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ज्ञानेश्वर-झ
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संत-महात्माओं के उपदेशों से भी आत्मा-परमात्मा, लोक- सूत्रकाल में ज्योतिष की गणना छः वेदाङ्गों में होने परलोक आदि का ज्ञान हो जाता है। इस प्रकार से लगी थी । यहाँ तक कि यह वेद का नेत्र तक समझा जाने अध्यात्मतत्त्ववेत्ता ही ज्ञानी कहे जाते हैं, जो भगवान् के लगा। वैदिक यज्ञों और ज्योतिष का घनिष्ठ सम्बन्ध हो सगुण या निर्गुण दोनों स्वरूपों के ज्ञाता हो सकते हैं। गया। यज्ञों के लिए उपयुक्त समय (नक्षत्रादि की गति ज्ञानेश्वर-प्राचीन भागवत सम्प्रदाय का अवशेष आज भी आदि) का ज्योतिष ही निर्देश करता है। भारत के दक्षिण प्रदेश में विद्यमान है। महाराष्ट्र में इस ज्योतिषतन्त्र-'सौन्दर्यलहरी' के ३१वें श्लोक की व्याख्या सम्प्रदाय के पूर्वाचार्य सन्त ज्ञानेश्वर समझे जाते हैं । जिस में विद्यानाथ ने ६४ तन्त्रों की सूची लिखी है। ये दो तरह ज्ञानेश्वर नाथसम्प्रदाय के अन्तर्गत योगमार्ग के प्रकार के हैं, मिश्र एवं शुद्ध । इनमें 'ज्योतिषतन्त्र' मिश्र पुरस्कर्ता माने जाते हैं, उसी प्रकार भक्ति मार्ग में वे तन्त्र है। विष्णस्वामी संप्रदाय के पुरस्कर्ता माने जाते हैं। फिर ज्योतिःसरतीर्थ-कुरुक्षेत्र के अन्तर्गत भगवद्गीता की उपभी योगी ज्ञानेश्वर ने मराठी में 'अमृतानुभव' लिखा जो देशभूमि ज्योतिःसर अति पवित्र स्थान है। यहाँ पर एक अद्वैतवादी शैव परम्परा में आता है। निदान, ज्ञानेश्वर अति प्राचीन सरोवर 'ज्योतिःसर' अथवा 'ज्ञानस्रोत' सच्चे भागवत थे, क्योंकि भागवत धर्म की यही विशेषता है के नाम से प्रसिद्ध है। कि वह शिव और विष्णु में अभेद बुद्धि रखता है। ज्योतीश्वर-एक वेदान्ताचार्य, जिनका उल्लेख श्रीनिवास__ज्ञानेश्वर ने भगवद्गीता के ऊपर मराठी भाषा में एक
दास ने विशिष्टाद्वैतवादी ग्रन्थ यतीन्द्रमतदीपिका में अन्य 'ज्ञानेश्वरी' नामक १०,००० पद्यों का ग्रन्थ लिखा है। आचार्यों के साथ किया है। इसका समय १३४७ वि० कहा जाता है। यह भी अद्वैत- ज्वालामुखी देवी-हिमाचल प्रदेश में स्थित एक तीर्थ, जो वादी रचना है किन्तु यह योग पर भी बल देती है । २८ पंजाब के पठानकोट से आगे ज्वालामुखीरोड स्टेशन से अभंगों (छंदों) की इन्होंने 'हरिपाठ' नामक एक पुस्तिका लगभग १३ मील दूर पर्वत पर ज्वालामुखी मन्दिर लिखी है जिस पर भागवतमत का प्रभाव है। भक्ति का कहलाता है । यह शाक्त पीठ है। ज्वाला के रूप में यहाँ , उद्गार इसमें अत्यधिक है। मराठी संतों में ये प्रमुख
शक्ति का प्राकट्य देखा जाता है। समझे जाते हैं । इनकी कविता दार्शनिक तथ्यों से पूर्ण है ज्वालेन्द्रनाथ-नाथ सम्प्रदाय के नौ नाथों में से एक ज्वालेन्द्रतथा शिक्षित जनता पर अपना गहरा प्रभाव डालती है। नाथ हैं । इनके सम्बन्ध में विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं दे० 'ज्ञानदेव' ।
है । संभवतः जालन्धरनाथ ही ज्वालेन्दु या ज्वालेन्द्रनाथ ज्ञानेश्वरी-भगवद्गीता का मराठी पद्यबद्ध व्याख्यात्मक
हो सकते हैं। अनुवाद । 'ज्ञानेश्वरी' को चौदहवीं शती के मध्य में संत ज्ञानेश्वर ने प्रस्तुत किया। उनकी यह कृति इतनी
व्यञ्जन वर्णों के चवर्ग का चतुर्थ अक्षर । कामधेनुतन्त्र प्रसिद्ध और सुन्दर हई कि आज भी धार्मिक साहित्य में इसके स्वरूप का निम्नांकित वर्णन है : का अनुपम रत्न बनी हुई है। इसमें गीता का अर्थ बहुत
झकारं परमेशानि कुण्डली मोक्षरूपिणी ही हृदयग्राही और प्रभावशाली ढंग से समझाया गया है।
रक्तविद्युल्लताकारं सदा त्रिगुणसंयुतम् ।। दे० 'ज्ञानदेव' तथा 'ज्ञानेश्वर' ।।
पञ्चदेवमयं वर्ण पञ्च प्राणात्मकं सदा । ज्योतिष-छः वेदाङ्गों (शिक्षा, कल्प, निरुक्त, व्याकरण, त्रिबिन्दुसहितं वर्ण त्रिशक्तिसहितं तथा ।। छन्द और ज्योतिष) में से एक वेदाङ्ग ज्योतिष है। ज्योतिष वर्णोद्धारतन्त्र में इसके अनेक नाम बतलाये गये हैं : सम्बन्धी किसी भी ग्रन्थ का प्रसंग संहिताओं अथवा झो झङ्कारी गुहो झञ्झावायुः सत्यः षडुन्नतः । ब्राह्मणों में नहीं आया है। किन्तु वेद के ज्योतिष विज्ञान अजेशो द्राविणी नादः पाशी जिह्वा जलं स्थितिः ॥ सम्बन्धी ग्रन्थों की रचना और अध्ययनपरम्परा स्वतन्त्र विराजेन्द्रो धनुर्हस्तः कर्कशो नादजः कुजः । रूप से चलती रही है।
दीर्घबाहुबलो रूपमाकन्दितः सुचक्षणः ।।
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