________________
कक्षीवाम्-कण्ठ
:
।
इसका प्रतीकात्मक रहस्य निम्नलिखित बतलाया गया है। अधुना संप्रवक्ष्यामि ककारतत्वमुत्तमम् । रहस्यं परमाश्चर्यं त्रैलोक्यानाञ्च संशृणु ॥ वामरेखा भवेद् ब्रह्मा विष्णुर्दक्षिणरेखिका | अधोरेखा भवेद् रुद्रो मात्रा साक्षात्सरस्वती ॥ कुण्डली अंकुशाकारा मध्ये शून्यः सदाशिवः । जवायावकसंकाशा वामरेखा वरानने ॥ शरच्चन्द्रप्रतीकाशा दक्ष रेखा च मूर्तिमान् । अधोरेखा वरारोहे महामरकतद्युतिः ॥ शङ्खकुन्दसमा कीर्तिर्मात्रा साक्षात् सरस्वती । कुण्डली अशा या तु कोटिविद्युल्लताकृतिः ॥ कोटिचन्द्रप्रतीकाशो मध्ये शून्यः सदाशिवः । शून्यगर्भे स्थिता काली कैवल्यपददायिनी ॥ ककाराज्जायते सर्व कामं कैवल्यमेव च । अवश्य जायते देवि तथा धर्मश्च नान्यथा ॥ ककारः सर्ववर्णानां मूलप्रकृतिरेव च । ककारः कामदा कामरूपिणी स्फुरदव्यया ॥ कमनीया महेशानि स्वयं प्रकृति सुन्दरी । माता सा सर्वदेवानां कैवल्य पददायिनी ॥ ऊर्ध्वकोणे स्थिता कामा ब्रह्मतिरितीरिता । वामकोणे स्थिता ज्येष्ठा विष्णुशक्तिरितीरिता ।। दक्षको स्थिता बिन्दू रौद्री संहाररूपिणी । ज्ञानात्मा स तु चाङ्गि कलाचतुष्टयात्मकः ॥ इच्छाशक्तिर्भवेद् ब्रह्मा विष्णुश्च ज्ञानशक्तिमान् । क्रियाशक्तिर्भवेद् रुद्र: सर्व प्रकृतिमूर्तिमान् ॥ आत्मविद्या शिवस्तत्र सदा मन्त्रः प्रतिष्ठितः । आसनं त्रिपुरादेव्याः ककारं पञ्चदैवतम् ॥ ईश्वरो यस्तु देवेशि त्रिकोणे तस्य संस्थितिः । त्रिकोणमेतत् कथितं योनि मण्डलमुत्तमम् ॥ केवलं प्रपदे यस्या: कामिनी सा प्रकीर्तिता । जवायrवकसिन्दूर सदृशी कामिनी पराम् ॥ चतुर्भुजां त्रिनेत्रा बाहुवल्ली विराजिताम् । कदम्ब कोरकाकारस्तनद्वय विभूषिताम् || तान्त्रिक क्रियाओं में इस अक्षर का वहा उपयोग होता है ।
कक्षीवान् — ऋचाओं के द्रष्टा एक ऋषि । ऋग्वेद (१.१८, १,५१, १३, ११२, १६, ११६, ७, ११७, ६, १२६,३,४.२६,१; ८.९,१०,१.७४, ८ १०.२५, १०६१,१६) में अनेकों बार
Jain Education International
१४९
कक्षीवान् ऋषि का नाम उद्धृत है । वे उशिज नामक दासी के पुत्र और परिवार से 'पत्र' थे, क्योंकि उनकी एक उपाधि परिचय (०३० १.११६,७११७,६) है। ऋग्वेद (१.१२६) में उन्होंने सिंधुतट पर निवास करने वाले स्वनय भाग्य नामक राजकुमार की प्रशंसा की है, जिसने उनको सुन्दर दान दिया था । वृद्धावस्था में उन्होंने वृचया नामक कुमारी को पत्नी रूप में प्राप्त किया। ये दीर्घजीवी थे। ऋग्वेद (४.२६,१) में पुराकथित कुस्स एवं उशना के साथ इनका नाम आता है । परवर्ती साहित्य में इन्हें आचार्य माना गया है।
इनका नाम ऋग्वेद के कतिपय सूतों के संकलन कार नौ ऋषियों की तालिका में आता है ये नौ ऋषि हैंसव्य नोधस, पराशर, गोतम, कुत्स, कक्षीवान्, परुच्छेप, दीर्घतमा एवं अगस्त्य । ये पूर्ववर्ती छः ऋषियों से या उनके कुलों से भिन्न हैं ।
कङ्कतीय - शतपथ ब्राह्मण में उद्धृत एक परिवार का नाम, जिसने शाण्डिल्य से 'अग्निचयन' सीखा था । आपस्तम्ब श्रौतसूत्र में 'कङ्कतिब्राह्मण ग्रन्थ का उद्धरण है । बौधायनश्रौतसूत्र में उद्धृत छागलेयब्राह्मण एवं कङ्कतिब्राह्मण सम्भवतः एक ही ग्रन्थ के दो नाम हैं ।
कंस - पुराणों के अनुसार यह अन्धक - वृष्णि संघ के गणमुख्य उग्रसेन का पुत्र था । इसमें स्वच्छन्द शासकीय या अधिनायकवादी प्रवृत्तियां जागृत हुई और पिता की अपदस्थ करके यह स्वयं राजा बन बैठा। इसकी बहिन देवकी और बहनोई वसुदेव थे। इनको भी इसने कारागार में डाल दिया । यहीं पर इनसे कृष्ण का जन्म हुआ अतः कृष्ण के साथ उसका विरोध स्वाभाविक था । कृष्ण ने उसका वध कर दिया। अपनी निरंकुश प्रवृत्तियों के कारण कंस का चित्रण राक्षस के रूप में हुआ है ।
-
कच्छ- - शीघ्र गति और सन्नद्धता के लिए पहना गया जाँघिया, जो सिक्खों के लिए आवश्यक है । गुरु गोविन्दसिंह ने मुगल साम्राज्य से युद्ध करने के लिए एक शक्तिशाली सेना बनायी अपने सैनिकों पर पूर्णरूप से धार्मिक प्रभाव डालने के लिए उन्होंने अपने हाथ से उन्हें 'खड्ग दी पहल' तलवार का धर्म दिया तथा उनसे बहुत सी प्रतिज्ञाएं करायीं । इन प्रतिज्ञाओं में 'क' से प्रारम्भ होने वाले पाँच पहनावों का ग्रहण करना भी था। कच्छ
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org