________________
२५३
गोस्वामीपुरुषोत्तमज-गौतमधर्मसूत्र 'गोस्वामी' है। इसलिए वीतराग सन्तों और वल्लभ- जिस मत का प्रतिपादन किया है उसे 'अजातवाद' कहते कुल के गुरुओं को भी इस उपाधि से विभूषित किया है । सृष्टि के विषय में भिन्न-भिन्न सम्प्रदायों के भिन्न-भिन्न जाता है।
मत हैं। कोई काल से सृष्टि मानते हैं और कोई भगवान् (२) चैतन्य सम्प्रदाय के धार्मिक नेता, विशेष कर के संकल्प से इसकी रचना मानते हैं। इस प्रकार कोई रूप, सनातन, उनके भतीजे जीव, रघुनाथदास, गोपाल परिणामवादी हैं और कोई आरम्भवादी । किन्तु गौडपाद भट्ट तथा रघुनाथ भट्ट 'गोस्वामी' कहलाते हैं। ये इस के सिद्धान्तानुसार जगत् की उत्पत्ति ही नहीं हुई, केवल सम्प्रदाय के अधिकारी नेता थे। इन्होंने अनेक ग्रन्थ लिखे एक अखण्ड चिद्धन सत्ता ही मोहवश प्रपञ्चवत् भास रही है तथा प्रचारार्थ कार्य किये हैं। चैतन्य के साथी अनु- है । यही बात आचार्य इन शब्दों में कहते हैं : यायियों एवं उनसे सम्बन्धित अनुयायियों ( भाई, भतीजे मनोदृश्यमिदं द्वैतमद्वैतं परमार्थतः । आदि ) को भी गोस्वामी कहा जाता है ।
मनसो ह्यमनीभावे द्वैतं नैवोपलभ्यते ॥ (३) गौण रूप में गोस्वामी (गुसांई) उन गृहस्थों को [यह जितना द्वैत है सब मन का ही दृश्य है। परभी कहते हैं जो पुनः विवाह कर लेने वाले विरक्त साधु- मार्थतः तो अद्वैत ही है, क्योंकि मन के मननशून्य हा संतों के वंशज हैं।
जाने पर द्वैत की उपलब्धि नहीं होती। ] आचार्य ने गोस्वामी पुरुषोत्तमजी-वल्लभ सम्प्रदाय के प्रमुख
अपनी कारिकाओं में अनेक प्रकार की युक्तियों से यही विद्वानों में गोस्वामी पुरुषोत्तमजी विशेष उल्लेखनीय सिद्ध किया है कि सत्, असत् अथवा सदसत् किसी भी है। इनकी अनेक गंभीर रचनाओं से पुष्टिमार्गीय साहित्य
प्रकार से प्रपञ्च की उत्पत्ति सिद्ध नहीं हो सकती। अतः की श्रीवृद्धि हुई है।
परमार्थतः न उत्पत्ति है, न प्रलय है, न बद्ध है, न साधक गौडपाद-'सांख्यकारिका व्याख्या' के रचयिता एवं अद्वैत है, न मुमुक्षु है और न मुक्त ही है : सिद्धान्त के प्रसिद्ध आचार्य । सांख्यकारिका के पद्यों एवं
न निरोधो न चोत्पत्तिर्न बद्धो न च साधकः । सिद्धान्तों की ठीक-ठोक व्याख्या करने में इनकी टीका न मुमुक्षुर्न वै मुक्त इत्येषा परमार्थता ।। महत्त्वपूर्ण है। गौडपादाचार्य के जीवन के बारे में कोई बस, जो समस्त विरुद्ध कल्पनाओं का अधिष्ठान, विशेष बात नहीं मिलती। आचार्य शङ्कर के शिष्य सर्वगत, असङ्ग, अप्रमेय और अविकारी आत्मतत्त्व है, एक सुरेश्वराचार्य के 'नैष्कर्म्यसिद्धि' ग्रन्थ से केवल इतना पता
मात्र वही सद्वस्तु है। माया की महिमा से रज्जू में सर्प, लगता है कि वे गौड देश के रहने वाले थे। इससे प्रतीत शुक्ति में रजत और सुवर्ण में आभूषणादि के समान उस होता है कि उनका जन्म बङ्गाल प्रान्त के किसी स्थान में सर्वसङ्गशून्य निर्विशेष चित्तत्त्व में ही समस्त पदार्थों की हुआ होगा। शङ्कर के जीवनचरित से इतना ज्ञात होता प्रतीति हो रही है। है कि गौडपादाचार्य के साथ उनकी भेंट हुई थी। गौड़ीय वैष्णवसमाज-बङ्गाल के चैतन्य सम्प्रदाय का परन्तु इसके अन्य प्रमाण नहीं मिलते।।
_ दूसरा नाम 'गौडीय वैष्णव समाज, है, जिसके दार्शनिक ___ गौडपादाचार्य का सबसे प्रधान ग्रन्थ है 'माण्डूक्यो- मत का नाम 'अचिन्त्य भेदाभेद वाद' है। विशेष विवरण पनिषत्कारिका'। इसका शङ्कराचार्य ने भाष्य लिखा के लिए 'चैतन्य सम्प्रदाय' अथवा 'अचिन्त्यभेदाभेदहै। इस कारिका की 'मिताक्षरा' नामक टीका भी वाद' देखें। मिलती है । उनकी अन्य टीका है 'उत्तर गीता-भाष्य'। गौतम-न्यायदर्शन के रचयिता का नाम । यह एक गोत्रउत्तर गीता (महाभारत) का एक अंश है । परन्तु यह नाम भी है। शाक्यगण इसी गोत्र का था। अतः बुद्ध अंश महाभारत की सभी प्रतियों में नहीं मिलता। गौतम भी कहलाते हैं । दे० 'न्याय दर्शन'।
गौडपाद अद्वैतसिद्धान्त के प्रधान उद्घोषक थे । इन्होने गौतमधर्मसूत्र-प्रारम्भिक धर्मसूत्रों में से यह सामवेदीय अपनी कारिका में जिस सिद्धान्त को वीजरूप में प्रकट धर्मसूत्र है। इसमें दैनिक एवं व्यावहारिक जीवन सम्बन्धी किय, उसी को शङ्कराचार्य ने अपने ग्रन्थों में विस्तृत रूप से विधि संकलित है। इसमें सामाजिक जीवन, राजधर्म समझाकर संसार के सामने रखा । कारिकाओं में उन्होंने तथा विधि अथवा व्यवहार (न्याय) का विधान है। हरदत्त
नागराला
या महा मिलता ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org