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खट्वाङ्ग-खाण्डवबन
अर्द्धमण्डप, अन्तराल एवं महामण्डप पाये जाते हैं । गर्भ- भरे रहते हैं और लकड़ी दृढ होती है । इसमें से कत्था भी गृह के चतुर्दिक प्रदक्षिणापथ भी है। वैष्णव तथा शव निकलता है। मन्दिरों की बाहरी दीवारों पर मिथुन मूर्तियों का अङ्कन खण्डनकुठार- अद्वैत वेदान्तमत के उद्भट लेखक वाचस्पति प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, जो शिव-शक्ति के ऐक्य मिश्र द्वारा रचित एक ग्रन्थ । वेदान्तबाह्य सिद्धान्तों की अथवा शिव-शक्ति के योग से सृष्टि की उत्पत्ति का इसमें तीव्र आलोचना की गयी है। प्रतीक है। यहाँ पर चौंसठ योगिनियों का एक मन्दिर खण्डनखण्डखाद्य-वेदान्त का एक प्रसिद्ध ग्रन्थ । पण्डितभी था जो अब भग्नावस्था में है।
रत्न श्रीहर्ष कृत 'खण्डनखण्डखाद्य' का अन्य नाम अध्यात्म उपदेश सम्बन्धी संस्कृत नाटक 'प्रबोधचन्द्रो
'अनिर्वचनीयतासर्वस्व' है। शङ्कराचार्य का मायावाद दय' की रचना कृष्णमिश्र नामक एक ज्ञानी पंडित द्वारा
अनिर्वचनीय ख्याति के ऊपर ही अवलम्बित है । उनके यहीं पर १०६५ ई० में सम्पन्न हई, जो कीर्तिवर्मा नामक
सिद्धान्तानुसार कार्य और कारण भिन्न, अभिन्न अथवा चन्देल राजा की सभा में अभिनीत हुआ था। इस नाटक
भिन्नाभिन्न भी नहीं हैं, अपितु अनिर्वचनीय हैं। इस से तत्कालीन धार्मिक एवं दार्शनिक सम्प्रदायों पर प्रकाश अनिर्वचनीयता के आधार पर ही कारण सत् है और पड़ता है । दे० 'प्रबोधचन्द्रोदय' तथा 'कृष्णमिश्र' ।
कार्य मायामात्र है। श्रीहर्ष के खण्डनखण्डखाद्य में सब
प्रकार के विपक्षों का बड़ी तीक्ष्णता के साथ खण्डन किया खट्वाङ्ग-शिव का विशेष शस्त्र । इसकी आकृति खट्वा
गया है तथा उनके सिद्धान्त का ही नहीं अपितु जिनके (चारपाई) के अङ्ग (पाय) के समान होती थी। यह दुर्लध्य और अमोघ होता है । महिम्नस्तोत्र में
द्वारा वे सिद्ध होते हैं उन प्रत्यक्षादि प्रमाणों का भी खण्डन
कर अद्वितीय, अप्रमेय एवं अखण्ड वस्तु की स्थापना की वर्णन है :
गयी है। महोक्षः खट्वाङ्गपरशुरजिनं भस्म फणिनः
__ग्रन्थ का शब्दार्थ है : 'खण्डनरूपी खाँड़ की मिठाई । कपालं चेतीयत्तव वरद तन्त्रोपकरणम् ।
खाको साधु-दादूपन्थी साधुओं की पाँच श्रेणियाँ हैं। [बूढ़ा बैल, खाट का पाया, फरसा, चमड़ा, राख, साँप
उनमें खाकी साधु भी एक हैं। ये भस्म लपेटे रहते हैं और खोपड़ी-वरदाता प्रभु की यही साधनसामग्री है।]
और भाँति भाँति की तपस्या करते हैं। भस्म अथवा एक इक्ष्वाकुवंशज राजर्षि, जो मृत्यु सन्निकट जानकर
खाक शरीर पर लपेटने के कारण ही ये खाकी कहकेवल घड़ी भर ध्यान करते हुए मोक्ष पा गये ।
लाते हैं। खड्ङ्गधाराव्रत-दे० असिधाराव्रत, विष्णुधर्मोत्तर पुराण, दादूपन्थियों के अतिरिक्त शैव-वैष्णवों में भी ऐसे ३.२१८.२३-२५ ।
संन्यासी होते हैं। खङ्गसप्तमी-वैशाख शुक्ल सप्तमी को गङ्गासप्तमी कहते खादिरगृह्यसूत्र-यह गृह्यसूत्र शुक्लयजुर्वेद का है । ओल्डेनहैं। इस व्रत में गंगापूजन होता है। कहा जाता है कि वर्ग द्वारा इसका अंग्रेजी अनुवाद 'सेक्रेड बुक्स ऑफ दि जह न ऋषि क्रोध में आकर गङ्गाजी को पी गये थे तथा ईस्ट, सिरीज में प्रस्तुत किया गया है । इसमें गृह्य संस्कारों इसी दिन उन्होंने अपने दाहिने कान से गङ्गाजी को और ऋतुयज्ञों का वर्णन पाया जाता है । बाहर निकाला था।
खाण्डकीय-यह कृष्ण यजुर्वेद का एक सम्प्रदाय है । खण्डदेव-प्रसिद्ध मीमांसक विद्वान् । पूर्वमीमांसा के दार्श- खाण्डववन-अग्नि के द्वारा खाण्डववन जलाने की कथा निक ग्रन्थों में खण्डदेव ( मृत्युकाल १६६५ ई०) द्वारा महाभारत की मुख्य कथा से सम्बन्धित है । राजा श्वेतकि रचित 'भट्टदीपिका' का बहुत सम्मानित स्थान है। इसकी के द्वादश वर्षीय यज्ञ में अग्नि ने घृत का बड़ी मात्रा में प्रसिद्धि का मुख्य कारण इसकी तार्किकता है । यह ग्रन्थ भोजन किया और इससे उनको अजीर्ण रोग हो गया। कुमारिल भट्ट के सिद्धान्तों का पोषक है।
पश्चात् दूसरे यजमानों को यज्ञवस्तुओं के भक्षण की खदिर-यज्ञोपयोगी पवित्र वृक्ष । इसका यज्ञयप (यज्ञस्तम्भ) सामर्थ्य उनको न रही। परिणामस्वरूप अग्निदेव बहुत बनता है । इसकी शाखाओं में छोटे-छोटे चने जैसे काँटे क्षीण हो गये तथा इस सम्बन्ध में उन्होंने ब्रह्मा से पार्थना
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