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नित्यातन्त्र-निम्बार्क
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नित्यातन्त्र-एक तन्त्रग्रन्थ का नाम ।
सन्तान के रूप में अवतरित हों और फिर दोनों का गोकुल नित्यानन्वतन्त्र--एक तन्त्र का नाम ।
में विनिमय हुआ। कंस ने उस कन्या की टांग पकड़कर नित्यानन्दमिश्र-ये बहदारण्यक उपनिषद् के वृत्तिलेखक शिला पर ज्यों ही पटकना चाहा कि वह हाथ से छटकर थे । इनकी वृत्ति का नाम है 'मिताक्षरा' ।
आकाश में चली गयी तथा इन्द्र ने इसे अपनी बहिन माननित्यानन्वाश्रम-छान्दोग्य एवं केनोपनिषद् के एक वृत्ति- कर विन्ध्य पर्वत पर बैठा दिया। वहाँ देवी ने शुम्भ तथा लेखक का नाम ।
निशुम्भ नामक दो दैत्यों का वध किया और विष्णु के नित्यानन्द-चैतन्य महाप्रभु के प्रमुख सहयोगी । नित्यानन्द वचन के अनुसार उसका पूजन और सम्मान जगत् में पहले मध्व और पीछे चैतन्य के प्रभाव में आये । चैतन्य प्रचलित हो गया। सम्प्रदाय की व्यवस्था का कार्य इन्हीं के कन्धों पर था,
निम्बसप्तमी-वैशाख शुक्ल सप्तमी को इस व्रत का प्रारम्भ क्योंकि चैतन्य स्वयं व्यवस्थापक नहीं थे। चैतन्य के।
होता है। एक वर्षपर्यन्त व्रत चलता है। इसमें सूर्य की परलोक गमन के बाद भी इन्होंने सम्प्रदाय की व्यवस्था
पूजा का विधान है। कमल की आकृति बनाकर सूर्य सुरक्षित रखी तथा सदस्यों के आचरण के नियम बनाये ।
(खखोल्क) को स्थापित करना चाहिए । इसका मूल मन्त्र नित्यानन्द के बाद इनके पुत्र वीरचन्द्र ने पिता के भार
है : 'ओं खखोल्काय नमः' । बारह आदित्य, जय, विजय को सँभाला। चैतन्य स्वयं शङ्कराचार्य के दसनामी संन्यासियों में से भारती शाखा के संन्यासी थे। किन्तु
शेष, वासुकि, विनायक, महाश्वेता तथा रानी सुवर्चला को
सूर्य की प्रतिमा के सामने स्थापित किया जाना चाहिए नित्यानन्द तथा वीरचन्द्र ने सरल जीवन यापन करने
तथा सूर्य की प्रतिमा के सम्मुख शयन करना चाहिए। वाले तथा सरल अनुशासन वाले आधुनिक साधुओं के दल को जन्म दिया, जो वैरागी तथा वैरागिनी कहलाये। ये
अष्टमी को पुनः सूर्यपूजन करने की विधि है । इससे व्रती
समस्त रोगों से मुक्त हो जाता है। वैरागी रामानन्द के द्वारा प्रचलित वैरागी पन्थ के ढंग के थे।
निम्बार्क-एक वैष्णव सम्प्रदायप्रवर्तक आचार्य । ये आन्ध्र नित्यानन्ददास-वि० सं० १६९२ में नित्यानन्ददास ने प्रदेश के एक विद्वान् भागवतधर्मी थे, जो व्रज में जा
चैतन्य सम्प्रदाय के इतिहास पर प्रेमविलास नामक एक बसे थे । इन्होंने राधा की पूजा को मान्यता दी तथा छन्दोबद्ध ग्रन्थ लिखा।
अपना एक सम्प्रदाय स्थापित किया । इनका समय नित्याह्निकतिलक तन्त्र-इस ग्रन्थ में शाक्कों के 'कुब्जिका- निश्चित नहीं है । निम्बार्क भेदाभेद दर्शन के मानने वाले
सम्प्रदाय' के दैनिक क्रिया-कर्म का वर्णन मिलता है। थे। निम्बार्क का प्रारम्भिक नाम भास्कर था । अतः कुछ इसकी रचना १२९४ वि० के लगभग हुई थी।
विद्वान् सोचते हैं कि निम्बार्क एवं भास्कराचार्य (९०० ई०), निद्रा-योगदर्शन के अनुसार जाग्रत् अवस्था से स्वप्न । जिन्होंने भेदाभेद भाष्य रचा, एक ही व्यक्ति हैं। किन्तु अवस्था में जाने का नाम निद्रा है। किन्तु यह एक स्थूल यह असम्भव है कि एक ही व्यक्ति शुद्ध वेदान्ती भाष्य शारीरिक क्रिया है। मन इसमें क्रियाशील बना रहता है तथा साम्प्रदायिक वृत्ति लिखे । व्रज में राधा-उपासना और चेतना से शून्य नहीं होता है।
के प्रचलन की घटना भास्कराचार्य के काफी पीछे की है निद्रा कालरूपिणी (दुर्गा)-दुर्गा के एक रूप को योगनिद्रा (लगभग ११०० ई०) । निम्बार्क रामानुज से काफी
या निद्रा-कालरूपिणी कहते हैं। उसकी पूजा का सम्बन्ध प्रभावित थे तथा उन्हीं की तरह ध्यान पर अधिक जोर विष्णु-कृष्ण से है। हरिवंश में एक कथा वर्णित है देते थे । इनके अनुसार राधा कृष्ण की शाश्वत पत्नी हैं। कि कंस को मारने के लिए विष्ण पाताल लोक गये । वहाँ अपने पति के सदृश ही वे वृन्दावन में अवतरित हई तथा उन्होंने निद्रा-कालरूपिणी से सहायता माँगी तथा उसको उनकी विवाहिता पत्नी हुई । निम्बार्कों के कृष्ण विष्णु के वचन दिया कि तुमको मैं देवी का सम्मान दिलाऊँगा। अवतार मात्र नहीं हैं, वे ब्रह्म हैं तथा उन्हीं से राधा, उन्होंने उससे यशोदा की नवीं सन्तान के रूप में उसी दिन गोप या गोपी जन्म लेते हैं, जो उनके संग गोलोक में जन्म ग्रहण करने को कहा, जिस दिन वे देवकी की आठवीं लीला करते हैं।
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