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कैवल्योपनिषद्-कोणार्क
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कैवल्योपनिषद् -एक शैव उपनिषद, जो अथर्वशिरस् उप- कोटिरुद्रसंहिता-शिवपुराण के सात खण्डों में से चौथे खण्ड निषद् की ही समकालीन है।
का नाम । इसमें कुल ४३ अध्याय हैं । दे० 'शिवपुराण ।' कोकिलावत-मुख्यतः महिलाओं के लिए इस व्रत का कोटिहोम-मत्स्यपुराण (९३.५-६) के अनुसार नवग्रहहोम विधान है । आश्विन पूर्णिमा की सन्ध्या को इसका संकल्प उस समय अयुतहोम कहलाता है जब आहुतियों की संख्या करना चाहिए, आषाढ़ी पूर्णिमा के पश्चात् एक मास तक दस सहस्र हो। इसी क्रम से बढ़ते हुए एक अन्य प्रकार सुवर्ण अथवा तिलों की कोकिला के रूप में गौरी बनाकर का होम लक्षहोम है तथा तीसरा कोटिहोम है। वस्तुतः उसका पूजन करना चाहिए । एक मास तक नक्त भोजन नवग्रहमख अशुभ शकुनों तथा क्रूर ग्रहों के प्रशमनार्थ का विधान है। मासान्त में एक ताम्रपात्र में रत्नों की होता है । मत्स्यपुराण (९३) में उपर्युक्त तीनों होमों का आँखें, चाँदी की चोंच तथा पैर बनवाकर कोकिला का वर्णन है । बाणभट्ट के हर्षचरित के अनुसार जिस समय दान करना चाहिए। ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव प्रभाकरवर्द्धन मृत्युशय्या पर था उस समय कोटिहोम का ने दक्ष के यज्ञ का विध्वंस करने के बाद गौरी को आयोजन किया गया था। कोकिला हो जाने का शाप दिया था। सूवर्ण की एक कोटीश्वरीव्रत-भाद्र शुक्ल तृतीया को इस व्रत का अनुकोकिला बनाकर, जिसकी आँखें मोतियों की हों तथा ष्ठान होता है। चार वर्ष तक इसका आचरण करना पैर चाँदी के हों, षोडशोपचारपूर्वक पूजन करना चाहिए। इस दिन उपवास का विधान है। एक लाख चाहिए । सुख, समृद्धि के लिए यह व्रत वांछनीय है। अक्षत अथवा तिल दूध में डालने चाहिए । तदनन्तर देवी तमिलनाडु के पंचाङ्गों में इसका अनुष्ठान ज्येष्ठ १४ पार्वती की एक स्थूल प्रतिमा बनाकर उसका पूजन करना ( मिथुन ) को बतलाया गया है।
चाहिए । इस पूजन से न तो दारिद्रय रहेगा न कोई अन्य कोजागर ( कौमुदीमहोत्सन)-आश्विन पूर्णिमा के दिन विपत्ति, आठ सन्तान और सुन्दर पति की प्राप्ति होगी। इसका अनुष्ठान होता है । इसमें लक्ष्मी तथा ऐरावतारूढ़
इसका नाम लक्षेश्वरी भी है। इन्द्र का पूजन रात्रि में करना चाहिए । घी अथवा तिल
कोटितीर्थ या कोटीश्वर या शिवकोटि शंकरजी की के तेल के बहुसंख्यक दीपक मुख्य सड़कों पर, मन्दिरों में,
एक करोड़ मूर्तियों का भी नाम है । ऐसा एक तीर्थ प्रयागबागों में तथा घरों में प्रज्वलित करने चाहिए। दूसरे
राज में गंगाजी के बड़े रेल पुल के पास है। यहाँ लंकादिन प्रातःकाल इन्द्र की पूजा होनी चाहिए । ब्राह्मणों
विजय कर लौटते समय रामचन्द्रजी एक करोड़ शिवको अत्यन्त स्वादिष्ठ भोजन कराना चाहिए। लिङ्गपुराण
मूर्तियों का एकतन्त्र में पूजन कर रावणवध के पाप से के अनुसार दयालुता की मूर्ति लक्ष्मी मध्य रात्रि के समय
मुक्त हुए थे। परिभ्रमण करती हुई कहती है : “कौन जाग रहा है ?"
कोटेश्वर-हिमालय में स्थित एक तीर्थस्थान । देवप्रयाग से मनुष्यों को नारियल में भरा हुआ पानी ( रस ) पीना
खर्साडा १० मील और यहाँ से कोटेश्वर ४ मील दूर है । चाहिए तथा पासों से खेलना चाहिए । 'को जागति' न यहाँ कोटेश्वर महादेव का मन्दिर है। दो शब्दों में 'कोजागर' व्रत की ध्वनि विद्यमान है। इसे
कोणार्क-भुवनेश्वर से लगभग ४२ मील दक्षिणपूर्व उड़ीसा
काणाक-भुवनश्वर स 'कौमदीमहोत्सव' भी कहा जाता है। सम्भवतः कोजाग का यह एक सौर तीर्थ है । स्थानीय जनश्रुति के अनुसार शब्द 'कौमुदीजागर' का ही संकेतात्मक तथा संक्षिप्त रूप
एक बार भगवान् श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब को कुष्ठ रोग हो है। कौमुदीमहोत्सव के लिए दे० कृत्यकल्पतरु ( राजधर्म),
गया था। भगवान् की आज्ञा से इस स्थान पर कोणादित्य १० १८२-१८३; राजनीतिप्रकाश ( वीरमित्रोदय ), १०
की आराधना करने से उनका कुष्ठ दूर हुआ । पश्चात् ४१९-४२१ ।
साम्ब ने यहाँ सूर्यमूर्ति स्थापित की थी (यह मूर्ति अब पुरी कोटिमाहेश्वरी-हिमालय स्थित एक तीर्थस्थान । यह में है)। यह उपाख्यान सूर्यपूजा सम्बन्धी पौराणिक कथा स्थान कालीमठ से दो मील दूर है। यहाँ कोटिमाहेश्वरी ___का रूपान्तर है। वास्तव में मूल सूर्यमन्दिर पंजाब देवी का मन्दिर है । यात्री यहाँ पिततर्पण तथा पिण्डदान में चन्द्रभागा (चेनाव) और सिन्धुनद के संगम पर मुलकरते हैं।
तान - मूलस्थान में था। तुर्कों द्वारा उसके नष्ट होने पर
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