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केशवप्रयाग-केशवाचार्य
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दो और काम उपाचार्य करने वाले थे। देवेन्द्रनाथ ने साहित्य, दान, स्त्री विकास, शिक्षा और आत्मनिग्रह । केशव को आचार्य पद प्रदान किया।
अनेक कार्य और संस्थायें इस समय प्रारम्भ की गई, यथा इस समय केशवचन्द्र ने हिन्दु समाज का विरोध
नार्मल स्कूल पवार गर्ल्स, विक्टोरिया इन्स्टीट्यूशन सहन करते हुए अपनी स्त्री को समाजसेवा में लगाया।
फ्वार वीमेन, इन्डस्ट्रियल स्कूल फार ब्वायेज एवं भारत इससे बड़ा लाभ हआ। ब्राह्मों ने अपनी स्त्रियों को
आश्रम, जिसमें स्त्रियों एवं शिशुओं को शिक्षा दी अधिक स्वाधीनता प्रदान करना आरम्भ किया जो
जाती थी। आगे चलकर स्त्रीस्वाधीनता आन्दोलन में बहुत ही सहायक हुआ।
इस समय तक केशव अपने को ईश्वर के आदेश लोगों दो वर्ष बाद केशव ने बंबई एवं मद्रास में भी 'ब्रह्म
तक पहुँचानेवाला समझने लगे तथा दूसरों को उन्होंने समाज' की स्थापना करायी। जब केशव यात्रा पर थे
आदेश देना आरम्भ किया। अतएव समाज के अन्दर तभी देवेन्द्रनाथ को कुछ प्राचीन विचारों ने प्रभावित
केशव का विरोध आरम्भ हो गया। फिर एक बार केशव किया तथा उन्होंने केशव के स्थान पर उपाचार्यों को
के जीवन में उदासी आयी, किन्तु ईश्वराराधना में लीन कार्य करने की अनुमति दे दी। केशव के दल ने इसका
हो इन्होंने सब भुला दिया। केशव ने मृत्यु के पहले विरोध किया और इस प्रकार दो समाजों की स्थापना
फिर एक वार पश्चिम की यात्रा की। इनके अन्तिम हुई। देवेन्द्रनाथ का समाज 'आदिसमाज' तथा केशव
समय तक १७३ ब्रह्मसमाज की शाखाएँ हो गयी थीं, १५०० का 'नव ब्रह्मसमाज' कहलाया ।
पक्के सदस्य तथा ५०० अनुयायी थे । इनके द्वारा संचायहाँ से समाज का तीसरा चरण या युग आरम्भ
लित आन्दोलन ने बंगाल में सुधार और नवजीवन की होता है। देवेन्द्रनाथ का साथ छूट जाने पर केशवचन्द्र ने
एक लहर सी फैला दी। ईश्वर पर भरोसा रखा तथा उन्हें नयी प्रेरणा व स्फूर्ति केशवप्रयाग-माणा ग्राम के पास अलकनन्दा में जहाँ प्राप्त हुई। उन्होंने अनेक प्रचारक एवं भक्त प्राप्त किये और सरस्वती की धारा मिलती है उस स्थान को केशवप्रार्थना में इनको विशेष शान्ति मिली। घर पर ही प्रयाग कहते हैं । उत्तराखण्ड के तीर्थों में यह प्रसिद्ध है । सदस्यों की भीड़ जमती तथा धार्मिक सेवाओं एवं केशव भट्ट-निम्बार्काचार्य की परंपरा के उत्तरार्द्ध में प्रार्थना में लोग खूब हाथ बटाते। वैष्णव धर्म से, उनके दो शिष्य बहुत प्रसिद्ध हुए; एक केशव भट्ट जो इनका पारिवारिक धर्म था, केशव ने इस समय तथा दूसरे हरिव्यास । इन्हीं दो शिष्यों से दो श्रेणियाँ बहुत कुछ लिया। भक्ति, जो हिंदू धर्म में ईश्वरप्रेम एवं निकली हैं। गृहस्थ और संन्यासी जो आपसी भेदों के उसमें विश्वास का प्रतीक है, इस आन्दोलन का प्रधान होते हुए भी बड़े आदत थे । दे० 'केशव काश्मीरी' । अङ्ग बन गयी। २२ अगस्त १८६९ को मछुआ बाजार केशव मिश्र-न्यायवैशेषिक दर्शन के आचार्य । इनका (कलकत्ता) में केशवचन्द्र ने एक भवन बनवाया जिसे उदयकाल १३वीं शती है । इन्होंने तर्कभाषा नामक ग्रन्थ मन्दिर की संज्ञा दी गयी। यहाँ अनेकों प्रतिष्ठित लोग की रचना की है। इसका अंग्रेजी अनुवाद महामहोपाध्याय आने लगे तथा समाज के सदस्य हुए। मन्दिर के निर्माण पं० गंगानाथ झा ने किया । के कुछ ही दिन बाद इन्होंने बिलायत की यात्रा की। केशवस्वामी गोपाल-इन्होंने बौधायन श्रौतसूत्र पर भाष्य वहाँ इनका बड़ा सम्मान हुआ । इंगलैण्ड में बहुसंख्यक लिखा है। लोगों के बीच केशव ने भाषण किया। ब्रिटेन की महा- केशवाचार्य-निम्बार्काचार्य के शिष्य श्रीनिवास द्वारा कृत रानी ने भी इनसे भेंट की। ब्रिटिश क्रिश्चियन होम ने ब्रह्मसूत्रभाष्य के व्याख्याता। ये पन्द्रहवीं शती में हुए थे इन्हें सर्वाधिक प्रभावित किया।
और चैतन्य महाप्रभु के समय में जीवित थे । निम्बार्काकलकत्ता लौटकर केशव ने अनेक प्रकार के सुधार चार्य के 'वेदान्तपरिजातसौरभ' का भाष्य 'वेदान्तप्रारम्भ किये। एक नया समाज 'इण्डियन रिफार्म कौस्तुभ' नाम से श्रीनिवासाचार्य ने लिखा और 'वेदान्तएसोसिएशन' बनाया, जिसके पाँच विभाग थे-सस्ता कौस्तुभ' की टीका केशवाचार्य ने लिखी। निम्बार्काचार्य
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