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पुरा तक सारा स्थान 'जङ्गमबाड़ी' मुहल्ला कहलाता है, जो अधिकांश मठ की ही जागीर है। इसके सिवा मानसरोवर, धनकामेश्वर, मनः कामेश्वर एवं साक्षीविनायक के सामने का स्थान इसी मठ के अधीन है । यह मठ शिवलिङ्गमय है। इसके अधीन हरिश्चन्द्रपुत्र रोहिताश्व को जहाँ साँप ने काटा था वह बगीचा भी है । यह मठ काशी में सबसे पुराना, ऐतिहासिक और दर्शनीय है । जटायु - रामचन्द्रजी के वनवास का सहायक एक गरुडवंशज पक्षी, जो गृधराज कहलाता था। सीताहरण का विरोध करने पर रावण ने इसके पंख काट दिये थे। रामचन्द्रजी ने अपने हाथों इस पक्षी का अन्तिम संस्कार किया था । जन्मतिथिकृत्य प्रति वर्ष जन्मतिथि वाले दिन स्नान-ध्यान के पश्चात् पुरुष को गुरु देवगण, अग्नि, ब्राह्मण, मातापिता तथा प्रजापति का पूजन सम्मान आदि करना चाहिए । अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनुमानजी, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम, मार्कण्डेय ( इन सबको चिरंजीवी माना गया है) का पूजन करना चाहिए। मार्कण्डेय की निम्नलिखित मन्त्र से प्रार्थना करनी चाहिए :
मार्कण्डेय महाभाग प्रकल्पान्तजीवन | चिरंजीवी यथा त्वं भो भविष्यामि तथा मुने । जन्मतिथि का उत्सव मनाने वाले को मिष्ट खाद्यपदार्थ खाना चाहिए किन्तु मांस वर्जित है । उस दिन ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हुए तिलमिश्रित जल पीना चाहिए । दे० वर्ष कृत्यकौमुदी, ५५३ - ५६४; तिथितत्त्व, २०-२६; समयमयूख, १७५ ।
जन्माष्टमी - दे० 'कृष्णजन्माष्टमी' | जनक (विदेहराज ) - मिथिला के राजा, जिनको शतपय ब्राह्मण एवं बृहदारण्यकोपनिषद् में बड़ा महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है । जैमिनीय ब्राह्मण एवं कौषीतकि उपनिषद् में भी इन्हें सम्मान्य स्थान प्राप्त है। ये याज्ञवल्क्य वाजसनेय एवं स्वेतकेतु आरुणेय आदि ऋषियों के समकालीन थे। अपनी उदारता एवं ब्रह्मसम्बन्धी विवादों में दिलचस्पी के कारण ये प्रसिद्ध है। ये काशी के राजा अजातशत्रु 'के भी समकालीन कहे जाते हैं । ये कुरु-पञ्चाल के ब्राह्मणों से समीपी सम्बन्ध रखते थे, जैसा कि याज्ञवल्क्य एवं श्वेतकेतु के उदाहरण से प्रकट है । उस समय दर्शन का विद्यापीठ कुरुपञ्चाल था । शतपथ ब्राह्मण में जनक के
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जटायु - जनमसालो ब्रह्मज्ञानी होने का उल्लेख है। इससे उनके जातिपरिवतन का बोध न होकर उनके ब्रह्मतत्त्वज्ञान का बोध होता है। तैत्तिरीय ब्राह्मण एवं शांखायन श्रौतसूत्र में भी उनका उल्लेख है । कुछ विद्वानों के अनुसार उनका समय ६०० ई० पू० माना गया है । किन्तु यह तिथि सन्देहात्मक है, क्योंकि अजातशत्रु नाम के दो राजा थे, मगध एवं काशी के ।
विदेह के राजा जनक एवं सीता के पिता की एकता कम सन्देहात्मक है, किन्तु इसे सिद्ध नहीं किया जा सकता। सूत्रों में जनक अति प्राचीनकालीन राजा माने गये हैं एवं उनके समय में पत्नी का वह सम्मानित स्थान नहीं था जैसा आगे चलकर हुआ भारतीय साहित्यिक और धार्मिक दार्शनिक परम्परा में जनक विदेहराज और सीता के पिता के रूप में ही प्रसिद्ध हैं, जो वाल्मीकिरामायण के प्रमुख पात्रों में से हैं । जनक ( सप्तरात्र यज्ञ ) पञ्चवित्राह्मण शाखा का एक श्रौतसूत्र है एवं एक गृह्यसूत्र । पहले श्रौतसूत्र का नाम माशक है। लाट्यायन ने इसे मशकसूत्र लिखा है । इस ग्रन्थ में जनक सप्तरात्र यज्ञ की चर्चा है, किन्तु सप्तरात्र यज्ञ जनक कौन थे, यह बतलाना कठिन है । जनकपुर विहार का एक वैष्णव तीर्थ । उपनिषत्कालीन ब्रह्मज्ञान तथा रामावत वैष्णव सम्प्रदाय दोनों से इसका सम्बन्ध है । जनकपुर तीर्थ का प्राचीन नाम मिथिला तथा विदेहनगरी है । सीतामढ़ी अथवा दरभंगा से जनकपुर २४ मील दूर नेपाल राज्य के अन्तर्गत है, जिसके चारों ओर पूर्वक्रम से शिलानाथ, कपिलेश्वर, कूपेश्वर, कल्याणेश्वर, जलेश्वर, क्षीरेश्वर तथा मिथिलेश्वर रक्षक देवताओं के रूप में शिवमन्दिर अब भी विद्यमान हैं। इसके चारों ओर विश्वामित्र, गौतम, बाल्मीकि और याज्ञवल्क्य के आश्रम थे, जो अब भी किसी न किसी रूप में विद्यमान हैं महाभारत काल में यह जंगल के रूप में था, जहाँ साधु-महात्मा तपस्या किया करते थे । अक्षयवट के तल से श्रीरामपंचायतन मूर्ति प्राप्त हुई थी, वह यहाँ पधरायी गयी है । लोगों का विश्वास है कि इससे जनकपुर की ख्याति और बढ़ गयो । जनमसाखी सिक्ख धर्म की प्रसिद्ध पुस्तक इसमें गुरु नानक के जीवन की कथाएँ प्राप्त होती हैं। ये जनमसाखियाँ अनेक हैं किन्तु कथाएं काल्पनिक हैं एवं
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