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जनमेजय-जम्भ
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उनके आधार पर नानक के जीवन के सम्बन्ध में निश्चय- जो जाबालिपुर चाहमान अभिलेखों में उल्लिखित है, वह पूर्वक कुछ नहीं कहा जा सकता है।
इससे भिन्न (जालोर) है। यहाँ प्राचीन आश्रम के जनमेजय-कुरुवंश का एक राजा, जो ब्राह्मण काल कोई चिह्न नहीं पाये जाते, परन्तु इसके पास का पनागर के अन्त में हुआ था। शतपथ ब्राह्मण में इसको अनेक (पर्णागार = पर्णकुटी) प्राचीन ऋषि-आश्रमों का स्मरण अश्वों का स्वामी कहा गया है, जो थकने पर मीठे पेय से ताजे किये जाते थे। शतपथ ब्राह्मण में उद्धृत गाथा एवं देवताल, जहाँ एक प्राकृतिक सरोवर के चारों ओर अनेक ऐतरेय ब्राह्मण के अनुसार उसकी राजधानी आसन्दीवन्त मन्दिर बने हुए हैं और बैजनत्था जो तान्त्रिकों का प्रसिद्ध में थी। उसके उग्रसेन, भीमसेन एवं श्रुतसेन नामक मन्दिर है । वास्तव में नर्मदा ही यहां की पवित्र नदी है, भाइयों ने अश्वमेध यज्ञ द्वारा अपने को पापमुक्त कर जिसके किनारे कई पवित्र घाट हैं। इनमें ग्वारी घाट, पवित्र बनाया था। उसके अश्वमेध यज्ञ के पुरोहित थे। तिलवारा घाट, लमेटा घाट, रामनगर, भेड़ाघाट आदि इन्द्रोत देवापि शौनक । ऐतरेय ब्राह्मण उसके पुरोहित का प्रसिद्ध हैं । भेड़ाघाट पर नर्मदा और वानगंगा का संगम नाम तुर कावशेय बताता है।
है। इन दोनों के बीच में एक पहाड़ी के ऊपर गौरी___ महाभारत के अनुसार जनमेजय परीक्षित का पुत्र था। शङ्कर और चौसठ योगिनियों के प्रसिद्ध मन्दिर हैं। यहाँ परीक्षित को तक्षक ( नागों) ने मार डाला था। अपने पर कार्तिक पूर्णिमा को विशाल मेला लगता है। पिता की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए जनमेजय ने जमदग्नि-ऋग्वेद में उल्लिखित धार्मिक ऋषियों में जमनागयज्ञ ( नागों के साथ संहारकारी युद्ध ) का आयोजन दग्नि का नाम आता है। कुछ मन्त्रों में इनका नाम मन्त्रकर नागों का विध्वंस किया।
रचयिता के रूप में तथा एक मन्त्र में विश्वामित्र के सहजन्माष्टमीव्रत-भाद्र कृष्ण अष्टमी को श्रीकृष्णजन्मोत्सव योगी के रूप में उल्लिखित है। अथर्ववेद, यजुर्वेद के उपलक्ष्य में आधी रात तक निर्जल व्रत किया जाता एवं ब्राह्मणों में प्रायः इनका उल्लेख है। इनकी है। इस अवसर पर प्रत्येक वैष्णव मन्दिर तथा घरों में उन्नति तथा इनके परिवार की सफलता का कारण चतुश्री कृष्ण की झांकी सजायी जाती है, कीर्तन होता है तथा रात्र यज्ञ बताया गया है। अथर्ववेद में इनका सम्बन्ध अन्य मङ्गलोत्सव होते हैं।
अत्रि, कण्व, असित एवं वीतहव्य से बताया गया है। जपसाहेब-'जपसाहेब' कुछ प्रार्थनाओं का संग्रह ग्रंथ है। यह शनःशेप के प्रस्ताबित यज्ञ के ये अध्वर्यु पुरोहित थे। हिन्दी में है एवं इसकी रचना गुरु गोविन्दसिंह ने की पौराणिक गाथाओं के अनुसार जमदग्नि परशुराम के थी। सिक्खों में इसका पारायण बहुत पुण्यकारी और पिता थे। हैहयों ने इनको अपमानित कर इनको कामधेनु पवित्र माना जाता है।
गाय छीन ली थी। इसका प्रतिशोध परशराम ने लिया जपजी-यह सिक्ख धर्म का प्रसिद्ध नित्यपाठ का ग्रन्थ और उत्तर भारत के क्षत्रिय राजाओं को मिलाकर हैहयों है। इसमें पद्य एवं भजनों का संग्रह है। इन पदों को को परास्त और ध्वस्त किया। गुरु नानक ने भगवान् की स्तुति एवं अपने अनुयायियों जमदग्निकुण्ड (जमैथा)-अयोध्या से १६ मील दूर जमैथा की दैनिक प्रार्थना के लिए रचा था। गुरु अर्जुन ने अपने ग्राम गोंडा जिले में है। यहाँ जमदग्निकुण्ड नामक कुछ भजनों को इसमें जोडा तथा अत्य ग्रन्थ भी तैयार प्राचीन सरोवर है, जिसका जीर्णोद्धार किया गया है। किये । 'जपजी' सिक्खों की पाँच प्रार्थनापुस्तकों में से सरोवर के पास शिवमन्दिर तथा देवीमन्दिर है। प्रथम है तथा प्रातःकालीन प्रार्थना के लिए व्यवहृत
पास में एक धर्मशाला है। यहाँ यमद्वितीया को मेला होता है।
लगता है । कहा जाता है कि यहाँ कभी महर्षि जमदग्नि जबलपुर (जाबालिपुर)-प्राचीन त्रिपुरी नगरी का परवर्ती का आश्रम था।
और उत्तराधिकारी नगर । आजकल यह मध्य प्रदेश का जम्भ-अथर्ववेद में 'जम्भ' का नाम एक रोग अथवा रोग प्रशासकीय, न्यायिक तथा शैक्षणिक केन्द्र है। स्थानीय के राक्षस के रूप में आता है। एक सूक्त में 'जङ्गिद' के परम्परा के अनुसार यहाँ जाबालि ऋषि का आश्रम था। पौधे से इसके अच्छा होने की चर्चा है। अन्यत्र इसे
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