________________
कपिलउपपुराण-कबीर तथा कबीरपंथ
१५३
सूत्र' नामक एक संक्षिप्त सूत्र रचना को कपिल का मूल उपदेश मानना चाहिए ।
इनकी जन्मभूमि गुजरात का सिद्धपुर और तपःस्थल गंगा-सागरसंगम तीर्थ कहा जाता है । कपिल-उपपुराण-यह उन्तीस प्रसिद्ध उपपुराणों में से
कपिलादान-श्राद्धकर्म के सम्बन्ध में ग्यारहवें दिन 'कपिला
धेनु दान' तथा वृषोत्सर्ग मृतक के नाम पर किया जाता है। यह दान महाब्राह्मण को दिया जाता है। कपिष्ठलकठसंहिता-यजर्वेद की पाँच शाखाओं में से कपिष्ठल-कठ एक शाखा है। 'कपिष्ठलकठसंहिता' इसी शाखा की है। कपिलवस्तु-अब तक यह मान्य था कि पिपरहवा से नौ मील उत्तर-पश्चिम नेपाल राज्य में तिलौरा नामक स्थान ही गौतम बुद्ध के पिता शुद्धोदन की राजधानी था। यहाँ विशाल भग्नावशेष हैं। यह स्थान लम्बिनी से पन्द्रह मील पश्चिम है । किंतु नवीन खोजों से प्रमाणित होता है कि बस्ती जिला, उत्तर प्रदेश का पिपरहवा नामक स्थान ही। प्राचीन कपिलवस्तु है।
बौद्ध परम्परा ( दीग्धनिकाय ) के अनुसार यहाँ पर प्राचीन काल में कपिल मुनि का आश्रम था। अयोध्या से निष्कासित इक्ष्वाकुवंशी राजकुमारों ने यहाँ पहुँचकर शाक ( शाक ) वन के बीच शाक्य जनपद की स्थापना की। सम्भवतः कापिल सांख्य के अनीश्वरवादी दर्शन का प्रभाव शाक्यों ( विशेष कर गौतम बुद्ध ) पर इसी परम्परा से पड़ता रहा होगा। कपिलाषष्ठीव्रत-भाद्र कृष्ण को षष्ठी ( अमान्त गणना) अथवा आश्विन कृष्ण की षष्ठी ( पूणिमान्त गणना), भौमवार, व्यतीपात योग, रोहिणी नक्षत्रयुक्त दिन में इस व्रत का अनुष्ठान होता है। दे० हेमाद्रि, व्रतखण्ड, १.५७८। यदि उपर्युक्त संयोगों के अतिरिक्त कहीं सूर्य भी हस्त नक्षत्र से युक्त हो तो इस व्रत का पुण्य और अधिक होता है । इसमें भास्कर की पूजा तथा कपिला गौ के दान का विधान है। कपिलपरम्परा के अनुयायी संन्यासी गण इस दिन कपिल मुनि का जन्मोत्सव मनाते हैं। इस पर्व में रोहिणी का संयोग अनुमान पर ही आधारित है। इतने योगों का एक साथ पड़ जाना दुर्लभ बात है । साधारणतः ऐसा योग ६० वर्षों में कहीं एकाध बार पड़ता है।
कबीर तथा कबीरपंथ-धार्मिक सुधारकों में कबीर का नाम अग्रगण्य है। इनका चलाया हुआ सम्प्रदाय कबीरपंथ कहलाता है । इनका जन्म १५०० ई० के लगभग उस जुलाहा जाति में हुआ जो कुछ ही पीढ़ी पहले हिन्दू से मुसलमान हुई थी, किन्तु जिसके बीच बहुत से हिन्दू संस्कार जीवित थे। ये वाराणसी में लहरतारा के पास रहते थे । इनका प्रमुख धर्मस्थान 'कबीरचौरा' आज तक प्रसिद्ध है। यहाँ पर एक मठ और कबीरदास का मन्दिर है, जिसमें उनका चित्र रखा हुआ है। देश के विभिन्न भागों से सहस्रों यात्री यहाँ दर्शन करने आते हैं। इनके मूल सिद्धान्त ब्रह्मनिरूपण, ईसमुक्तावली, कबीरपरिचय की साखी, शब्दावली. पद, साखियाँ, दोहे, सुखनिधान, गोरखनाथ की गोष्ठी, कबीरपजी, वलक्क की रमैनी, रामानन्द की गोष्ठी, आनन्द रामसागर, अनाथमङ्गल, अक्षरभेद की रमैनी, अक्षरखण्ड की रमैनी, अरिफनामा कबीर का, अर्जनामा कबीर का, आरती कबीरकृत, भक्ति का अङ्ग, छप्पय, चौकाघर की रमैनी, मुहम्मदी बानी, नाम माहात्म्य, पिया पहिचानवे को अङ्ग, ज्ञानगूदरी, ज्ञानसागर, ज्ञानस्वरोदय, कबीराष्टक, करमखण्ड की रमैनी, पुकार, शब्द अनलहक, साधकों के अङ्ग, सतसङ्ग को अङ्ग, स्वासगुञ्जार, तीसा जन्म, कबीर कृत जन्मबोध, ज्ञानसम्बोधन, मुखहोम, निर्भयज्ञान, सतनाम या सतकबीर बानी, ज्ञानस्तोत्र, हिण्डोरा, सतकबीर, बन्दीछोर, शब्द वंशावलो, उग्रगीता, बसन्त, होली, रेखता, झूलना, खसरा, हिण्डोला, बारहमासा, बाँचरा, चौतीसा, अलिफनामा, रमैनी, बीजक, आगम, रामसार, सोरठा कबीरजी कृत, शब्द पारखा और ज्ञानबतीसी, विवेकसागर, विचारमाला, कायापजी, रामरक्षा, अठपहरा, निर्भयज्ञान, कबीर और धर्मदास की गोष्ठी आदि ग्रन्थों में पाये जाते हैं ।
कबीरदास ने स्वयं ग्रन्थ नहीं लिखे, केवल मुख से भाखे हैं । इनके भजनों तथा उपदेशों को इनके शिष्यों ने लिपिबद्ध किया । इन्होंने एक ही विचार को सैकड़ों प्रकार से कहा है और सबमें एक ही भाव प्रतिध्वनित होता है । ये रामनाम की महिमा गाते थे, एक ही ईश्वर को मानते थे और कर्मकाण्ड के घोर विरोधी थे। अवतार, मूर्ति, रोजा, ईद, मसजिद, मन्दिर आदि को नहीं मानते थे। अहिंसा, मनुष्य मात्र की समता तथा संसार की असारता
२०
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org