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ने न्यायवानिक की तात्पर्य टीका पर न्यायनिवस्थप्रकाश नामक व्याख्या लिखी है ।
न्यायनिर्णय -- महात्मा आनन्द गिरि शङ्कराचार्य के भाष्यों के टीकाकार हैं। उन्होंने वेदान्तसूत्र के शाङ्कर भाष्य पर न्यायनिर्णय नाम की अपूर्व टीका लिखी है । न्यायपरिशुद्धि - इस नाम के दो ग्रन्थों का पता चलता है, पहला आचार्य रामानुजरचित तथा दूसरा आचार्य वेङ्कट नाथ का लिखा हुआ है ।
न्यायभाष्य - अक्षपाद गौतम प्रणीत न्यायसूत्र पर वात्स्या
पन (५०० ई०) ने न्यायभाष्य प्रस्तुत किया है । न्यायमञ्जरी - जयन्त भट्ट (९०० ई०) ने न्यायमञ्जरी नामक ग्रन्थ का निर्माण किया। यह न्यायदर्शन का विश्यकोश है ।
न्यायमकरन्द - अद्वैत वेदान्त मत का एक प्रामाणिक ग्रन्थ । इसके रचयिता आनन्दबोध भट्टारकाचार्य थे। चितुवा चार्य ने, जो तेरहवीं शती में वर्तमान थे, न्यायमकरन्द की व्याख्या की है। इससे मालूम होता है कि आनन्द वोध बारहवीं छतो में हुए थे । न्यायमालाविस्तर पूर्व मीमांसा का माधवाचार्य रचित एक ग्रन्थ, जो जैमिनीयन्यायमालाविस्तर कहलाता है। इसी प्रकार से इनका रचा उत्तर मीमांसा का ग्रन्थ वैयासिकन्यायमाला है ।
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न्यायमुक्तावली - अप्पय दीक्षित रचित न्यायमुक्तावली मध्वमत का अनुसरण करती है। उन्होंने स्वयं ही इसकी एक टीका भी लिखी है । न्यायरक्षामणि- यह ब्रह्मसूत्र के प्रथम अध्याय की शाङ्कर सिद्धान्तानुसारिणी व्याख्या है। दीक्षित हैं ।
व्याख्याकार अप्पय
न्यायरत्नमाला - ( १ ) पार्थसारथि मिश्र ( १३०० ई० ) ने कुमारिल के तम्बवार्तिक के आधार पर कर्ममीमांसा विषयक यह ग्रन्थ प्रस्तुत किया है।
नामक
(२) आचार्य रामानुज ने न्यायरत्नमाला एक ग्रन्थ रचा है। निश्चित ही इस ग्रन्थ में विशिष्टाद्वैत की पुष्टि तथा शाङ्कर मत का खण्डन हुआ है । न्यायरत्नाकर - भट्टपाद कुमारिल के श्लोकवार्तिक पर यह टीका ( न्यायरत्नाकर) पार्थसारथि मिश्र ( १३०० ई० ) द्वारा प्रस्तुत हुई है ।
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न्यायनिर्णय न्याय सूचीनिबन्ध
कोतकर ( सातवीं शती) ने वात्स्या यन के न्यायभाष्य पर यह वार्तिक प्रस्तुत किया । इस पर अनेक निवन्ध विद्याभूषण एवं डा० कीम द्वारा लिखे गये हैं । डा० गङ्गानाथ झा ने इसका अंग्रेजी अनुवाद किया है। न्यायवार्तिक तात्पर्य- वाचस्पति मिश्र द्वारा प्रस्तुत न्यायदर्शन पर यह टीका है जो उद्योतकर के वालिक के उपर लिखी गयी है । इस टीका की भी टीका उदयनाचार्यकृत तात्पयंपरिशुद्धि है।
यतिका टीका- दे० 'न्यायवार्तिकतात्पर्य', दोनों समान हैं ।
न्यायवातिकतात्पयंपरिशुद्धि - उदयनाचार्यकृत यह न्यायवार्त्तिकतात्पर्य की टीका है । इस परिशुद्धि पर वर्धमान उपाध्यायकृत 'प्रकाश' है। स्वायविवरण- मध्वाचार्य प्रणीत न्यायविषयक एक ग्रंथ है। न्यायवृत्ति - अभवतिलक द्वारा न्यायवृत्ति त्यायदर्शन के सूत्रों पर रची गयी है ।
न्यायसार - भासर्वज्ञ (१०वीं शताब्दी) द्वारा रचित न्यायसार न्याय शास्त्र का महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है । इस पर अठारह भाष्य पाये जाते हैं ।
न्यायसिद्धासन - विशिष्टाद्वैत दर्शन पर आचार्य रामानुजप्रणीत यह एक ग्रन्थ है । इस नाम का एक ग्रन्थ आचार्य वेङ्कटनाथ ने भी रचा था । न्यायसुधा - ( १ ) जयतीर्थाचार्य ( पन्द्रहवीं शताब्दी ) ने माध्यमत का विवेचन इस ग्रन्थ में किया है । यह ग्रन्थ 'ब्रह्मसूत्र' की टीका है। सम्भवतः यादवाचार्य ने इस पर कोई वृति लिखी थी जो अभी तक प्रकाशित नहीं है ।
(२) सोमेश्वर ( १४०० ई० ) ने कुमारिल भट्ट के 'तन्त्रवातिक' पर न्यायसुधा नामक टीका प्रस्तुत की। न्यायसूत्र - सम्भवतः पाँचवीं अथवा चौथी शताब्दी ई० पू० में अक्षपाद गौतम ने 'न्यायसूत्र' प्रस्तुत किया । इस पर वात्स्यायन मुनि का भाष्य है तथा इस पर अनेक टीकायें एवं वृत्तियाँ रची गयी हैं 'न्यायसूत्र' ही न्याय दर्शन का मूल ग्रन्थ है और इसके रचयिता गौतम ऋषि ही न्याय दर्शन के प्रवर्तक है। दे० 'न्याय' । न्यायसूचीनिबन्ध - वाचस्पति मिश्र रचित उन्हीं की न्यायवातिकतात्पर्य टीका का यह परिशिष्ट है। इसका रचनाकाल ८९८ वि० है ।
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