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आगम विषय कोश-२
अधिकरण
कुंभकार ने यह सुनकर कह दिया-यहां के खलिहान जल उदायणस्स-ण विसज्जेति पज्जोओ पडिम। रहे हैं। एक व्यक्ति ने अवसर देखकर एक बैल का अपहरण ततो उदायणो दसहिं मउडबद्धरातीसह सव्वकर लिया। पूछने पर दुरूतक (प्रत्यंतग्रामवासी लोग) कहने साहण-बलेण पयातो।"रोहिता उज्जेणी। बहुजणक्खए लगे-तुम तो एक बैल को ही लेकर आए थे। वह कुंभकार वट्टमाणे उदायणेण पज्जोतो भणिओ-तुझं मज्झ य निराश होकर चला गया। उसने उस गांव के सभी खलिहानों विरोहो। अम्हे चेव दुअग्गा जुज्झामो, किं सेसजणवएणं को जला डाला। उसने इस जलाने की क्रिया को सात वर्षों माराविएणं ति।अब्भुवगयं पज्जोएण"इमं च से णामयं तक किया। आठवें वर्ष गांव वालों ने पराजित होकर यह ललाटे चेव अंकितं-"उदायणो। उदायणेण रणे जित्ता घोषणा करवाई कि हमने जिस किसी का अपराध किया गहिओ पज्जोओ।"ससाहणेण पडिनियत्तो, पज्जोओ वि हो, वह हमें क्षमा करे। हमने जो कुछ उसका अपहृत किया बद्धो खंधावारेणिज्जति "उदायणस्स उवजेमणाए भुंजति है, उसे लौटा देंगे। वह हमारे शस्यों को न जलाए। गांव पज्जोतो।अण्णया पज्जोसवणकाले पत्ते उदायणो उववालों ने उस कुंभकार से क्षमायाचना की। बैल लौटा वासी, तेण सूतो विसज्जितो... दिया। विग्रह शांत हो गया।
"राया समणोवासओऽज्ज पज्जोसवणाए उववासी। द्रमक-धनाढ्य के घर खीर का भोजन देखकर एक दरिद्र ब्राह्मण तो ते जं इटुं अज्ज उवसाहयामि त्ति पुच्छिओ। के बच्चों ने पिता से खीर का आग्रह किया। पिता ने दूसरों से दूध तओ पज्जोतेण लवियं-'अहो सपावकम्मेण आदि की याचना कर खीर बनाई। चोरों का आगमन हुआ और वसणपत्तेण पज्जोसवणा विणणाता, गच्छ कहेहि राइणो खीर चोर ले गए। द्रमक ने चोरों का पीछा किया और चोर सेनापति उदायणस्स जहा अहं पिसमणोवासगो अज्ज उववासिओ का तलवार से शिरच्छेद कर दिया। नायक की मृत्यु होने पर चोरों भत्तेण ण मे कज्जं ।' ने सेनापति के छोटे भाई को अपना मुखिया बना दिया।
सूतेण गंतुं उदायणस्स कहियं-सो वि समणोवासगो मखिया बनने पर उसकी मां, बहिन और भाभी व्यंग्य अज्जण भंजति त्ति। में कहने लगी कि तुम्हारे जीवन को धिक्कार है, जो तुम अपने ताहे उदायणो भणति-समणोवासगेण मे बद्रेण भाई के शत्रु से बदला लिए बिना सेनापति बन गए। परिजनों अज्ज सामातियं ण सुज्झति, ण य सम्मं पज्जोसवियं की बात सुनकर क्रोध में आकर वह चोर सेनापति उस गरीब भवति, तं गच्छामि समणोवासगंबंधणातो मोएमिखामेमि को जीवित ही पकड़कर ले आया और पूछा-'बोल', तेरा य सम्म, तेण सो मोइओ खमिओय। वध कहां करूं? तू मेरे भाई का घातक है। गरीब ने गिड़गिड़ाते
(निभा ३१८४, ३१८५ चू) हुए कहा-'जहां शरणागत मारे जाते हैं, वहीं मुझे मारो।'
राजा प्रद्योत द्वारा स्वर्णगुटिका एवं देव प्रतिमा का हरण 'शरणागत तो अवध्य होते हैं ' ऐसा सोचकर चोर सेनापति ने
किये जाने पर राजा उद्रायण ने दूत के साथ संदेश भिजवाया कि उस भ्रातृघातक को विसर्जित कर दिया।
तुमने दासी की चोरी की, इससे मुझे कोई प्रयोजन नहीं है ० प्रद्योत-उद्रायण
लेकिन मेरी प्रतिमा वापिस कर दो। प्रत्युत्तर में राजा प्रद्योत ने ......"पज्जोयहरण... रणगहणे णाम ओसवणा॥ कहा कि प्रतिमा भी वापिस नहीं करूंगा। यह बात सुनते ही दासो दासीवतिओ, छेत्तट्ठी जो घरे ये वत्तव्यो। उद्रायण के रोष का पार नहीं रहा। राजा उद्रायण ने दस आणं कोवेमाणे, हंतव्वो बंधियव्वो य॥ मुकुटबद्ध राजाओं के साथ विशाल सुसज्जित सेना लेकर
पडिमं सुवण्णगुलिगं च पज्जोतो हरिउंगतो"रुट्ठो उज्जयिनी पर आक्रमण कर दिया। उदायणो दूतं विसज्जेति, जइ ते हडा दासचेडी तो हडा अकारण ही अनेक लोगों की मौत को देखकर उद्रायण णाम, विसज्जेह मे पडिम। गतपच्चागतेण दूतेण कहियं ने प्रद्योत से कहा-विरोध तो परस्पर हमारा है अतः हम दोनों
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