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गरुडाग्रज-गर्भाधान
समझ कर पूजन प्रारम्भ कर दिया। इनका सिर, पक्ष लोक, यमयातना, नरक आदि विशेष रूप से वर्णित है । और चोंच तो पक्षी के हैं और शेष शरीर मानव का ।
त्रिवेणीस्तोत्र, पञ्चपर्वमाहात्म्य, विष्णुधर्मोत्तर, वेङ्कटइनका सिर श्वेत, पक्ष लाल और शरीर स्वर्ण वर्ण का
गिरिमाहात्म्य, श्रीरङ्गमाहात्म्य, • सुन्दरपुरमाहात्म्य है । इनकी पत्नी उन्नति अथवा विनायका है। इनके पुत्र
इत्यादि अनेक छोटे ग्रन्थ गरुडपुराण से उद्धृत बताये का नाम सम्पाति है । ऐसा कहा जाता है कि अपनी माता
जाते हैं। विनता को कद्र की अधीनता से मुक्त करने के लिए गरुड ने देवताओं से अमत लेकर अपनी विमाता को देने गरुडस्तम्भ-श्रीरङ्गम् शैली के विष्णुमन्दिरों में सभामण्डप का प्रयत्न किया था। इन्द्र को इसका पता लग गया।
के बाहर और भगवान् की दृष्टि के सम्मुख एक ऊँचा स्तम्भ दोनों में युद्ध हुआ। इन्द्र को अमृत तो मिल गया, किन्तु
बनाया जाता है। नीचे कई कोणों का उसका वप्र और युद्ध में उसका वज्र टट गया । गरुड के अनेक नाम है, नसेनी जैसा शिखर होता है । स्तम्भकाष्ठ पर धातु (प्रायः यथा काश्यपि ( पिता से ), वैनतेय ( माता से ), सुपर्ण, सोने) का पत्र चढ़ा रहता है। इस पर गरुड का आवास गरुत्मान् आदि ।
माना जाता है । हेलियोडोरस नामक यनानी क्षत्रप द्वारा गरुडाग्रज-गरुड के बड़े भाई अरुण । महाभारत (१.३१. ईसापूर्व प्रथम शती में स्थापित बेसनगर का गरुडस्तम्भ
२४-३४) में अरुण के गरुडाग्रज होने की कथा दी हई है। इतिहास में बहुत विख्यात है। गरुडोपनिषद्-एक अथर्ववेदीय उपनिषद् । इसमें विष गर्ग-एक ऋषि का नाम, जिनका उल्लेख किसी भी संहिता निवारण की धार्मिक विधि है।
में नहीं पाया जाता किन्तु उनके वंशजों 'गर्गाः प्रावरेयाः' गरुडपञ्चशती-वेदान्ताचार्य वेङ्कटनाथ द्वारा तिरुपा- का काठक संहिता में उल्लेख है। कात्यायनसूत्र के भाष्यहिन्द्रपुर में रचित यह ग्रन्थ तमिल लिपि में लिखा
कार के रूप में गर्ग का नाम उल्लेखनीय है । ज्योतिष गया है। इसमें भगवान् विष्णु के मुख्य पार्षद या वाहन
साहित्य में इनका महत्त्वपूर्ण स्थान है । आगे चलकर गोत्र गरुड की स्तुति की गयी है।
ऋषियों में गर्ग की गणना होने लगी। गरुडध्वज-विष्णु की ध्वजा में गरुड का चिह्न या आवास यादवों के पुरोहित रूप में भी गर्गाचार्य प्रसिद्ध है । रहता है, इससे वे गरुडध्वज कहलाते हैं।
गर्भ-जीव के सञ्चित कर्म के फलदाता ईश्वर के आदेशानुगरुडपुराण-गरुड और विष्णु का संवादरूप पुराण ग्रन्थ ।
सार प्रकृति द्वारा माता के जठरगह्वर में पुरुष के शुक्रयोग नारदपुराण के पूर्वांश के १०८वें अध्याय में गरुडपुराण
से गर्भ स्थापित किया जाता है । गरुडपुराण (अ० २२९) की विषयसूची दी गयी है। मत्स्यपुराण के अनुसार
में गर्भस्थिति की प्रक्रिया लिखी हुई है। गरुडपुराण में अठारह हजार श्लोक हैं और रेवामाहात्म्य, गर्भाधान-यह स्मार्त गृह्य संस्कारों में से प्रथम संस्कार श्रीमद्भागवत, नारदपुराण तथा ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार है । धार्मिक क्रिया के साथ पुरुष धर्मपत्नी के जठरगह्वर यह संख्या उन्नीस हजार है। जो गरुडपुराण हिन्दी में वीर्य स्थापित करता है जो गर्भाधान कहा जाता है। विश्वकोशकार श्री नगेन्द्रनाथ वसु को उपलब्ध हआ शौनक (वीरमित्रोदय, संस्कारप्रकाश में उद्धृत) ने इसकी था, उसकी उन्होंने (पूर्वखण्ड के दो सौ तैंतालीस अध्यायों परिभाषा इस प्रकार दी है : । की और उत्तरखण्ड की पैंतालीस अध्यायों की सूची दी निषिक्तो यत्प्रयोगेण गर्भः संधार्यते स्त्रिया । है । यह सूची नारदीय पुराण के लक्षणों से मिलती है तद्गर्भालम्भनं नाम कर्म प्रोक्तं मनीषिभिः ।। परन्तु श्लोकसंख्या में न्यूनता है।
गर्भाधान के लिए उपयुक्त समय पत्नी के ऋतुस्नान यह पुराण हिन्दुओं में बहुत लोकप्रिय है, विशेषकर की चौथी रात्रि से लेकर सोलहवीं रात्रि तक है (मनुस्मृति, अन्त्येष्टि के सम्बन्ध में इसके एक भाग को पुण्यप्रद समझा ३.२, याज्ञवल्क्यस्मृति, १.७९)। उत्तरोत्तर रात्रियाँ रजजाता है । इस पुराण भाग का श्रवण श्राद्धकर्म का एक अङ्ग स्राव से दूर होने के कारण अधिक पवित्र मानी जाती माना जाता है । इसमें प्रेतकर्म, प्रेतयोनि, प्रेतथाद्ध, यम- हैं। गर्भाधान रात्रि में होना चाहिए, वह दिन में निषिद्ध
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