख दो। जो दृक् और क्रिया शक्ति को ढके रहता है। धर्माधर्म बार बृहदारण्यक उपनिषद् (३.३,१; ७,१) में हुआ है । का नाम कर्म है । प्रलय में जिसके भीतर सभी कार्य समा वेबर के मतानुसार उनका नाम कपिल तथा पतञ्जलि जाते है और सृष्टि में जिससे सभी कार्य निकलते हैं, उसे (सांख्ययोग प्रणाली के प्रवर्तक) नामों का पूर्व रूप है, माया कहते हैं । पुरुष की गति में रुकावट डालनेवाले इसी से आगे चलकर दो दर्शनकार ऋषिनामों का विकास कर्म रोधशक्ति कहलाते हैं। हुआ।
पत्रव्रत-यह संवत्सर व्रत है । एक वर्ष तक इसका अनुष्ठान पतअलि-(१) संस्कृत व्याकरण के इतिहास में पतञ्जलि होता है। इसमें स्त्री एक पान, सुपारी तथा चूना का महाभाष्य महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है । इस ग्रन्थ की किसी स्त्री या पुरुष को दान में दे देती है। वर्ष के अन्त महत्ता व्याकरण शास्त्र की उपादेयता के अतिरिक्त में सुवर्ण अथवा रजत का पान तथा चूने के रूप में तत्कालीन सामाजिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक, ऐतिहासिक मोतियों का दान किया जाता है। ऐसी स्त्री न कभी एवं राजनीतिक दशाओं पर भी प्रकाश डालने के कारण
दुर्भाग्यग्रस्त रहती और न उसके मुख से दुर्गन्ध आती है।
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