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कुमारी-कुम्भपर्व
कुमारिल का आधुनिक हिन्दुत्व की स्थापना में बहुत त्रयोदशे महालक्ष्मीद्विसप्ता पीठनायिका । बड़ा हाथ है। उनकी प्रणाली वेदों एवं ब्राह्मणों पर क्षेत्रज्ञा पञ्चदशभिः षोडशे चान्नदा मता ॥ आधृत है । वे उसके बाहर के सभी पक्षों का निराकरण
एवं क्रमेण सम्पूज्या यावत् पुष्पं न जायते । करते हैं।
पुष्पितापि च सम्पूज्या तत्पुष्पादानकर्मणि ॥ कर्ममीमांसा में प्रभाकर एवं कुमारिल ने ही प्रथम बार कुमारीपूजन की विधि निम्नलिखित प्रकार से बतायी मुक्ति का वर्णन किया है। उनका कथन है कि मुक्तिलाभ गयी है : धर्म एवं अधर्म दोनों के समाप्त हो जाने पर ही हो अथान्यत्साधनं वक्ष्ये महाचीनक्रमोद्भवम् । सकता है और जो मुक्ति चाहता है उसे केवल आवश्यक येनानुष्ठितमात्रेण शीघ्र देवी प्रसीदति ।। कर्तव्यों का पालन करना चाहिए।
अष्टम्याञ्च चतुर्दश्यां कुह्वां वा रविसंक्रमे । कुमारी-(१) शिवपत्नी पार्वती के अनेकों नाम एवं गुण कुमारीपूजनं कुर्यात् यथा विभवमात्मनः ।। शिव के समान ही हैं। उनका एक नाम 'कुमारी' भी
वस्त्रालङ्करणाद्यैश्च भक्ष्यभोज्यैः सुविस्तरैः । है । तैत्तिरीय आरण्यक (१०.१.७) में उन्हें कन्या कुमारी
पञ्चतत्त्वादिभिः सम्यग् देवीबुद्धया सुसाधकः ॥ कहा गया है । स्कन्दपुराण के कुमारीखण्ड में कुमारी का कुमा
कुमारीतन्त्र-'आगमतत्त्वविलास' की तन्त्रसूची में 'कुमारीचरित्र और माहात्म्य विस्तार से वणित है। भारत का
तन्त्र' का छठा क्रमिक स्थान है। इसमें कुमारीपूजन का दक्षिणान्त अन्तरीप (कुमारी अन्तरीप ) उन्हीं के नाम
विस्तृत वर्णन पाया जाता है।। से सम्बन्धित है।
कुमारीपूजा-नवरात्र में इस व्रत का अनुष्ठान होता है । (२) 'कुमारी' नाम 'कुमार' का युग्म (जोड़ा) या
दे० समयमयूख, २२ । विशेष विवरण के लिए दे०
'कुमारी'। समकोटिक भी है। यह ऐसी उग्र कुमारिका ग्रहों का सूचक है, जो शिशुओं का भक्षण करती हैं ।
कुम्भपर्व-बारह-बारह वर्ष के अन्तर से चार मुख्य तीर्थों
में लगनेवाला स्नान-दान का ग्रहयोग। इसके चार स्थल (३) स्मृतियों में द्वादश वर्षीया कन्या का नाम भी
प्रयाग, हरिद्वार, नासिक-पंचवटी और अवन्तिका (उज्जैन) कुमारी कहा गया है :
हैं। (१) जब सूर्य तथा चन्द्र मकर राशि पर हों, गुरु अष्टवर्षा भवेद् गौरी दशवर्षा च रोहिणी ।
वृषभ राशि पर हो, अमावस्या हो; ये सब योग जुटने पर सम्प्राप्ते द्वादशे वर्षे कूमारीत्यभिधीयते ।।
प्रयाग में कुम्भयोग पड़ता है। इस अवसर पर त्रिवेणी [अष्ट वर्ष की कन्या गौरी और दस वर्ष की रोहिणी
में स्नान करना सहस्रों अश्वमेध यज्ञों, सैकड़ों वाजपेय होती है। बारह वर्ष प्राप्त होने पर वह कुमारी
यज्ञों तथा एक लाख बार पृथ्वी की प्रदक्षिणा करने से कहलाती है। ]
भी अधिक पुण्य प्रदान करता है। कुम्भ के इस अवसर __'अन्नदाकल्प' आदि आगम ग्रन्थों में कुमारीपूजन पर तीर्थयात्रियों को मुख्य दो लाभ होते हैं; गंगास्नान के प्रसंग में कुमारी अजातपुष्पा ( जिसको रजोधर्म न तथा सन्तसमागम । होता हो ) कन्या को कहा गया है। सोलह वर्ष पर्यन्त (२) जिस समय गुरु कुम्भ राशि पर और सूर्य मेष राशि वह कुमारी रह सकती है। वयभेद से उसके कई नाम पर हो तब हरिद्वार में कुम्भपर्व होता है । (३) जिस समय बतलाये गये हैं :
गुरु सिंह राशि पर स्थित हो तथा सूर्य एवं चन्द्र कर्क एकवर्षा भवेत् सन्ध्या द्विवर्षा च सरस्वती ।
राशि पर हों तब नासिक में कुम्भ होता है। (४) जिस त्रिवर्षा तु विधामूर्तिश्चतुर्वर्षा तु कालिका ॥ समय सूर्य तुला राशि पर स्थित हो और गुरु वृश्चिक राशि सुभगा पञ्चवर्षा च षड्वर्षा च उमा भवेत् । पर हो तब उज्जैन में कुम्भपर्व मनाया जाता है। सप्तभिर्मालिनी साक्षादष्टवर्षा च कूब्जिका ।।
___ कुम्भ की उत्पत्ति के सम्बन्ध में पुराणों में मनोरंजक नवभिप्लसकर्षा दशभिश्चापराजिता।
कथाएँ है । इनका सम्बन्ध समुद्रमन्थन से उत्पन्न अमृतघट एकादशे तु रुद्राणी द्वादशाब्दे तु भैरवी ।।
से है। इस अमृतघट को असुर गण उठा ले गये थे,
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