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एकशृङ्ग-एकान्ती
एकशृङ्ग-विष्णु के अवतार मत्स्य का एक सींग होने के ४१४ ( ब्रह्मपुराण से उद्धृत ) । सम्भवतः एका-अनङ्गा कारण उसको एकशृङ्ग कहते हैं। स्वायम्भुव मन्वन्तर देवी का व्रत पति के आकर्षण अथवा वशीकरण के लिए में असमय में ही प्रलय हो जाने के कारण मत्स्यरूप धारण किया जाता है। करनेवाले विष्ण के सींग में मन ने नाव बांधी थी। एकान्तरहस्य-वल्लभाचार्य द्वारा रचित एक ग्रन्थ । इसमें दे० कालिका पुराण, अ० ३२ दे।
सम्पूर्ण प्रपत्तियोग पर आधारित पुष्टिमार्ग के सिद्धान्तों एका-अद्वितीया, दुर्गा :
का निरूपण किया गया है। एकागणार्था त्रैलोक्ये तस्मादेका च सोच्यते ।
एकान्तद रामाय्य ( एकान्त रामाचार्य)-आलोचक विद्वानों [ समस्त गुणों की तीनों लोकों में वह एक ही मूर्ति । के अनुसार वीरशैव मत के संस्थापक वसव कहे जाते हैं, है, इसलिए उसे “एका" कहते हैं । ]
जो कलचुरी राजा बिज्जल के प्रधान मंत्री थे। बिज्जल मार्कण्डेय पुराण (९०.७) में कथन है :
११५६ ई० में कल्याण में राज्य करता था। किन्तु डा० एकवाहं जगत्यत्र द्वितीया का ममापरा ।
फ्लीट का मत है कि अब्लुर के एकान्तद रामाय्य ही [ इस संसार में मैं एक ही है: मझसे अतिरिक्त और वीरशैव मत के प्रवर्तक थे, जिनका चरित्र एक प्राचीन दूसरा कोई नहीं है । ]
अभिलेख में प्राप्त है। वे पूर्णतया धर्मपरायण थे, जबकि एकाक्षरोपनिषद्-यह परवर्ती उपनिषद् है । इसमें अद्वैत
वसव को राजनीतिक एवं सैनिक जीवन में भी लिप्त रहना अक्षर तत्त्व का निरूपण किया गया है।
पड़ता था। 'एकान्तद रामाय्य' का संस्कृत रूप 'एकान्त एकादशी-प्रसिद्ध एवं पवित्र तिथि । यह शुक्ल पक्ष में
रामायं' अथवा 'एकान्त रामाचार्य है। सूर्यमण्डल से चन्द्रमण्डल की निर्गम रूप एकादश कला
एकान्न-एकभक्त व्रत, अर्थात् एक बार ही भोजन करने क्रिया है। कृष्ण पक्ष में सूर्यमण्डल में चन्द्रमण्डल की
का व्रत । ऐसा व्रत जिसमें एक ही अन्न खाया जाय । प्रवेश रूप एकादश कला-क्रिया है । इसके पर्याय हैं-(१)
स्कन्द पुराण के काशीखण्ड में कथन है : हरिवासर, (२) हरिदिन। इस दिन अन्न त्याग, व्रत, ऊर्जे यवान्नमश्नीयादेकान्नमथवा पुनः । उपवास आदि किये जाते हैं। वैष्णवों के लिए इसका
[कार्तिक मास में एक अन्न अथवा जौ खाना चाहिए।] विशेष महत्त्व है।
कई रसोंवाली भोज्य वस्तुओं को एकमएक मिला एकादशीव्रत-सभी वैष्णव तथा बहुत से अन्य सम्प्रदाय देना भी एकान्न है। संन्यासियों के लिए ऐसे स्वादरहित वाले हिन्दू भी प्रत्येक एकादशी का व्रत करते हैं । इसका भोजन करने का नियम है। गांधीजी का 'अस्वादवत' माहात्म्य प्रसिद्ध है। वैसे तो सभी मासों की एकादशी यही है। पवित्र है, किन्तु कार्तिक शुक्ल एकादशी का विशेष महत्त्व एकान्ती-एक मात्र परमात्मा पर अवलम्बित रहने वाला। है। इसको प्रबोधिनी एकादशी कहते हैं । इसी दिन
इस प्रकार के भक्त का अटल विश्वास होता है कि विष्णु अपनी निद्रा से जागते हैं। दे० 'प्रबोधिनी एकादशी'।
परमेश्वर की पूजा-भक्ति ही केवल मोक्ष का मार्ग है । इसका पारमार्थिक भाव है अन्नत्याग के समान ही एकादश अतएव ईश्वर तथा उसके अवतारों की ही भक्ति एवं इन्द्रियों के विषयों-संसारी वस्तुओं का त्यागरूप एका- पूजा होनी चाहिए । इस प्रकार यह सम्प्रदाय एकेश्वरवादी दशी-व्रत ।
है। भागवत साहित्य बार-बार इस बात पर जोर देता एकानङ्गापूजा-इस व्रत का अनङ्ग (कामदेव ) से है कि सच्चा विश्वासी 'एकान्ती' ही होगा और वह केवल सम्बन्ध है । कार्तिक शुक्ल ४, ८, ९ अथवा चतुर्दशी को एक ईश्वर की आराधना करेगा। महिलाएँ किसी फलदार वृक्ष के नीचे एकानङ्गा का
गरुडपुराण के १३१ वें अध्याय में लिखा है : पूजन करें। तत्पश्चात् बाज अथवा अन्य किसी पक्षी से
एकान्तेनासमो विष्णुर्यस्मादेषां परायणः । कहें कि उनके उत्तम खाद्य तथा नैवेद्य में से वह चोंच तस्मादेकान्तिनः प्रोक्तास्तद्भावगतचेतसः ।। भरकर भगवती के पास कुछ थोड़ा-सा नैवेद्य ले जाये। [क्योंकि ये एकान्त भाव से महान् विष्णु की भक्ति उस दिन पत्नी पति से पूर्व ही भोजन कर ले । तदनन्तर करते हैं, अतः इन्हें एकान्ती कहा गया है। इनका मन वह पति को भोजन कराये । दे० कृत्यरत्नाकर, ४१३- भगवान् की ओर ही रहता है । ]
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