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धूमकेतु-धेनुव्रत
३४३ धूमदान (धूप जलाना) एक आवश्यक उपचार है । भविष्य- को समान सम्मान देकर मिलाने वाला है, चारों वर्गों पुराण में कुछ सुगन्धित पदार्थों के सम्मिश्रण से निर्मित का, और विशेष कर शद्रों का त्यौहार है। धूपों का उल्लेख है, यथा अमृत, अनन्त, यक्ष, धूप, विजय धृतराष्ट्र-(१) एक सर्प-दैत्य, जिसका पितृबोधक नाम धूप, प्राजापत्य आदि । इसके साथ-साथ दस भागों ऐरावत ( इरावन्त का वंशज) है जिसका उल्लेख (दशांग) की धूप का भी उल्लेख मिलता है । कृत्यकल्पतरु अथर्ववेद (१.१०,२९) तथा पञ्चविंश ब्राह्मण में हुआ है के अनुसार विजय नामक धूप आठ भागों से बनती है। (२५.१५,३)। इसका शाब्दिक अर्थ है 'जिसका राष्ट्र भविष्यपुराण (१,६८,२८-२९ ) के अनुसार विजय सर्व- दृढ़ता से स्थिर हो अथवा जिसने राष्ट्र को दृढता से श्रेष्ठ धूप है, जाती सर्वोत्तम पुष्प, केसर सर्वोत्तम सुग
14 पुस, कसर सवात्तम सुग- पकड़ा हो।' न्धित द्रव्य, रक्त चन्दन सर्वोत्तम प्रलेप, मोदक अर्थात् (२) महाभारत के एक प्रमुख पात्र, दुर्योधन आदि लडड सर्वोत्तम मिष्टान्न है। धप को मक्खियों तथा पिस्सुओं
कौरवों के पिता। ये पाण्डु के भाई थे। किन्तु पाण्डु को नष्ट करने वाली एक रामबाण औषध के रूप में के क्षय रोग से मृत होने के कारण पाण्डवों की अवयउद्धृत किया गया है, (गरुडपुराण, १,१७७,८८-८९) । धूप स्कता में ये ही राजा बने। इनके पुत्र दुर्योधन आदि के विस्तृत विवरण के लिए देखिए कृत्यरत्नाकर, ७७-७८; पाण्डवों को राज्य लौटाने के पक्ष में नहीं थे। इसीलिए स्मृतिचिन्ता०, १,२०३ तथा २,४,६५ । बाण भट्ट की महाभारत युद्ध हुआ। धृतराष्ट्र और सञ्जय के संवाद के कादम्बरी (प्रथम भाग, अनुच्छेद ५२) में कथन है कि रूप में श्रीमद्भगवद्गीता का प्रणयन हुआ है, जो महाभगवती चण्डिका के मन्दिर में गग्गल की पर्याप्त मात्रा
भारत का एक अंग है। से युक्त धूप जलायी गयी थी।
पतिव्रत-इस व्रत में शिवजी की प्रतिमा को पंचामृत में धूमकेतु-अथर्ववेद ( १९.९,१० ) में धूमकेतु मृत्यु का एक प्रतिदिन स्नान कराया जाता है। पंचामृत में दधि, विरुद वर्णित है । जिमर इसका अर्थ उल्का लगाते हैं जो दुग्ध, घृत, मधु, गन्ने के रस अथवा शर्करा का मिश्रण ह्विटने के मत में असम्भव है। लैनमन इससे चिता के होता है । एक वर्ष तक यह व्रत चलता है । व्रतान्त में एक धुआँ का अर्थ करते हैं । ज्योतिष ग्रन्थों के अनुसार यह धेनु का पञ्चामृत तथा शंख सहित दान करना चाहिए। पुच्छल तारे का नाम है।
यह संवत्सरवत है । इससे भगवान् शिव का लोक प्राप्त धूमावती-तन्त्रशास्त्र के अनुसार दस महाविद्याओं में से होता है । दे० कृत्यकल्पतरु, ४४४; हेमाद्रि, २.८६५ में एक धमावती हैं। ये विधवा कहलाती हैं। मतियों में पाठभेद है। इसके अनुसार शिव अथवा विष्णु की इनका इसी रूप में अङ्कन हुआ है।
प्रतिमा को स्नान कराना चाहिए, इससे शिव अथवा धूर्तस्वामी-आपस्तम्ब सूत्र के एक भाष्यकार। इन्होंने
विष्णु-लोक प्राप्त होता है। बौधायन श्रौतसूत्र का भी भाष्य लिखा है।
धेनु-धेनु का अर्थ ऋग्वेद (१.३२,९ सहवत्सा) तथा घलिगन्वन-होलिका दहन के दूसरे दिन चैत्र की प्रतिपदा परवर्ती साहित्य (अ० वे० ५.१७, १८,७,१०४, १०:० को होलिकाभस्म का वन्दन होता है, जिसे धूलिवन्दन
सं० २.६,२,३; मैत्रायणी सं० ४.४,८; वाजस० सं० कहते हैं । इस दिन श्वपच (चाण्डाल) तक से गले मिलने
१८,२७; शत० ब्रा० २.२,१२१ आदि) में 'दूध देने वाली की प्रथा है। लोग रङ्ग खेलते हैं, आम्रमजरी का
गाय' है । इसका पुरुषवाचक शब्द वृषभ है । धेनु का प्राशन करते हैं, परस्पर भोजन कराते हैं, गाना-बजाना,
अर्थ केवल स्त्री है। सम्पत्तिसंग्रह और दान दोनों में उत्सव, नाच आदि होता है। भली भाँति से मनोरञ्जन धेनु का महत्त्वपूर्ण स्थान है। के उपाय किये जाते हैं। गालियाँ बकने और मद्य सेवन धेनुव्रत--जिस समय गौ वत्स को जन्म दे रही हो उस की कुप्रथा भी चल पड़ी थी, जो अब सुधारकों के प्रभाव समय प्रभूत मात्रा में स्वर्ण एवं उस गौ का दान करे । से कम हो चली है। होली और फाग में वर्षों के वैर को व्रती यदि उस दिन केवल दुग्धाहार करे तो उच्चतम लोक जला देते हैं, धूल में उड़ा देते हैं । यह त्यौहार सब वर्गों को प्राप्त करके मोक्ष को प्राप्त हो जाता है ।
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