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'संहनु' कहा गया है। वेबर ने इसे बच्चों के दाँत निक लने के समय की वेदना का रोग कहा है। ब्लूमफील्ड एवं व्हिटने ने इसे शरीर के टूटने एवं अकड़ने की बीमारी कहा है।
जब यह शब्द इतिहास, पुराण, महाभारत और रामायण के लिए प्रयुक्त हुआ है । ये ग्रन्थ जय नाम से पुकारे जाते हैं, क्योंकि इन ग्रन्थों के अनुसार आचरण करनेवाला संसार से ऊपर उठ जाता है। दे० तिथितस्त्व, पृष्ठ ७१ पर उद्धृत 'जयति अनेन संसारम् ''''''''' । जयतीर्थ आचार्य मध्य के तिरोधान के ५० वर्ष बाद जयतीर्थ माध्य सम्प्रदाय के नेता हुए संस्थापक के ग्रन्थों के ऊपर रचे गये इनके भाष्य सम्प्रदाय के मुख्य एवं महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ हैं। इनके रथे ग्रन्थ है- 'तत्वप्रकाशिका' एवं 'न्यायसुधा', जो क्रमशः मध्वरचित ब्रह्मसूत्रभाष्य ( वेदान्तसूत्र ) एवं 'अनुव्याख्यान' के भाष्य हैं। जयदासप्तमी - रविवासरोय शुक्ल पक्ष की सप्तमी जया अथवा जयदा नाम से प्रसिद्ध है । इस दिन विभिन्न फल तथा फूलों से सूर्य का पूजन करने का विधान है । इस दिन उपवास, रात्रि को या एक समय अथवा अयाचित भोजन ग्रहण करना चाहिए। जयद्वादशी - पुष्य नक्षत्रयुक्त फाल्गुन शुक्ल द्वादशी को जयद्वादशी कहा जाता है । इस दिन किया गया दान तथा तप करोड़ों गुना पुण्य प्रदान करता है ।
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जयदेव - संस्कृत गीतिकाव्य 'गीतगोविन्द' के रचयिता जयदेव का भक्त कवियों में, विशेष कर राधा के भक्तों में, मुख्य स्थान है । ये तेरहवीं शती वि० में हुए थे और बंगाल ( गौट) के राजा लक्ष्मणसेन के राजकवि थे। बंगाल में इन्हें निम्बार्क मत का अनुयायी माना जाता है । चैतन्य महाप्रभु जयदेव, चण्डीदास एवं विद्यापति के गीतों को बड़े प्रेम से गाते थे। 'राधाकृष्णगीत' नामक बंगला गीतों का संग्रह भी इन्हीं की रचना बताया है।
जयदेव मिश्र - तेरहवीं शती वि० में इनका उदय हुआ था । ये न्यायदर्शन के आचार्य एवं 'तत्त्वालोक' नामक भाष्य के रचयिता थे। यह भाष्य गङ्गेश उपाध्याय रचित 'तत्त्वचिन्तामणि' पर है । जयन्तश्यायदर्शन के एक आचार्य जीवनकाल ९५० वि० के लगभग । इनकी 'न्यायमञ्जरी' न्यायदर्शन का विश्व
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जय जयरथ
कोश है। जैमिनीय उपनिषद्ब्राह्मण में 'जयन्त' नाम अनेक आचार्यों का बताया गया है :
(१) जयन्त पाराशर्य ( पराशर के वंशज ) विपश्चित् के शिष्य थे तथा इनका उल्लेख एक वंशावली में हुआ है ।
(२) जयन्त वारक्य ( वरक के वंशज ) उसी वंश में कुबेर वारस्य के शिष्य थे। उनके पितामह भी उसी वंश में कंस वाक्य के शिष्य कहे गये हैं।
(३) जयन्त वारक्य, सुयज्ञ शाण्डिल्य, सम्भवतः पूर्वोक से अभिन्न थे, किन्तु इनका उल्लेख दूसरी वंशावली में हुआ है।
( ४ ) जयन्त यशस्वी लौहित्य का भी नाम पाया जाता है ।
जयन्तव्रत - इस बिन इन्द्रपुत्र जयन्त का पूजन होता है। इससे व्रती स्वस्थ तथा सुखी रहता है । जयन्तविधि - उत्तरायण में रविवार को सूर्य पूजन करना चाहिए। इसको जयन्तविधि कहते हैं । जयन्ती - ( १ ) महापुरुषों के जन्मदिन के उत्सव को 'जयन्ती' कहते हैं । दे० 'अवतार' |
( २ ) भाद्र कृष्ण अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र होने पर 'जयन्ती' कहते हैं। दुर्गा देवी का नाम भी जयन्ती है। इन्द्र की पुत्री भी जयन्ती कहलाती है । जयन्तीकल्प - मध्वाचार्य रचित एक ग्रन्थ का नाम है । जयपौर्णमासी - इस व्रत में एक वर्ष तक प्रत्येक पूर्णिमा के दिन किसी वस्त्रादि पर अंकित नक्षत्रों सहित चन्द्रमा की पूजा होती है । जयव्रत युद्ध में सफलता प्राप्त करने के लिए किये जाने वाले को 'जयव्रत' कहते हैं। हेमाद्रि व्रतकाण्ड, 'अनुष्ठान २.१५५ में विष्णुधर्मपुराण से एक श्लोक करते उद्घृत हुए कहते हैं कि पाँच गन्धर्वो की पूजा से विजय प्राप्त होती है । जयविधि - दक्षिणायन के रविवार को यह वारव्रत किया जाता है । उपवास, नक्त और इसी दिन एकभक्त करने से करोड़ों गुने पुण्यों की प्राप्ति होती है । जयरथ - काश्मीर शैव मतावलम्बी जयरथ १२वीं शती वि० में हुए थे । इन्होंने अभिनवगुप्त रचित 'तन्त्रालोक' का भाष्य किया है ।
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