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गोपनवत-गोपी
गोपद्मवत-आश्विन मास की पूर्णिमा, अष्टमी, एकादशी गोपाल भट्ट--चैतन्यसम्प्रदाय के एक आचार्य । ये इस अथवा द्वादशी को व्रत प्रारम्भ कर चार मास पर्यन्त तब सम्प्रदाय के प्रारम्भिक छः गोस्वामियों में से एक थे । तक किया जाय जब तक कृष्ण पक्ष की वही तिथि न आ 'हरिभक्तिविलास' इस सम्प्रदाय का प्रसिद्ध ग्रन्थ है, जाय । इस व्रत को सभी कर सकते हैं, किन्तु विशेष रूप जिसकी रचना सनातन गोस्वामी ने की। परन्तु यह से इस व्रत का विधान नव विवाहितों के लिए है। गौ के गोपाल द्वारा भी रचित माना जाता है। भट्टजी दक्षिण पैर की प्रतिमा अपने गृह में, गोशाला में, विष्णुमन्दिर में, देश के निवासी थे, बाद में चैतन्य महाप्रभु की आज्ञा से शिवालय में अथवा तुलसी के थाले के पास ३३ बार वृन्दावन में आकर आजीवन भगवान् की आराधना एवं अंकित कर पाँच वर्ष तक इस व्रत का अनुष्ठान करना ग्रन्थरचना करते रहे। चाहिए। इसके विष्णु देवता हैं। तदनन्तर उद्यापन का गोपालसहस्रनाम-सभी कृष्णभक्त सम्प्रदायों का धार्मिक विधान है। व्रत के अन्त में गोदान करना चाहिए । दे० स्तोत्र ग्रन्थ । इसमें भगवान कृष्ण के एक सहस्र नामों का स्मृतिकौस्तुभ, ४१८-४२४; व्रतराज, ६०४-६०८। कीर्तन है। गोपाल-(१) भगवान् कृष्ण का एक लोकप्रिय नाम ।
गोपाष्टमी-कार्तिक शुक्ल अष्टमी को इस व्रत का अन्भागवत धर्म में कृष्ण या वासुदेव के ईश्वरीकरण के
ष्ठान होता है । इसी दिन भगवान् कृष्ण गोप बने थे । विषय में विभिन्न विद्वानों के भिन्न-भिन्न मत हैं । राम
इसके देवता भी वे ही हैं। इसमें गौओं के पूजन का कृष्ण गोपाल भण्डारकर वासुदेव एवं कृष्ण में अन्तर
विधान है ( दे० निर्णयामृत, ७७ (कूर्म पुराण से))। बतलाते हैं। उनका कहना है कि वासुदेव प्रारम्भ में सात्वत कुल के प्रमुख व्यक्ति थे, जो छठी। शती ई० पू०
गोपिनी-वीराचार (तान्त्रिक) सम्प्रदाय के पश्वाचारी में या इससे पूर्व हुए थे। उन्होंने अपने कुल के लोगों को
साधकों की पूजनीय नायिकाओं का एक प्रकार गोपिनी एकेश्वरवाद की शिक्षा दी। तदनन्तर उनके अनुयायियों
कहलाता है। कुलार्णवतन्त्र में 'गोपिनी' शब्द की ने उन्हें व्यक्तिगत ईश्वर मानकर उनकी ही आराधना
व्युत्पत्ति बतलायी गयी है : प्रारम्भ की। उन्हें पहले नारायण, फिर विष्णु और अन्त
आत्मानं गोपयेद् या च सर्वदा पशुसङ्कटे । में मथुरा के गोपदेवता 'गोपाल कृष्ण' के रूप में माना सर्ववर्णोद्भवा रम्या गोपिनी सा प्रकीर्तिता ।। गया । इस सम्प्रदाय में प्रसिद्ध दार्शनिक ग्रन्थ भगवद्गीता गोपी-वैष्णव वाङ्मय में भागवतपुराण, हरिवंश एवं की रचना की गयी जो सैद्धान्तिक ग्रन्थ है। दे० उनका ग्रन्थ विष्णपुराण का प्रमख स्थान है। तीनों में कृष्ण के जीवन'वैष्णविज्म, शैविज्म ऐण्ड अदर माइनर रेलिजस सेक्ट्स
काल का वर्णन मिलता है। भागवत में उनके परवर्ती ऑफ इन्डिया।' इस कथन में कल्पना का पुट अधिक है।
जीवन की अपेक्षा बाल्य एवं युवा काल का वर्णन अति 'गोविन्द', 'गोपाल' आदि कृष्ण के पर्याय बहुत पुराने हैं। सुन्दर हआ है । इसमें गोपियों के बीच उनकी क्रीडा का
(२) ब्रजमंडल में बसने वाले गोपों को भी गोपाल कहा वर्णन प्रमुख हो गया है । गोपियाँ अनन्य भक्ति की प्रतीक गया है, जो वैकुंठवासी देवों के अवतार थे :
हैं। गोपीभाव का अर्थ है अनन्यभक्ति। दार्शनिक गोपाला मुनयः सर्वे वैकुण्ठानन्दमूर्तयः ।
दृष्टि से गोपियाँ 'गोपाल-विष्णु' की ह्लादिनी शक्ति की गोपालचम्पू-महात्मा जीव गोस्वामी द्वारा रचित कृष्ण
अनेक रूपों में अभिव्यक्ति हैं, जो उनके साथ नित्य विहार लीलासम्बन्धी काव्यग्रन्थ । गौडीय वैष्णव सम्प्रदाय में यह बहुत लोकप्रिय है।
अथवा रास करती हैं। गोपालतापनीयोपनिषद-इसमें गोपाल कृष्ण के ब्रह्मत्व का
गोपीतत्त्व और गोपीभाव के उद्गम और विकास का निरूपण किया गया है। कृष्णोपासक वैष्णवों को यह इतिहास बहुत लम्बा और मनोरञ्जक है। सर्वप्रथम विश्वस्त एवं प्रामाणिक उपनिषद् है ।
ऋग्वेद के विष्णुसुक्त (१.१५५.५ ) में विष्णु के लिए गोपालनवमी-इस व्रत का अनुष्ठान नवमी के दिन करना 'गोप', 'गोपति', 'गोपा' आदि शब्दों का प्रयोग हुआ है।
चाहिए। समुद्रगामिनी नदी में स्नान करने का इसमें __यह भी कहा गया है कि विष्णुलोक में मधु का उत्स है विधान है। कृष्ण भगवान की पूजा होनी चाहिए। और उसमें भूरिशृंगा गौएँ चरती है। ये शब्द निश्चित
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