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कवीन्द्राचार्य-कश्यप
श्रीराम की कथा, जो कवित्त और सवैया छन्दों में है। विश्वकर्मभौवन' नामक राजा का अभिषेक कराया था। इसके रचयिता गोस्वामी तुलसीदास हैं । भक्ति भावना से ऐतरेय ब्राह्मण में कश्यपों का सम्बन्ध जनमेजय से बताया भीना हुआ यह व्रजभाषा का ललित काव्य है ।
गया है । शतपथ ब्राह्मण में प्रजापति को कश्यप कहा कवीन्द्राचार्य-शतपथ ब्राह्मण के तीन भाष्यकारों में से गया है : “स यत्कर्मो नाम । प्रजापतिः प्रजा असृजत् । एक कवीन्द्राचार्य भी हैं ।
यदसृजत् अकरोत् तद् यदकरोत् तस्मात् कूर्मः कश्यपो कश्मीरशैवमत-शैवमत की एक प्रसिद्ध शाखा कश्मीरी __ वै कूर्मस्तस्मादाहुः सर्वाः प्रजाः काश्यप्यः ।" शैवों की है । यहाँ 'शैव आगमों' को शिवोक्त समझा गया महाभारत एवं पुराणों में असुरों की उत्पत्ति एवं एवं इन शैवों का यही धार्मिक आधार बन गया । ८५० वंशावली के वर्णन में कहा गया है कि ब्रह्मा के छ: ई० के लगभग 'शिवसूत्रों' को रहस्यमय एवं नये शब्दों मानस पुत्रों में से एक 'मरीचि' थे जिन्होंने अपनी इच्छा में शिवोक्त ठहराया गया एवं इससे प्रेरित हो दार्शनिक से कश्यप नामक प्रजापति पुत्र उत्पन्न किया। कश्यप ने साहित्य की एक परम्परा यहाँ स्थापित हो गयी, जो दक्ष प्रजापति की १७ पुत्रियों से विवाह किया। दक्ष की लगभग तीन शताब्दियों तक चलती रही। 'शिवसूत्र' इन पुत्रियों से जो सन्तान उत्पन्न हई उसका विवरण एवं 'स्पन्दकारिका' जो यहाँ के शवमत के आधार थे, निम्नांकित है : प्रायः दैनिक चरितावली पर ही विशेष रूप से प्रकाश १. अदिति से आदित्य ( देवता) डालते हैं। किन्तु ९०० ई० के लगभग सोमानन्द की २. दिति से दैत्य 'शिवदृष्टि' ने सम्प्रदाय के लिए एक दार्शनिक रूप उप- ३. दनु से दानव स्थित किया। यह दर्शन अद्वैतवादी है एवं इसमें मोक्ष ४. काष्ठा से अश्वादि प्रत्यभिज्ञा (शिव से एकाकार होने के ज्ञान) पर ही ५. अनिष्टा से गन्धर्व आधारित है। फिर भी विश्व को केवल माया नहीं बताया ६. सुरसा से राक्षस गया, इसे शक्ति के माध्यम से शिव का आभास कहा ७. इला से वृक्ष गया है । विश्व का विकास सांख्य दर्शन के ढंग का ही ८. मुनि से अप्सरागण है, किन्तु इसकी बहुत कुछ अपनी विशेषताएँ है । यह ९. क्रोधवशा से सर्प प्रणाली 'त्रिक' कहलाती है, क्योंकि इसके तीन सिद्धान्त १०. सुरभि से गौ और महिष हैं-शिव, शक्ति एवं अणु; अथवा पति, पाश एवं पशु । ११. सरमा से श्वापद (हिंस्र पशु) इसका सारांश माधवकृत 'सर्वदर्शनसंग्रह' अथवा चटर्जी १२. ताम्रा से श्येन-गृध्र आदि के 'कश्मीर शैवमत' में प्राप्त हो सकता है । आगमों की १३. तिमि से यादोगण (जलजन्तु) शिक्षाओं से भी यह अधिक अद्वैतवादी है, जबकि नये १४. विनता से गरुड और अरुण साहित्यिक इसे आगमों के अनुकूल सिद्ध करने की चेष्टा १५. कद्रू से नाग करते हैं । इस मत परिवर्तन का क्या कारण हो सकता १६. पतङ्गी से पतङ्ग है ? आचार्य शङ्कर ने अपनी दिग्विजय के समय कश्मीर १७. यामिनी से शलभ । भ्रमण किया था, इसलिए हो सकता है कि उन्होंने वहाँ दे० भागवत पुराण । मार्कण्डेय पुराण (१०४.३ ) के के शैव आचार्यों को अद्वैतवाद के पक्ष में लाने का उप- अनुसार कश्यप की तेरह भार्याए थीं। उनके नाम हैक्रम किया हो !
१. दिति, २. अदिति, ३. दनु, ४. विनता, ५. खसा, कश्यप-प्राचीन वैदिक ऋषियों में प्रमुख ऋषि, जिनका ६. कद्रु, ७. मुनि, ८. क्रोधा, ९. रिष्टा, १०. इरा, उल्लेख एक बार ऋग्वेद में हुआ है । अन्य संहिताओं में ११. ताम्रा, १२. इला और १३. प्रधा। इन्हीं से सब भी यह नाम बहुप्रयुक्त है। इन्हें सर्वदा धार्मिक एवं सृष्टि हुई। रहस्यात्मक चरित्र वाला बतलाया गया है एवं अति कश्यक एक गोत्र का भी नाम है । यह बहुत व्यापक प्राचीन कहा गया है । ऐतरेय ब्राह्मण के अनुसार इन्होंने गोत्र है। जिसका गोत्र नहीं मिलता उसके लिए कश्यप
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