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कृत्यकल्पतरु-कृष्ण कृत्यकल्पतरु-धर्मशास्त्र का एक निबन्ध-ग्रन्थ । इसके कृष्णदत्त लौहित्य-(लौहित्य के वंशज) : जैमिनीय उपरचयिता गहडवाल राजा गोविन्दचन्द्र के सान्धिविग्रहिक निषद् ब्राह्मण (३.४२.१) की एक गुरुशिष्य-सूची में इन्हें लक्ष्मीधर थे। रचनाकाल बारहवीं शताब्दी है। यह श्याम सुजयन्त लौहित्य का शिष्य कहा गया है। विशाल ग्रन्थ था किन्तु इसकी पूरी पाण्डुलिपि उपलब्ध कृष्ण-( महाभारत तथा भागवत के : ) इनके ऐतिहासिक नहीं है। यह बारह काण्डों में विभक्त था। उपलब्ध स्वरूप का वर्णन उपस्थित करना एक ग्रन्थ रचना का पाण्डुलिपियों से ज्ञात है कि इसका ग्यारहवाँ काण्ड राज- विषय है। महाभारत में कृष्ण एक स्थान पर मानवीय धर्म और बारहवाँ व्यवहार है। पूरे ग्रन्थ का नाम तो नायक, दूसरे स्थान पर अर्धदेव (विष्णु के अंशावतार) कृत्यकल्पतरु है किन्तु इसके अन्य नाम कल्पतरु, कल्पद्रुम, एवं अन्य स्थान पर पूर्णावतार (एक मात्र ईश्वर) के रूप कल्पवृक्ष आदि भी प्रचलित हैं। इसकी सर्वाधिक पूर्ण में देख पड़ते हैं, जिन्हें आगे चलकर ब्रह्म अथवा परमात्मा पाण्डुलिपि महाराणा उदयपुर के ग्रन्थालय में सुरक्षित है। इसमें बारह काण्ड और ११०८ पन्ने हैं। इसके
__ कृष्ण का जन्म द्वापर के अन्त में मथुरा में अन्धकबारह काण्ड निम्नाङ्कित हैं :
वृष्णि गणसंघ में हुआ था। इनके पिता का नाम वसुदेव १. ब्रह्मचारी
तथा माता का नाम देवकी था। उन दिनों इनके नाना २. गृहस्थ ८. तीर्थ
देवक के भाई उग्रसेन इस संघ के गणमुख्य थे। उनका ३. नैयत काल ९.४
पुत्र कंस एकतन्त्रवादी था। वह उग्रसेन को उनके पद से ४. श्राद्ध १०. शुद्धि
हटाकर स्वयं राजा बन बैठा। कृष्ण उसके विरोधी थे। ५. प्रतिष्ठा ११. राजधर्म
कंस ने कृष्ण को मारने की बड़ी चेष्टा की, जिसकी अति६. प्रतिष्ठा १२. व्यवहार ।
रञ्जित कहानियाँ भागवत-पुराण में वर्णित हैं। इनसे दो और काण्ड पाये जाते हैं : १३. शान्तिक और
कृष्ण के अद्भुत पुरुषार्थ का परिचय मिलता है। अन्त १४. मोक्ष । मनमोहन चक्रवर्ती (जर्नल ऑफ द एशियाटिक
में उन्होंने कंस का बध कर उग्रसेन को पुनः गणमुख्य सोसायटी ऑफ बंगाल, १९१५, पृ० ३५८-५९) का सुझाव बनाया। कंस के बध से उसका सहायक और श्वशुर, है कि लुप्त सातवाँ काण्ड पूजा तथा नवाँ प्रायश्चित्त था।
मगध का शासक जरासंध बहुत क्रुद्ध हुआ। उसने चेदिकृष्ण-ऋग्वेद को एक ऋचा (८.८५.३-४ ) में
राज शिशुपाल और यवन कालनेमि की सहायता से मथुरा 'कृष्ण' किसी ऋषि का नाम है। उन्हें अथवा उनके पुत्र ।
पर सत्रह बार आक्रमण किया। कृष्ण को विवश होकर को ( ऋग्वेद, ८.२६ ) मन्त्रद्रष्टा कहा गया है।
मथुरा छोड़ द्वारका जाना पड़ा । कृष्ण के नेतृत्व में यादवों 'कृष्णीय' शब्द गोत्रवाचक है जो ऋग्वेद की दो ऋचाओं
ने सुराष्ट्र में एक नये राज्य की स्थापना की। कृष्ण ने में उद्धृत है, जहाँ विश्वक् कृष्णीय के लिए विष्णापू को
अपनी योग्यता के बल पर अखिल भारतीय राजनीति में अश्विनी ने किसी रोग से मुक्ति देकर बचाया था। इस
प्रमुख स्थान ग्रहण किया। अवस्था में कृष्ण, विष्णापू के पितामह प्रतीत होते हैं ।
___इसी बीच हस्तिनापुर के कौरवों और पाण्डवों में राज्य कौषीतकि ब्राह्मण (३०.९) में उद्धृत कृष्ण आंगिरस
के बँटवारे के लिए संघर्ष प्रारम्भ हुआ। कृष्ण पाण्डवों एवं उपर्युक्त कृष्ण एक ही जान पड़ते हैं।
के सहायक थे । पहले इन्होंने प्रयत्न किया कि शान्ति के कृष्ण देवकीपुत्र-छान्दोग्य उपनिषद् में कृष्ण देवकीपुत्र घोर साथ पाण्डवों को अधिकार मिल जाय । कौरवों के दुरा
आङ्गिरस के शिष्य के रूप में उद्धृत हैं । परम्परा तथा ग्रह के कारण युद्ध हुआ। इसी युद्ध का नाम महाभारत आधुनिक विद्वान् ग्रियर्सन, गार्वे आदि ने इन्हें महा- है । वास्तव में महाभारत के कथाकार व्यास और सूत्रभारत के नायक कृष्ण के रूप में माना है, जिन्हें आगे धार कृष्ण थे। महाभारत के प्रारम्भ में पाण्डव अर्जुन चलकर देवत्व प्राप्त हो गया।
को कुलक्षय की आशंका से जो व्यामोह हआ उसका निराकृष्ण हारीत-ऐतरेय आरण्यक में इन्हें एक आचार्य कहा करण कृष्ण ने भगवद्गीता के उपदेश से किया, जो नीतिगया है।
दर्शन की उत्कृष्ट कृति है। कृष्ण बहुत बड़े दार्शनिकनीक
महा
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