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नदोस्नान-नन्दानवमीव्रत
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अनेक ऋचाओं की रचना हुई तथा अनेक यज्ञ हुए। तिथियाँ हैं । नन्दा का अर्थ है 'आनन्दित करने वाली' । सरस्वती को अच्छी ऋचाओं तथा अच्छे विचारों की इन तिथियों में व्रत करने से आनन्द की प्राप्ति होती है । प्रेरणादायी समझकर ही परवर्ती काल में इसे ज्ञान एवं नन्दादिविधि-रविवार के बारह नाम है, यथा नन्द, भद्र कला की देवी माना गया। पंजाब की दूसरी नदियों से इत्यादि । माघ मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को पड़ने सम्बन्ध स्थापित करते हुए इसे 'सात बहिनों वालो' अथवा वाला रविवार नन्द है। उस दिन रात्रि को भोजन करना सातों में से एक कहा गया है।
चाहिए तथा सूर्य की प्रतिमा को घी में स्नान कराकर पार्थिव नदी होते हुए भी सरस्वती की उत्पत्ति स्वर्ग उस पर अगस्ति पुष्प चड़ाने चाहिए। तदनन्तर ब्राह्मणों से मानी गयी है । वह पर्वत (स्वर्गीय समुद्र) से निकलती को गेहूँ के पुए खिलाने चाहिए । है। स्वर्गीय सिन्ध ही उसकी माता है। उसे 'पावीरवी' नन्दादिव्रतविधि-इस व्रत का प्रति रविवार को अनुष्ठान (सम्भवतः विद्युत्पुत्री) भी कहा गया है तथा आकाश के
___ करना चाहिए । इसमें विधिवत् सूर्य की पूजा का विधान महान् पर्वत से उसका यज्ञ में उतरना बताया गया है। है। व्रती को सूर्यग्रहण के अवसर पर उपवास करते हुए सरस्वती की स्वर्गीय उत्पत्ति ही गङ्गा की स्वर्गीय महाश्वेता मन्त्र का जप करना चाहिए । तदनन्तर ब्राह्मणों उत्पत्ति की दृष्टिदायक है। अन्त में सरस्वती को सन्तान
को भोजन कराना चाहिए। सूर्यग्रहण के दिन किये गये वाली तथा उत्पत्ति की सहायक कहा गया है । वध्रयश्व स्नान, दान तथा जप के अनन्त फल तथा पुण्य होते हैं। को दिवोदास का दान सरस्वती ने ही किया था। 'नदी
नन्दादेवी–हिमालय में गढ़वाल जिले के बधाण परगने से स्तुति' सूक्त से पता लगता है कि वैदिक धर्म का प्रचार
ईशान कोण की ओर 'नन्दादेवी' पर्वतशिखर है। यह मध्यदेश से पंजाब होते हुए अफगानिस्तान तक हुआ था।
गौरीशङ्कर के बाद विश्व का सर्वोच्च शिखर है। नन्दा नदीस्तान-नदी में स्नान करना पुण्यदायक कृत्य माना देवी इसमें विराजती हैं । भाद्र शुक्ल सप्तमी को यहाँ की गया है। पवित्र नदियों के स्नान के पुण्यों के लिए (प्रति बारहवें वर्ष) यात्रा होती है। इसका आयोजन दे० तिथितत्त्व, ६२-६४; पुरुषार्थचिन्तामणि, १४४-१४५; गढ़वाल का राजकुटुम्ब करता है। नन्दराय के गृह में गदाधरपद्धति, ६०९।
उत्पन्न हई नन्दादेवी ने असुरों को मारकर जिस कुण्ड में नन्दगाँव-व्रजमंडल का प्रसिद्ध तीर्थ । मथुरा से यह स्थान
स्नान कर सौम्यरूपता पायी थी, वह यहाँ 'रूपकुण्ड' ३० मील दूर है। यहाँ एक पहाड़ी पर नन्द बाबा का कहलाता है। संप्रति इस कुण्ड के कुछ रहस्यों की खोज मन्दिर है। नीचे पामरीकुण्ड नामक सरोवर है । यात्रियों के ठहरने के लिए धर्मशाला हैं। भगवान् कृष्ण के नन्दानवमीव्रत-भाद्रपद कृष्ण पक्ष की नवमी (कृत्यकल्पपालक पिता से सम्बद्ध होने के कारण यह स्थान तीर्थ बन तरु द्वारा स्वीकृत) तथा शुक्ल पक्ष की नवमी (हेमाद्रि गया है।
द्वारा स्वीकृत) नन्दा नाम से प्रसिद्ध हैं। वर्ष को तीन नन्दपण्डित-विष्णुस्मृति के एक टीकाकार । नन्दपण्डित
भागों में विभाजित करके तीनों भागों में वर्ष भर भगवती ने विष्णुस्मृति को वैष्णव ग्रन्थ माना है, जो किसी वैष्णव
दुर्गा की पूजा करनी चाहिए। सप्तमी को एकभक्त (एक सम्प्रदाय, सम्भवतः भागवतों द्वारा व्यवहृत होता
समय भोजन) तथा अष्टमी को उपवास करना चाहिए । रहा है।
दूर्वा घास पर भगवान् शिव तथा दुर्गा की प्रतिमाओं को
स्थापित करके जाती तथा कदम्ब के पुष्पों से उनका पूजन नन्दरामदास-महाभारत के प्रसिद्ध बँगला अनुवादक
करना चाहिए । रात्रि को जागरण तथा भिन्न-भिन्न प्रकार काशीरामदास के पुत्र । काशीरामदास के पीछे उनके पुत्र .
के नाटकादि तथा १०८ बार नन्दामन्त्र (ओं नन्दाय नमः) नन्दरामदास सहित दर्जनों नाम हैं, जिन्होंने महाभारत के
के जप करने का विधान है। नवमी के दिन प्रातः अनुवाद की परम्परा जारी रखी थी।
चण्डिका देवी का पूजन करके कन्याओं को भोजन कराना नन्दा-प्रतिपदा, पाठी तथा एकादशी तिथियाँ नन्दा चाहिए।
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