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कूर्मद्वादशीव्रत-कृकलास
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कूर्मद्वादशीव्रत-भविष्य पुराण के अनुसार यह पौष शुक्ल कूर्मावतार-अवतारवाद का निरूपण पुराणों का प्रधान द्वादशी का व्रत है। इस व्रत में घृत भरे ताँबे के पात्र पर अङ्ग है । शैव पुराणों में शिव के अवतार तथा वैष्णव मन्दर पर्वत सहित कच्छप की मूर्ति रखकर पूजा की पुराणों में विष्णु के अगणित अवतारों का वर्णन पाया जाती है।
जाता है । इसी प्रकार अन्य पुराणों में अन्य देवों के अवकूर्मपुराण-साधारणतया यह शैवपुराण है तथा इसमें तारों की चर्चा है। ये वर्णन निराधार नहीं कहे जा 'लकुलीश-पाशुपतसंहिता' की कुछ सामग्री उद्धृत है, जो सकते, क्योंकि ब्राह्मण तथा उपनिषदों में भी विविध अववायुपुराण में भी दृष्टिगोचर होती है। यह कुछ आगमों तारों की चर्चा है। शतपथ ब्राह्मण (१.४.३.५) में कूर्माएवं तन्त्रों की शिक्षा को व्यक्त करता है। वायुपुराण से वतार का वर्णन है । अधिकांश वैदिक ग्रन्थों के मत से कुछ न्यूनाधिक यह शिव के अट्ठाईस अवतारों तथा उनके कूर्म, वराह आदि अवतारों की जो कथा कही गयी है, शिष्यों का वर्णन भी प्रस्तुत करता है । इसमें कुछ शाक्त वह प्रजापति (ब्रह्मा) के अवतार की प्रकारान्तर में कथा तन्त्रों के भी उद्धरण हैं तथा शक्तिपूजा पर बल दिया है । वैष्णव पुराण इन्हीं अवतारों को विष्णु का अवतार गया है । यह अब भी निश्चित रूप से विदित नहीं है कि
बतलाते हैं। किस शैव सम्प्रदाय के वर्णन इसमें प्राप्त है (केवल अव- कूष्माण्डदशमी-आश्विन शुक्ल दशमी। इस दिन शिव. तारों को छोड़कर, जो लकुलीश मत से सम्बन्धित है)।
दशरथ तथा लक्ष्मी का कूष्माण्ड (कुम्हड़ा) के फूलों से कर्मपुराण के पूर्वार्द्ध में तिरपन अध्याय तथा उत्तरार्ध पूजन किया जाता है। चन्द्रमा को अर्घ्य दान करते हैं। में छियालीस अध्याय है। नारदपुराण आदि प्रायः सभी दे० गदाधरपद्धति, कालसार भाग, पृ० १२५ । पुराणों में जहाँ कूर्मपुराण की चर्चा आयी है, बराबर कूष्माण्डी-अम्बिका अथवा दुर्गा का एक पर्याय । कुष्माण्ड सत्रह हजार श्लोक बताये गये है। परन्तु प्रचलित प्रतियों की बलि से प्रसन्न होने के कारण दुर्गा कूष्माण्डी कही जाती में केवल छः हजार के लगभग ही श्लोक पाये जाते हैं। हैं । पवित्र मन्त्रों का नाम, जैसा वसिष्ठस्मृति में कथन है : नारदपुराण में जो विषयसूची दी हुई है उसकी आधी
सर्ववेदपवित्राणि वक्ष्याम्यहमतः परम् । से कम ही सूची छपी पुस्तकों में पायी जाती है। ऐसा
येषां जपैश्च होमैश्च प्रयन्ते नात्र संशयः ।। जान पड़ता है कि कूर्मपुराण के कुछ अंश तन्त्र ग्रन्थों में अघमर्षणं देवकृतः शुद्धवत्यस्तरत् समाः । मिला दिये गये हैं, क्योंकि नारदपुराणोक्त सूची के छूटे कूष्माण्डयः पावमान्यश्च दुर्गासावित्र्यथैव च ।। हुए विषय डामर, यामल आदि तन्त्रों में पाये जाते हैं । कूष्माण्डी एक लता भी है, जिसके फलों की बलि देने ___ मूलतः इस पुराण का रूप विशाल था। इसके उपलब्ध ।
से पाप दूर होते हैं । याज्ञवल्क्य के अनुसार, अंश से पता लगता है कि इसमें चार संहिताएं थीं-(१)
त्रिरात्रोपोषितो भूत्वा कूष्माण्डीभिघृतं शुचि । ब्राह्मी, (२) भागवती, (३) सौरी और (४) वैष्णवी । सुरापः स्वर्णहारी च रुद्रजापी जले स्थितः ।। इस समय केवल 'ब्राह्मी संहिता' ही मिलती है। इसी का [ तीन दिन उपवास करने के बाद कुष्माण्डी के फलों नाम कर्मपराण है । मत्स्य और भागवत पुराणों के अनुसार के साथ घृत का सेवन करने से और जल में बैठकर रुद्रमूल कूर्मपुराण में १८००० श्लोक थे, परन्तु वर्तमान कूर्म
जप करने से मद्यपान एवं सुवर्णचोरी का पाप कट पुराण में केवल ६००० श्लोक पाये जाते हैं। इसके कर्म नाम जाता है।] पड़ने का कारण यह है कि भगवान् विष्णु ने कूर्मावतार । कुकलास-कृकलास (गिरगिट) का उल्लेख यजुर्वेद (तैत्तिधारण कर इस पुराण का उपदेश इन्द्रद्यम्न नामक राजारीय संहिता, ५. ५. १९. १; मैत्रायणो सं०, ३. १४. २१ को दिया था। इस पुराण में शिव ही प्रधान आराध्य तथा वाजसनेयी सं०, २४. ४०) में अश्वमेध यज्ञ की बलिदेवता के रूप में वर्णित हैं। इसमें यह मत प्रतिपादित पशुतालिका में हुआ है । 'कृकलासी' का भी ब्राह्मणों में किया गया है कि त्रिमूर्तियाँ-ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव एक उल्लेख है । 'त्रिकाण्डशेष' के अनुसार यह सूर्य का प्रतीक ही मूल सत्ता ब्रह्म के विभिन्न रूप है। शिव के साथ ही है, क्योंकि क्रमशः यह सूर्य के सभी रंगों को धारण करता शाक्तपूजा का भी इसमें विस्तृत वर्णन पाया जाता है। (बदलता ) है, महाभारत (१३.७०) के अनुसार सूर्यवंशी
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