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उपनिषद्-उपपुराण
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प्राचीनता सिद्ध करने के लिए अनेक उपनिषदों की उपनिषदालोक-'श्वेताश्वतर' एवं 'मैत्रायणीयोपनिषद्' रचना की।
यजुर्वेद की हो उपनिषदें कही जाती हैं । इन पर आचार्य उपनिषदों का प्रतिपाद्य विषय उपासना और ज्ञान है।।
विज्ञानभिक्षु ने 'उपनिषदालोक' नाम की विस्तृत टीका जैसा कि लिखा जा चुका है, ब्राह्मणों में संहिताओं के लिखा है। कर्मकाण्ड का विस्तार और व्याख्यान हुआ है। इसी
उपनीत–जिसका उपनयन संस्कार हो चुका है । उपनीत प्रकार उपनिषदों में संहिताओं के उपासना और ज्ञान
होने के पूर्व बालक के शौचाचार के नियम सरल होते हैं । काण्ड का विस्तार और विकास हुआ है। ब्राह्मण और
उपनयन के पश्चात् उसको ब्रह्मचर्य आश्रम के नियमों का उपनिषद् एक दूसरे के पूरक हैं। उपनिषदों ( ईशावास्य
पालन करना होता है। स्मृतियों में अनुपनीत की छूटों और मुण्डक ) में ही दो प्रकार की विद्याओं का उल्लेख
और उपनीत के नियमों की विस्तृत सूचियाँ पायी है-(१) परा और (२) अपरा । 'परा' विद्या ब्रह्मविद्या
जाती हैं। है, जिसका उपनिषदों में मुख्य रूप से विवेचन है। परन्तु
उपपति-अवैध या गुप्त पति, जार, आचारहानि का 'अपरा' विद्या के बारे में कहा गया है कि लोकयात्रा के
कारण पति । उपपति की निन्दा की गयी है और परस्त्रीलिए यह आवश्यक है और संहिताओं, ब्राह्मणों तथा
गमन के लिए उसको प्रायश्चित्ती बतलाया गया है। वेदाङ्गों में इसका निरूपण हुआ है। 'परा' अथवा ब्रह्म
उपपत्ति-किसी नियम की सङ्गति अथवा समाधान । विद्या के अन्तर्गत आत्मा, ब्रह्म, जगत्, बन्ध, मोक्ष,
सिद्धान्त प्रकरण के प्रतिपाद्य अर्थ की सिद्धि के लिए कही मोक्ष के साधन आदि का सरल, सुबोध किन्तु रहस्यमय
जाने वाली युक्ति को भी उपपत्ति कहते हैं । वेदान्तसार शैली में उपनिषदें निरूपण करती हैं ।
में कहा है :
श्रोतव्यः श्रुतिवाक्येभ्यो मन्तव्यश्चोपपत्तिभिः । उपनिषत्प्रस्थान-मध्वाचार्य रचित एक ग्रन्थ । इसमें उप
[आत्मा को वेदवाक्यों से सुनना चाहिए, युक्तियों से निषदों के आधार पर द्वैत मत का प्रतिपादन किया
मानना चाहिए। गया है।
उपपातक-पतन करने वाला कर्म, जो नरक में गिराता है, उपनिषदब्राह्मण----'उपनिषद्ब्राह्मण' और 'आश्रेयब्राह्मण'
अथवा पाप के साथ जिसकी उपमा की जाय । विशेष पापों दोनों ही 'जैमिनीय' अथवा 'तलवकारब्राह्मण' में सम्मि
को भी उपपातक कहते है, ये उनचास प्रकार के हैं : (१) लित है, जो सामवेद की तलवकार शाखा से सम्बन्धित हैं।
गोधनहरण, (२) अयाज्ययाजन, (३) परदारगमन, (४) उपनिषद्भाष्य-शङ्कराचार्य के रचे हुए ग्रन्थों में 'उपनिषद्- आत्मविक्रय, (५) गुरुत्याग, (६) पितत्याग आदि उपपाभाष्य' प्रसिद्ध हैं । जिन उपनिषदों का भाष्य उन्होंने तक होते हैं। लिखा ह व ह : इश, कन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, माण्डूक्य, उपपुराण-अठारह पुराणों के अतिरिक्त अनेक उपपुराण ऐतरेय, तैत्तिरीय, छान्दोग्य, बृहदारण्यक, नृसिंहपूर्वता
भी हैं, जिनकी वर्णनसामग्री एवं विषय पुराणों के सदृश पनीय तथा श्वेताश्वतर । शङ्कराचार्य के समान ही मध्वाचार्य
ही हैं । निम्नाङ्कित उपपुराण प्रसिद्ध हैं : ने भी दस उपनिषदों (ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, माण्डू
१. सनत्कुमार
१०. कालिका क्य, ऐतरेय, तैत्तिरीय, छान्दोग्य एवं बृहदारण्यक) पर भाष्य
२. नरसिंह
११. साम्ब लिखा है । इसी प्रकार रामानुजाचार्य आदि महानुभावों
३. बृहन्नारदीय १२. नन्दिकेश्वर के भी उपनिषद्भाष्य प्रसिद्ध हैं ।
४. शिव अथवा शिवधर्म १३. सौर उपनिषन्मङ्गलदीपिका-दोद्दय भट्टाचार्य के रचे नौ ग्रन्थों ५. दुर्वासा
१४. पाराशर में से एक । दोद्दय भट्टाचार्य रामानुज मतानुयायी एवं ६. कापिल
१५. आदित्य अप्पय दीक्षित के समसामयिक थे । उनका काल सोलहवीं ७. मानव
१६. ब्रह्माण्ड शताब्दी माना जाता है । इस ग्रन्थ में उपनिषदों के आधार ८. औशनस
१७. माहेश्वर पर विशिष्टाद्वैत मत का निरूपण किया गया है।
९. वारुण
१८. भागवत
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