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गोधूमवत-गोदपभिरात्र
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यस्यामाख्यायते पुण्या दिशि गोदावरी नदी। के बायें किनारे पर नासिक में नारोशङ्कर मन्दिर प्रसिद्ध बह्वारामा बहजला तापसाचरिता शिवा ॥ है। पञ्चवटी में सीतागुफा यात्रियों के विशेष आकर्षण का ब्रह्मपुराण (७०.१७५ ) में गोदावरी और उसके स्थान है । सीतागुफा के ही पास कालाराम का मन्दिर है, तटवर्ती तीर्थों का विस्तार से वर्णन पाया जाता है। ब्रह्म- जिसकी गणना दक्षिण-पश्चिम भारत के सर्वोत्तम मन्दिरों पुराण गोदावरी को प्रायः गौतमी कहता है :
में की जा सकती है । गोवर्धन और तपोवन के बीच कई विन्ध्यस्य दक्षिणे गङ्गा गौतमी सा निगद्यते ।
पवित्र घाट और कुण्ड हैं। नासिक में सबसे पवित्र स्थान उत्तरे साऽपि विन्ध्यस्य भागीरथ्यभिधीयते ।। (७८.७७)। रामकुण्ड और सबसे प्रसिद्ध धार्मिक पर्व रामनवमी है ।
(तीर्थसार में उद्धृत) बृहस्पति के सिंहस्थ होने के अवसर पर र गोदावरी द्वारा सिञ्चित प्रदेश को अत्यन्त पवित्र और स्नान अत्यन्त पुण्यकारक माना जाता है जिसका बारह धर्म तथा मुक्ति का बीज कहा गया है :
वर्ष में एक बार यहाँ विशाल धार्मिक समारोहपूर्वक मेला धर्मबीजं मुक्तिबीजं दण्डकारण्यमुच्यते ।
लगता है। विशेषाद् गौतमीश्लिष्टो देशः पुण्यतमोऽभवत् ।
गोधूमव्रत-सत्ययुग में नवमी के दिन भगवान् जनार्दन (वही, १६१.७३)
(विष्णु) द्वारा दुर्गा, कुबेर, वरुण तथा वनस्पतियों का कई पुराणों में गोदावरी घाटी के ऊपरी अञ्चल की निर्माण किया गया । वनस्पति भी एक चेतन देवता है, बड़ी प्रशंसा की गयी है :
जिसमें गोधम प्रमुख है। इस व्रत में गेहूँ के आटे के बने सह्यस्यान्तरे चैते तत्र गोदावरी नदी।
पदार्थों से उपर्युक्त पाँच देवताओं का पूजन करना चाहिए। पृथिव्यामपि कृत्स्नायां स प्रदेशो मनोरमः ॥
दे० कृत्य रत्नाकर, २८५-२८६ । यत्र गोवर्धनो नाम मन्दरो गन्धमादनः ॥
गोपथ ब्राह्मण-अथर्ववेद से सम्बन्धित एक ब्राह्मणग्रन्थ । (मत्स्यपुराण ११४.३७-३८) गोदावरी की उत्पत्ति के विषय में पुराणों में कई
इसके विषयों में विविधता है । यह ग्रन्थ 'वैतानसूत्र' पर कथाएँ दी हुई हैं। ब्रह्मपुराण ( ७४.७६ ) के अनुसार
आधारित है । इसमें दो काण्ड हैं, जिनका ११ अध्यायों गौतम ऋषि शिव की जटा से गङ्गा को ब्रह्मगिरि में अपने
में विभाजन हुआ है। पहले काण्ड में पांच तथा दूसरे में आश्रम के पास ले आये थे। कुछ परिवर्तन के साथ यही
छः अध्याय हैं । अध्याय प्रपाठक भी कहलाते हैं। इस कथा नारदपुराण (उत्तरार्द्ध, ७२) तथा वराहपुराण (७१.
ब्राह्मण का मुख्यतः सम्बन्ध ब्रह्मविद्या से है । इसके कुछ ३७-४४) में पायी जाती है। ब्रह्मगिरि में आकर गङ्गा ही
अंश शतपथ और ताण्ड्य ब्राह्मण से लिये गये हैं और कुछ गोदावरी बन गयी। कूर्मपुराण (२.२०.२९-३५) के
स्पष्टतः परवर्ती प्रक्षेप जान पड़ते हैं। अनुसार गोदावरी के तट पर किया हुआ श्राद्ध बहुत हो गोपदत्रिरात्र ( गोष्पदत्रिरात्र )-इस व्रत को भाद्र शुक्ल पुण्यकारक होता है।
तृतीया या चतुर्थी को अथवा कार्तिक मास में प्रारम्भ गोदावरी के किनारे स्थित तीर्थों की संख्या बहुत बड़ी करना चाहिए। तीन दिन तक गौओं तथा लक्ष्मीनारायण है । ब्रह्मपुराण में लगभग एक सौ तीर्थों का वर्णन पाया के पूजन का इसमें विधान है । सूर्योदय के समय व्रत की जाता है, जिनमें त्र्यम्बक, कुशावर्त, जनस्थान, गोवर्धन, स्वीकृति तथा उसी दिन उपवास करना चाहिए। गौ के प्रवरासंगम, निवासपुर, बज्जरासंगम, आदि मुख्य हैं। सींग और पूंछ को दही तथा घी से अभिषिञ्चित करना गोदावरी के किनारे सर्वप्रसिद्ध तीर्थ है नासिक, गोवर्धन, चाहिए । व्रती को चूल्हे में न पकाया हुआ खाद्य ग्रहण पञ्चवटी और जनस्थान । प्राचीन काल में इन तीर्थों में करना चाहिए । तैल तथा लवण वर्जित है। दे० हेमाद्रि २. बहुत बड़ी संख्या में मन्दिर थे । परन्तु मुसलमानी काल में ३२३-३२६ (भविष्योत्तर पुराण १९.१-१६ से)। हेमाद्रि उनमें से अधिकांश ध्वस्त हो गये । फिर मराठों के उत्थान के अनुसार पूजन के समय 'माता रुद्राणाम्', (ऋग्वेद, के पश्चात् पेशवाओं के शासनकाल में अनेक मन्दिरों का अष्टम मण्डल, १०१.१५.१) मन्त्र का उच्चारण करना निर्माण हुआ। पञ्चवटी में रामजीमन्दिर एवं गोदावरी चाहिए।
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